विचार

प्रिया धीर की कविताएं : 1, आज फिर जालिम दरिंदों ने…

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आज फिर जालिम दरिंदों ने एक और दीया बुझा दिया
हंसती खेलती मासूम को मौत की नींद सुला दिया…
क्या बिगाड़ा था उस मासूम ने जो ये दुष्कर्म किया है
हैवानों की दुनिया में क्या लड़की होना सजा है…
कितना तड़पी होगी वो कितना चिल्लाई होगी
पर तुम जैसे दरिंदों को दया कहां आई होगी…
कपड़ा ठूंसकर मुंह में उसकी आवाज तुमने दबाई होगी
खुद को बचाने के लिए वो न जाने कितना छटपटायी होगी…
चिल्लाई जब वो दर्द से तो तुमने जुबां ही दो हिस्सों में बांट दी
ऐसी भी क्या आग लगी थी जो इंसानियत की नाक काट दी…
अरे ओ पापी इस दुष्कर्म से पहले तेरू रूह क्यों नहीं कांपी
भूल गया क्या निर्भया के कातिलों को कैसे लगी थी फांसी…
कानून के रखवालों इन हैवानों के लिए इंसानियत क्यों दिखाते हो
क्यों तुम उनको उसी वक्त फांसी पर नहीं लटकाते हो …
अगर रहा ऐसा ही तो एक और निर्भया के साथ ऐसा होगा

और जुर्म करने वाला यूं ही चैन की नींद सोएगा.

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