यूपी

शहर विधानसभा सीट : दशकों से उपेक्षित रहा है खत्री पंजाबी समाज, इस बार टिकट की उठने लगी मांग

Share now

नीरज सिसौदिया, बरेली
यूपी की सियासत अभी जातिवाद से बाहर नहीं निकल पाई है. यही वजह है कि आज भी यहां टिकटों के बंटवारे में जातीय और धार्मिक समीकरण का पूरा ख्याल रखा जाता है. बरेली शहर विधानसभा सीट भी इससे अछूती नहीं है. खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी यहां टिकट के बंटवारे में जातीय समीकरण साधती रही है. यहां से हमेशा बनिया या कायस्थ प्रत्याशी ही उतारती आ रही है. वैसे तो यह सीट भाजपा का गढ़ रही है लेकिन फिर भी भाजपा यहां जातिवादी राजनीति से बाहर नहीं निकल पाई है. चूंकि अब तक यह सीट कायस्थ बाहुल्य रही है इसलिए यहां से कभी पूर्व मंत्री दिनेश जौहरी तो कभी डा. अरुण कुमार को उतारती आ रही है. जब कैंट सीट अलग नहीं हुई थी तब राजेश अग्रवाल पर भी दांव खेला गया था. इसी जातिवादी राजनीति की वजह से भाजपा ने यहां से कभी भी खत्री पंजाबी समाज का उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा. सिर्फ भाजपा ही नहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने भी इस समाज को उपेक्षित ही रखा है. चूंकि खत्री पंजाबी समाज अब तक बिखरा हुआ था इसलिए शहर विधानसभा सीट से किसी भी पार्टी ने इस समाज के प्रतिनिधि को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारना मुनासिब नहीं समझा. हालांकि लगभग चार दशक पूर्व कांग्रेस ने इस समाज से रामसिंह खन्ना को चुनावी मैदान में उतारा था. इसके बाद न तो सियासी दलों ने इस समाज को गंभीरता से लिया और न ही खत्री पंजाबी या सिख समाज ने टिकट के लिए आवाज उठाई. लेकिन इस बार परिस्थितियां बदलती नजर आ रही हैं. खत्री पंजाबी समाज के कई नेता समाज और राजनीति में अपना अलग वजूद स्थापित कर चुके हैं. कुछ नेता तो एक अहम मुकाम भी हासिल कर चुके हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस बार खत्री पंजाबी समाज शहर विधानसभा सीट पर निर्णायक भूमिका में है. समाज के प्रबुद्ध वर्ग का दावा है कि उनकी मतदाता संख्या लगभग 50 हजार से भी अधिक है. पंजाबी महासभा के अध्यक्ष संजय आनंद तो समाजवादी पार्टी से टिकट के प्रबल दावेदारों में शामिल भी हो चुके हैं.

संजय आनंद

वहीं, भाजपा से खत्री पंजाबी समाज के नेताओं की बात करें तो सबसे पहला नाम महानगर अध्यक्ष डा. केएम अरोड़ा का आता है. डा. अरोड़ा लंबे समय से पार्टी की खिदमत करते आ रहे हैं. उनके भाई आरेंद्र अरोड़ा कुक्की सभासद हैं. भाभी और भतीजा रजत अरोड़ा भी पार्टी में अहम जिम्मेदारियां निभा रहे हैं. हालांकि वर्ष 2006 में भी डा. केएम अरोड़ा को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा था जब उन्होंने वार्ड 11 से सभासद का टिकट मांगा था लेकिन उनकी जगह बबलू पटेल को टिकट दे दिया गया था. इसके बाद डा. अरोड़ा निर्दलीय मैदान में उतरने को मजबूर हुए और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी प्रेमशंकर कन्नौजिया को इसका लाभ मिला और वह महज एक वोट से चुनाव जीत गए थे. उनकी प्रबल दावेदारी को देखते हुए हाल ही में उनका नाम शराब माफिया और जमीनों के कारोबार में भी जोड़ा गया था. बहरहाल, खत्री पंजाबी समाज का एक बड़ा चेहरा डा. केएम अरोड़ा हैं.

