यूपी

 कोरोना से दिवंगत हुए पत्रकार के परिजनों को मिले सरकारी सहायता

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नीरज सिसौदिया, बरेली

भारतीय पत्रकारिता संस्थान और मानव सेवा क्लब के संयुक्त तत्वावधान में पत्रकारिता दिवस पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया जिसका विषय “आपदाकाल में पत्रकारिता” रखा गया। अध्यक्षता शहर के वरिष्ठ पत्रकार राकेश मथुरिया ने की। वरिष्ठ पत्रकार और उपजा प्रेस क्लब के अध्यक्ष डॉ.पवन सक्सेना ने कहा कि आज न केवल देश बल्कि पूरी मानव सभ्यता के सामने बहुत बड़ा खतरा है कोरोना से सिर्फ जान का ही नहीं पूरी सामाजिक बनावट के सामने खतरा पैदा हुआ है। डा. सक्सेना ने कहा कि आज जरूरी है कि वह सभी पत्रकार जो पूर्व में अपनी सेवाएं मीडिया जगत के लिए देते रहे हैं वह किसी न किसी डिजिटल माध्यम पर ब्लॉगिंग करके, वेबसाइट पर या किसी भी अन्य तरीकों सेअपने विचार अपने ऑब्जर्वेशन अपनी रिपोर्ट अवश्य लिखें, क्योंकि आज समाज के सामने सही तस्वीर प्रस्तुत होना जरूरी है चारों तरफ भ्रम का एक बड़ा वातावरण है इससे सही जानकारी और सही तथ्य ही देश को बाहर निकाल सकते हैं।


डॉ. सक्सेना ने कोरोना की आपदाकाल में अपनी जान गंवाने वाले बलिदानी पत्रकार साथियों के लिए प्रदेश व केंद्र सरकार से आर्थिक सहायता की मांग की तथा कहा कि घोषणाओं के अनुरूप आर्थिक मदद शायद उन पत्रकारों तक नहीं पहुंच पाएगी जो वास्तव में फील्ड में रात दिन एक कर के काम करते हैं, और अपना जीवन गंवा देते हैं इसके लिए सरकार को अपने नियमों को शिथिल करना होगा। ऐसे पत्रकार जिन्होंने अपना जीवन खोया है उनके परिवारों की चिंता करते हुए उनकी मदद के मामलों को सिर्फ कागजी कार्रवाई में ना उलझा कर एक व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। हम सभी जानते हैं बहुत सारे मीडिया हाउसेस अपने पत्रकारों के लिए ऑन रिकॉर्ड नहीं रखते हैं कुछ गिने-चुने संस्थानों को छोड़ दें तब पत्रकारों का कोई कंपनी में रिकॉर्ड मिल पाना मुश्किल होता है ऐसे में सरकार को चाहिए की स्थानीय पत्रकार संगठन तथा स्थानीय सूचना विभाग की मदद से सूची लेकर दिवंगत हुए पत्रकारों के परिवारों तक आर्थिक मदद जल्द से जल्द पहुंचाएं।
डॉ. पवन सक्सेना ने हिंदी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष में देश के पत्रकारों तथा लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले सभी देशवासियों को बधाई दी तथा कहा कि आलोचना का बुरा मानने की प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ी है पर हमें ध्यान रखना होगा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए आलोचना भी आवश्यक है और हर आलोचना विरोध नहीं होती सकारात्मकता का वह सुधार का रास्ता भी दिखाती है। वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना ने कहा कि पत्रकार अपडेट रहकर कहीं न कहीं लिखें जरूर। अगर हमारे संस्थान हमारी सच की रिपोर्ट को किसी भी दबाव में नकार दें भी तो भी हम अपने ब्लॉग या सोशल मीडिया पर अपनी तथ्यात्मकता के साथ अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर ही सकते हैं। निर्भय सक्सेना का कहना है कि इस आपदा काल मे आज भी मीडिया कई तरह के आरोपों से घिरा हुआ है और अब तो समाचारों को गलत तरीके से पेश करने का दंश भी पत्रकार ही झेलता है।उन्होंने कहा कि एक पुरानी कहावत है कि बिना आग के धुंआ नहीं उठता इसलिए हमें सजगता से तथ्यों के आधार पर अपनी रिपोर्टिंग को बल देना ही होगा। यह सही है कि आजकल कार्पोरेट घराने के दौर में संस्थान के हित के लिए मीडिया जगत का भी बाजारीकरण हो ही गया। आजकल विज्ञापन संस्कृति ने पत्रकारो को भी दबाव में ला दिया है। अब तो पत्रकार को उसका संस्थान भी केवल अपना प्रतिनिधि मानता है पत्रकार नहीं। यही कारण है इस कोरोनाकाल में पत्रकार अधिक दवाब में रहा। बरेली में कई पत्रकारो ने कोविड 19 में जान गवाई पर उन्हें संस्थान या सरकार से मदद कम ही मिली। उनके पत्रकार साथी ही उन्हें धीरज बंधाते रहे। पत्रकार संगठन भी मानते हैं कि नियम से अलग हट पत्रकारों की सरकार मदद करे। सबके दुख दर्द में खड़ा होता रहा अब दिवंगत हो चुका पत्रकार का परिवार अकेला महसूस कर रहा है। अन्य श्रमजीवी पत्रकार भी किसी तरह अपना जीवन यापन कर पा रहे हैं। वेबिनार की अध्यक्षता कर रहे राकेश मथुरिया ने कहा कि समय के साथ-साथ पत्रकारिता में बहुत बदलाव आ गया है। पत्रकारों का काम सूचना पहुंचाने का ही रह गया है लेकिन फिर भी इस आपदाकाल में पत्रकारिता करना एक चुनौती से कम नहीं है। वेबिनार का संचालन भारतीय पत्रकारिता संस्थान के निदेशक सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने करते हुए कहा कि किसी भी परिस्थितियों में कोरोना से पीड़ित पत्रकारों के परिजनों को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए।सभी दिवंगत पत्रकारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

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