आयुर्वेद में कब्ज को विबंध कहा जाता है। कब्ज में मल निष्कासन की क्रिया अनियमित हो जाती है और इसमें मल सख्त और सूख जाता है जिसके कारण मल त्याग करने में दिक्कत होती है। वात दोष में असंतुलन के कारण ही कब्ज होती है एवं इस वजह से आंतों में आम (विषाक्त पदार्थों) और पुरिष (मल) जमने लगता है। कुछ मामलों में कफ और पित्त दोष के कारण भी कब्ज की समस्या हो सकती है।
कब्ज के कारण
अनुचित आहार, अपर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन, व्यायाम की कमी, मल त्याग करने जैसी प्राकृतिक इच्छाओं को दबाने, दिनचर्या में अचानक से बदलाव, अधिक यात्रा, फिशर (गुदा या गुदा द्वार में कट या दरार) और बवासीर, अत्यधिक रेचक (जुलाब) चीजों का सेवन, नसों के क्षतिग्रस्त होने और बड़ी आंत एवं मलद्वार से संबंधित कोई समस्या होने पर दोष में असंतुलन पैदा होने लगता है।
कब्ज के लक्षण
अमा के जमने पर कब्ज के निम्न लक्षण देखे गए हैं:
प्यास लगना, पेट दर्द, सिर में जलन, डकार का दब जाना, बहती नाक
पुरिष के जमने पर कब्ज हो तो निम्न लक्षण सामने आते हैं
पेशाब और मल ना आना, तेज दर्द
कब्ज की पंचकर्म चिकित्सा
शरीर से आम और पुरिष के जमाव को बाहर निकालने एवं कब्ज से राहत पाने के लिए आयुर्वेद में कई चिकित्साओं का वर्णन किया गया है। कब्ज की आयुर्वेदिक चिकित्साओं में स्नेहन (शरीर पर तेल या घी लगाकर विषाक्त निकालना), स्वेदन (पसीना निकालने की विधि), विरेचन (शुद्धिकरण) और बस्ती (एनिमा) आदि शामिल हैं।
कब्ज को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेद में हरीतकी (हरड़), विभीतकी, एरंड (अरंडी), दशमूल क्वाथ, त्रिफला चूर्ण, हरीतकी खंड, वैश्वानर चूर्ण, अभयारिष्ट और इच्छा भेदी रस आदि जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है।
स्नेहन
स्नेहन में जड़ी-बूटियों के गुणों से युक्त तेल से शरीर की मालिश की जाती है। व्यक्ति को किस दोष के असंतुलन के कारण कब्ज की समस्या हो रही है, इसी के आधार पर जड़ी-बूटियों का चयन किया जाता है।
दोष के आधार पर ही ये तय किया जाता है कि कितने दबाव के साथ व्यक्ति की मालिश करनी है। वात प्रकृति वाले व्यक्ति की हलकी और नरम मालिश करनी चाहिए। वहीं पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति की सामान्य मालिश की जाती है। अगर कोई व्यक्ति कफ प्रकृति का है तो उसे गहरे ऊतकों तक मालिश दी जाती है।
स्नेहन शरीर से अमा को साफ करने में मदद करती है और इस तरह कब्ज को नियंत्रित करने में ये मददगार साबित होती है।
स्वेदन
स्वेदन में पसीना निकालने के लिए कई प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। ये विषाक्त पदार्थों को उनकी जगह से हटाती है और उन्हें तरल में परिवर्तित कर देती है।
इस चिकित्सा द्वारा आम को विभिन्न ऊतकों से वापस जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) मार्ग में प्रवाहित किया जाता है एवं यहां से आम को शरीर से बाहर निकालना आसान होता है।
पसीना निकालने के लिए विभिन्न प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है जिनमें तप (सिकाई), उपनाह, ऊष्मा और धारा शामिल हैं। तप में गर्म कपड़े, धातु की वस्तु या गर्म हाथों को शरीर पर रखा जाता है, उपनाह में विभिन्न जड़ी-बूटियों या उनके मिश्रण से युक्त गर्म पुल्टिस का प्रयोग किया जाता है, ऊष्मा में गर्म भाप दी जाती है और धारा में पूरे शरीर पर औषधीय गर्म तरल को डाला जाता है।
विरेचन
ये एक सरल पंचकर्म (पंच क्रिया) तकनीक है जिसमें विभिन्न जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल कर मल त्याग के जरिए शरीर की सफाई की जाती है।
विरेचन के लिए सामान्य तौर पर जिन जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है उनमें एलोवेरा, रूबर्ब और सनाय शामिल हैं। हालांकि, व्यक्ति की चिकित्सकीय स्थिति के आधार पर अन्य जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
