यूपी

पीएसपी के पहिये के बिना नहीं दौड़ेगी सपा की साइकिल, सीटों के बंटवारे पर अटका है गठबंधन, पढ़ें क्या है पूरा मामला

Share now

नीरज सिसौदिया, बरेली
एकता से बढ़कर कोई ताकत नहीं होती, पहली क्लास में सिखाया जाने वाला यह सबक शायद पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भूल गए हैं. यही वजह है कि हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते जनाधार और अपनों से बढ़ती दूरियां समाजवादी पार्टी के अस्तित्व पर ग्रहण लगाती जा रही हैं. साल 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. अगर अखिलेश यादव ने अभी भी सबक नहीं लिया तो बिहार में जो हाल विपक्ष का हुआ है उससे कहीं अधिक बुरी स्थिति यूपी में समाजवादी पार्टी की हो सकती है.
दरअसल, समाजवादी पार्टी का सूर्यास्त तो उसी वक्त शुरू हो गया था जब अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच दूरियां बढ़ने ली थीं. वर्चस्व की जंग में शिवपाल यादव और अखिलेश यादव अलग हो गए. शिवपाल यादव ने अलग पार्टी बना ली. नाम रखा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी. शिवपाल अपने भतीजे से तो अलग हो गए मगर भाई का साथ उन्होंने नहीं छोड़ा. मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के तो संरक्षक थे ही, शिवपाल यादव की पार्टी के भी संरक्षक बन गए. हाल ही में सपा के साथ ही प्रसपा ने भी मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन बड़े ही धूमधाम से मनाया. शिवपाल के साथ कई दिग्गज भी सपा का साथ छोड़कर प्रसपा का हिस्सा बन चुके हैं. इनमें वीरपाल सिंह यादव, अशोक वाजपेयी जैसे कुछ ऐसे नेता भी शुमार हैं जिन्होंने अपने-अपने इलाके में सपा को एक पहचान दिलाई थी. सपा से ऐसे नेताओं के अलग होने के बाद पार्टी कमजोर हुई. शिवपाल और अखिलेश के वैचारिक मतभेदों का असर पार्टी पर पड़ा. विधानसभा चुनाव में हार के बाद मायावती से भी अखिलेश का गठबंधन टूट गया. वहीं, शिवपाल यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि सपा के बिना उनका कोई वजूद नहीं है. उनकी पार्टी कभी भी सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती. वह यह भी जानते हैं कि भाजपा या किसी अन्य दल का हिस्सा बनने के बाद उनका सियासी वजूद पूरी तरह से खत्म हो जाता. लेकिन वह यह भी जानते थे कि वह सत्ता में भले ही न आ सकें पर सपा का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं. यही वजह रही कि शिवपाल ने कोई दूसरा दल ज्वाइन करने की जगह अपनी अलग पार्टी बना ली. साथ ही अखिलेश से नाता तोड़ा मगर मुलायम का साथ नहीं छोड़ा. यही वजह रही कि सपा के पुराने सिपहसालार भी आसानी से शिवपाल की पार्टी का हिस्सा बन गए. साथ ही सपा में गुटबाजी को भी शिवपाल के यही करीबी हवा दे रहे हैं. यह सारा खेल ही इसीलिए खेला जा रहा है कि अखिलेश यादव को शिवपाल अपनी ताकत का एहसास करा सकें. शिवपाल काफी हद तक इसमें कामयाब भी हो रहे हैं. हाल ही में हुए विधानसभा के उपचुनाव में हुई सपा की हार को इसकी बानगी के रूप में देखा जा सकता है. इसका असर अखिलेश यादव पर भी पड़ता नजर आ रहा है. पार्टी के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि जिस चाचा को अखिलेश यादव आसपास फटकना भी नहीं देना चाहते थे अब उनकी पार्टी के साथ गठबंधन करने पर विचार कर रहे हैं. सूत्र यह भी बताते हैं कि अखिलेश अपने चाचा की पार्टी को कुछ सीटें देने पर राजी भी हो गए हैं लेकिन शिवपाल यादव कम से कम पचास सीटें चाहते हैं. ये सीटें उन्हीं दिग्गजों के लिए चाहते हैं जिनके दम पर शिवपाल ने अखिलेश यादव को अपनी ताकत का एहसास दिलाया है. अखिलेश इस पर भी विचार कर रहे हैं. हालांकि अभी इस संबंध में कोई भी अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है. हां इतना जरूर कहा जा रहा है कि शिवापाल को मंत्री पद देने के लिए अखिलेश यादव जरूर तैयार हो गए हैं. सूत्र यह भी बताते हैं कि शिवपाल ने पचास सीटों की मांग तो रख दी है मगर वह कम सीटों पर भी समझौता करने को तैयार हैं. बहरहाल, आगामी विधामसभा चुनाव से पहले सपा और प्रसपा का मिलन संभव है. हो सकता है कि नए साल का पहला तोहफा इसी रूप में दोनों दलों के नेताओं के सामने आए.

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *