नीरज सिसौदिया, बरेली
प्रदेश में भले ही विधानसभा चुनाव वर्ष 2022 में प्रस्तावित हों मगर सियासी उठापटक अभी से तेज हो गई है. जनता ही नहीं नेता भी भाजपा के विकल्प के रूप में समाजवादी पार्टी को ही देख रहे हैं. छोटे नेता तो पहले ही सपा में सियासी जमीन तलाशने में जुटे थे अब कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के कुछ दिग्गज भी समाजवादी पार्टी में वजूद तलाश रहे हैं. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और बसपा में बड़ा बिखराव देखने को मिल सकता है. हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा नेे बसपा के लिए एक सीट छोड़ कर दांव खेला है उससे बसपा की छवि को काफी नुकसान पहुंचा है. बसपा समर्थक ये मान कर चल रहे हैं कि बसपा कभी भी भाजपा की शरण में जा सकती है. ऐसे मेंं बसपा केे वो दिग्दिगज पार्टी से किनारा करने की तैयारी कर रहे हैं जो कभी बसपा को भाजपा केे विकल्प के तौर पर देख रहे थे. अब सपा ही उनकेे लिए एक सुरक्षित विकल्प रह गया है.
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी ने पिछले कुछ वर्षों के शासन काल में प्रदेश में जिस तरह का माहौल बनाया है उसने राजनीति का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण कर दिया है. प्रदेश के गिने-चुने लोगों को छोड़ दे तो हिन्दू और मुस्लिम अब एक-दूसरे को दुश्मन के नजरिये से देखने लगे हैं. सपा शासनकाल में जिस तरह से मुस्लिमों को संरक्षण प्राप्त था वह अब नहीं मिल रहा. हिन्दू हावी हो चुके हैं और मुस्लिमों के आजम खां, अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे नेताओं की धज्जियां उड़ चुकी हैं. कांग्रेस प्रदेश में फिलहाल खोई हुई जमीन तलाश रही है और मायावती की दलित राजनीति अब गर्त में समा चुकी है. यूपी की सियासत अब अगड़ों और पिछड़ों से बाहर निकलकर हिन्दू और मुस्लिम पर आ खड़ी है. हालांकि डर सिर्फ मुस्लिम नेताओं को ही नहीं बल्कि गैर भाजपाई हिन्दू नेताओं को भी है. अगर कांग्रेस या मायावती के खेमे में मुस्लिम जाते हैं तो भाजपा को इसका पूरा फायदा मिलेगा. मुस्लिम वोट बंट जाएंगे और हिन्दू वोट एकतरफा भगवा दल के खाते में चले जाएंगे. ऐसे में न तो कांग्रेस नेता सुरक्षित रह पाएंगे और न ही बसपा के नेता. अगर सपा के समर्थन में मुस्लिम एकजुट होते हैं तो भाजपा को कड़ी चुनौती दी जा सकती है क्योंकि सपा के खाते से यादव वोटों को निकालना लगभग नामुमकिन है. सपा सरकार बना पाए या न बना पाए पर दिग्गज नेताओं को एक मजबूत राजनीतिक संरक्षण जरूर प्रदान कर सकती है. कांग्रेस और बसपा ऐसा नहीं कर सकतीं. बसपा का बिखराव हाल ही में सामने आ चुका है और कांग्रेस के दिग्गज नेता इस बात को समझ चुके हैं. इनमें कुछ नेता ऐसे हैं जो चाहकर भी भगवा ब्रिगेड का हिस्सा नहीं बन सकते. यही वजह है कि अब तक उन्होंने कांग्रेस और बसपा का सहारा लिया और अब सपा के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं रह गया है. इनमें कुछ ऐसे नेता भी शामिल हैं जो पहले सपा का ही हिस्सा थे लेकिन कतिपय कारणों से बसपा या कांग्रेस में शामिल हो गए थे. अब ऐसे नेता भी सपा में वापसी की तैयारी कर रहे हैं.
बसपा और कांग्रेस के साथ ही चाचा शिवपाल यादव भी भतीजे अखिलेश के खेमे में वापसी की जुगत में हैं. संभव है कि आगामी विधानसभा चुनाव सिर्फ योगी और अखिलेश के चेहरे पर ही लड़ा जाए. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस और बसपा के लिए वापसी के रास्ते लंबे समय के लिए बंद हो जाएंगे.
यही वजह है कि अब कांग्रेसी दिग्गज सपा को बेहतर विकल्प के तौर पर देख रहे हैं. कुछ शहरों में कांग्रेस एवं अन्य दलों के छुटभैयों ने तो सपा का दामन थामने का सिलसिला शुरू भी कर दिया है. जल्द ही कुछ दिग्गज भी इस कतार में शामिल होने वाले हैं.
सियासी जानकारों का मानना है कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दोनों दलों को जोरदार झटका देने की तैयारी है. यही वजह है कि इस बार अखिलेश यादव पहले ही सभी सीटों पर सपा प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर चुके हैं. वह किसी भी अन्य पार्टी से गठबंधन करने के पक्ष में नहीं हैं. माना जा रहा है कि जिन सीटों पर गठबंधन धर्म निभाते हुए सपा अपने उम्मीदवार नहीं उतारा करती थी अब उन सीटों से दूसरे दलों से सपा में शामिल होने वालों को मौका दिया जायेगा.