विरेचन पित्ताशय, यकृत और छोटी आंत से अतिरिक्त पित्त को निकालने में मदद करता है। इसके अलावा ये अनेक कफ रोगों में भी उपयोगी है। ये आम को बाहर निकालने और असंतुलित हुए दोष को संतुलित कर कब्ज से राहत दिलाने में असरकारी है।
बस्ती
ये एक आयुर्वेदिक एनिमा चिकित्सा है जिसका प्रमुख तौर पर प्रयोग वात के असंतुलित होने पर किया जाता है।
एलोपैथी एनिमा सिर्फ मलद्वार को साफ करते हैं और बड़ी आंत में 8 से 10 ईंच तक ही पहुंच पाते हैं। हालांकि, बस्ती पूरी बड़ी आंत, मलद्वार और गुदा पर कार्य करती है और ना सिर्फ मल को साफ करती है बल्कि आम। को बाहर निकालती है एवं कब्ज का इलाज करती है।
बस्ती क्रिया कब्ज के अलावा साइटिका, गठिया, कमर के निचले हिस्से में दर्द, मानसिक विकार जैसे कि मिर्गी और अल्जाइमर रोग को नियंत्रित करने में भी इस्तेमाल की जाती है।
कब्ज की औषधियों से चिकित्सा-
हरीतकी
हरीतकी तंत्रिका, पाचन, श्वसन, उत्सर्जन और मादा जनन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें ऊर्जादायक, रेचक (मल निष्कासन की क्रिया को नियंत्रित करने वाली), वायुनाशी (कफ निकालने वाला), कृमिनाशक और संकुचक (शरीर के ऊतकों को संकुचित करने वाला) गुण पाए जाते हैं। ये खांसी, दमा, पेट का आकार बढ़ना, त्वचा पर खुजली, शोथ, अपच और कब्ज जैसे कई रोगों को नियंत्रित करने में मदद करती है।
ये काढ़े, पेस्ट, गरारे और पाउडर के रूप में उपलब्ध है।
विभीतकी
विभीतकी पाचन तंत्र, तंत्रिका, श्वसन और उत्सर्जन प्रणाली पर कार्य करती है और इसमें कृमिनाशक, रोगाणुरोधक, रेचक, ऊर्जादायक और संकुचक (शरीर के ऊतकों को संकुचित करने वाला) गुण होते हैं।
ये असंतुलित हुए दोष को ठीक करती है और शोधन (सफाई) टॉनिक के रूप में कार्य करती है। विभीतकी शरीर से आम को बाहर निकालने में मदद करती है। इस तरह विभीतकी कब्ज को नियंत्रित करने में असरकारी होती है।
हल्दी के साथ विभीतकी का इस्तेमाल करने पर एलर्जी को खत्म करने में मदद मिलती है। इस तरह ये त्वचा संबंधित रोगों और दमा की बामारी को नियंत्रित करने में प्रभावी होती है। ये खासतौर पर गर्भावस्था के दौरान उल्टी को रोकती है और सूजन को भी कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
एरंड या अरंडी
एरंड को अरंडी भी कहा जाता है। विभिन्न रुमेटिक रोगों को नियंत्रित करने के लिए अरंडी के बीज के तेल का प्रयोग किया जाता है। अपरिष्कृत अरंडी के तेल की तुलना में परिष्कृत अरंडी का तेल कम प्रभावी है।
ये कई विकारों जैसे कि पेट दर्द, गठिया, श्वसनीशोथ (ब्रोंकाइटिस), पथरी, दमा और कब्ज आदि को नियंत्रित करने में मददगार है।
कब्ज के लिए अरंडी का तेल सबसे लोकप्रिय और प्रभावी औषधि है। मल को निकालने के लिए एनिमा के तौर पर इसका उपयोग किया जाता है।
कब्ज के लिए आयुर्वेदिक औषधियां
दशमूल क्वाथ
दशमूल क्वाथ को दस जड़ी-बूटियों की जड़ से तैयार किया गया है जिनमें श्योनाक, बिल्व (बेल), गंभारी, पृश्निपर्णी (पिठवन), बृहती (बड़ी कटेरी), कंटकारी (छोटी कटेरी), अग्निमंथ और गोक्षुर (गोखरू) शामिल हैं। यह बढ़े हुए वात को खत्म करने के लिए इस्तेमाल होने वाली सबसे सामान्य औषधि है। इसलिए कब्ज की समस्या में भी सुधार करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
इस औषधि से वात के कारण हुए दमा, भगंदर और खांसी का भी इलाज किया जाता है। इसके अलावा ये अस्थिसंधिशोथ (ऑस्टियोआर्थराइटिस) और संधिशोथ (रुमेटाइड आर्थराइटिस) जैसे हड्डियों के रोग के इलाज में भी प्रभावी है। (और पढ़ें – हड्डियों में दर्द का इलाज)
त्रिफला चूर्ण
