जान हथेली पर रखकर भी,
जो तिनका- तिनका बीनते हैं।
सत्य के उजाले मे ही वे,
झूठ का मुखौटा छीनते है।
अपनी खबर नहीं है उनको,
दुनिया की खबरें बुनते हैं।
पाताल लोक मे भी जाकर,
खबरों के मोती चुनते हैं।
हम एक धुरी पर बैठे ही,
दुनिया की सब खबरें पाते।
अगर न होते कर्मवीर ये,
तो क्या हम कुछ खबरें पाते।
धरती से लेकर अम्बर तक,
जो खोज -खोज कर लाते हैं।
भ्राष्टाचारी डरे कलम से,
बस मात उसीसे खाते हैं।
उनकी कलमें भी क्या देखो,
तलवारों से भी कुछ कम है।
गर्दन काट झूठ की रखदे,
इनमें क्या उनसे कम दम है।
सच्चाई की खातिर इनने,
अपनी जाने भी दे डाली।
कलम न अपनी रुकने दी,
कोई हो कितना बलशाली।
हे कलम के वीर सिपाहियों,
सब ओर तुम्हारा ही नाम है।
नतमस्तक हम तुम्हारे आगे ,
तुमको कोटि -कोटि प्रणाम है।
लेखिका-प्रमोद पारवाला, बरेली, उत्तर प्रदेश