त्रिफला चूर्ण एक प्रसिद्ध औषधि है। इस आयुर्वेदिक दवा में तीन फलों जैसे कि आमलकी (आंवला), विभीतकी और हरीतकी का चूर्ण मौजूद है। ये प्रमुख तौर पर जठरांत्र मार्ग पर असर करती है और इसमें ऊर्जादायक, रेचक, सूजनरोधी, बढ़ती उम्र को रोकने, इम्यूनोमॉड्यूलेट्री (इम्यून सिस्टम के कार्य को प्रभावित करने वाला पदार्थ), जीवाणुरोधी, कीमो से रक्षा करने वाले, डायबिटीज रोधी और कैंसर रोधी गुण पाए जाते हैं। ये पाचन को बेहतर करता है और खाने के अवशोषण एवं रक्त प्रवाह में सुधार लाता है जिससे आम दोष निष्कासन में मदद मिलती है और मल साफ हो जाता है। ये कोलेस्ट्रोल को घटाता है और लाल रक्त कोशिकाओं एवं हीमोग्लोबिन के उत्पादन को बढ़ाता है।
हरीतकी खंड
ये मिश्रण अजवाइन के बीज, त्रिकटु (पिप्पली, शुंठी [सूखी अदरक] और मारीच [काली मिर्च] तीन कषाय), सोआ के बीज, धनिया, लौंग, सेन्ना की पत्तियां और हरीतकी से तैयार किया गया है। इसमें एंटासिड, रेचक, कृमिनाशक और वायुनाशक गुण मौजूद हैं। ये कब्ज, हाइपरएसिडिटी और खांसी के इलाज में भी असरकारी है।
वैश्वनार चूर्ण
इसमें काला नमक, अजवाइन, शुंठी और हरीतकी जैसी सामग्रियां मौजूद हैं।
पारंपरिक रूप से काले नमक का इस्तेमाल रेचक, अल्सररोधी, रोगाणुरोधी और कामोत्तेजक के रूप में किया जाता है। इसमें मौजूद अन्य सामग्रियां रेचक, वाशुनाशक और पाचक गुणों के लिए जानी जाती हैं। इसलिए वैश्वनार चूर्ण कब्ज को नियंत्रित करने की प्रभावी और शक्तिशाली औषधि है।
अभयारिष्ट
अभयारिष्ट एक आयुर्वेदिक मिश्रण है जो कि विडंग (फॉल्स काली मिर्च), हरीतकी, द्राक्ष (अंगूर), धनिये के बीज, इंद्रवारुणी (चित्रफल) की जड़ें, पिप्पली की जड़ें, जयपाल की जड़ें और अन्य जड़ी बूटियों के खमीरीकृत मिश्रण से बना है। ये शरीर से आम दोष को निकालकर कब्ज के इलाज में मदद करती है। इसके अलावा ये बवासीर और शोथ के इलाज में भी असरकारी है। अभयारिष्ट अग्निमांद्य (जठराग्नि का मंद पड़ना) को बेहतर, चयापचय को बढ़ाने और अतिरिक्त वसा को खत्म करने में मदद करता है।
इच्छाभेदी रस
इच्छाभेदी रस में शुद्ध गंधक (साफ किया गया गंधक), शुद्ध पारद (साफ किया गया पारा), शुद्ध टंकण (साफ किया गया सुहागा), हरीतकी, शुंठी, शुद्ध जयपाल के बीज और नींबू का रस मौजूद है।
ये दीपन (भूख बढ़ाने वाला), पाचन और रेचक गुणों से युक्त है। इसका प्रयोग प्रमुख तौर पर कब्ज के इलाज में किया जाता है।
इच्छाभेदी रस का इस्तेमाल अपच और पेट दर्द को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है। वसायुक्त पदार्थों के कारण हुई कब्ज और अत्यधिक पेट फूलने की समस्या को भी इच्छाभेदी रस के इस्तेमाल से नियंत्रित किया जा सकता है।।
पथ्य
अपने आहार में हरी-सब्जियों, गाजर, मूली, पपीता, खीरा, लहसुन, पत्ता गोभी, करेला और लौकी को शामिल करें, चावल और पुराने चावल जैसे अनाजों का सेवन करें, मूंग दाल और अरहर जैसी दालों को अपने आहार में शामिल करें, पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं, नियमित व्यायाम करें।
अपथ्य
उड़द की दाल और मटर आदि का सेवन न करें, मसालेदार खाना और जंक फूड खाने से बचें।
प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि मल निष्कासन या पेशाब को रोके नहीं, मछली के साथ दूध जैसे अनुपयुक्त खाद्य मिश्रणों को न लें, गलत मुद्रा में ना बैठें और अत्यधिक संभोग करने से बचें, किसी भी रोग को आयुर्वेदिक उपचार के द्वारा पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है लेकिन इसके अनुचित एवं अनुपयुक्त प्रयोग के कारण कुछ हानिकारक प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं। इसलिए किसी भी जड़ी-बूटी, औषधि या चिकित्सा का इस्तेमाल करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह जरूर लेनी चाहिए क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए ये अनुचित हो सकती है।
प्रस्तुति – डा. रंजन विशद, मेडिकल अफसर, मीरगंज, बरेली