डा. केएम अरोड़ा

इस कड़ी में दूसरा नाम पूर्व उप सभापति अतुल कपूर का आता है. अतुल कपूर की गिनती तेज तर्रार युवा सभासदों में होती है. दरअसल, अतुल कपूर ने पहली बार सभासद का चुनाव लड़े. वह जिस वार्ड से चुनाव लड़े उस वार्ड से भाजपा लंबे समय से चुनाव हारती आ रही थी. अतुल कपूर ने प्रह्लाद मेहरोत्रा को पटखनी देते हुए न सिर्फ सभासद का चुनाव जीता बल्कि भाजपा का वनवास भी खत्म किया. अतुल कपूर समाजसेवा के क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभाते आ रहे हैं. यही वजह रही कि पहली बार सभासद बनने के बावजूद वह उपसभापति भी चुने गए और दो साल का कार्यकाल निर्विवाद तरीके से पूरा किया.

अतुल कपूर

खत्री पंजाबी समाज इस युवा चेहरे को भी शहर विधानसभा सीट से प्रत्याशी के रूप में देखना चाहता है.
इसी कड़ी में तीसरा नाम अनुपम कपूर का है. अनुपम कपूर समाजसेवा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. शहर में वह अपना एक अलग वजूद स्थापित कर चुके हैं. भाजपा में गहरी पैठ भी रखते हैं. शहर विधानसभा क्षेत्र के कई पार्षद भी उनके समर्थक हैं. शहर विधानसभा सीट से टिकट के दावेदारों में उनका नाम भी चर्चा में आ चुका है.

अनुपम कपूर

पंजाबी समाज के सक्रिय नेताओं का जिक्र समाजसेवी अश्विनी ओबरॉय के बिना पूरा नहीं हो सकता. अश्विनी ओबरॉय वह शख्सियत हैं जिन्हें स्व. राजीव गांधी केंद्रीय राजनीति में ले जाना चाहते थे लेकिन इससे पहले ही उनकी हत्या कर दी गई. उस दौरान अश्विनी ओबरॉय की गिनती कांग्रेस के जमीनी नेताओं में हुआ करती थी. राजीव गांधी की हत्या के बाद अश्विनी ओबरॉय का राजनीति से मोहभंग हो गया. वह राजनीति छोड़कर समाजसेवा के क्षेत्र में ही सक्रिय भूमिका निभाने लगे. समाजसेवा भी ऐसी कि जो भी दर पर आया वह खाली हाथ नहीं लौटा.

अश्विनी ओबरॉय

अश्विनी ओबरॉय ने अपनी कोई सामाजिक संस्था नहीं बनाई लेकिन बरेली में समाजसेवा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने वाली शायद ही कोई ऐसी संस्था होगी जिसमें अश्विनी ओबरॉय सहयोग न करते हों. वह हर साल लाखों रुपये समाजसेवा पर ही खर्च कर देते हैं लेकिन पब्लिसिटी से कोसों दूर रहते हैं. पंजाबी समाज उन्हें भी शहर विधानसभा सीट से मैदान में देखना चाहता है फिर चाहे वह भाजपा से लड़ें, कांग्रेस से मैदान में उतरें या किसी अन्य दल से.
इसके अलावा खत्री पंजाबी और सिख समाज के भी कुछ चेहरे हैं जिन्हें समाज के लोग विधायक बनते देखना चाहते हैं. इनमें से किसी एक भी व्यक्ति को टिकट मिलता है तो खत्री पंजाबी और सिख समाज का एकमुश्त वोट उस उम्मीदवार को मिलेगा.
इस बार यह समाज शहर विधानसभा सीट से भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि शहर विधानसभा सीट पर लगभग 40 फीसदी से भी अधिक मुस्लिम वोटर हो चुके हैं. समाजवादी पार्टी से टिकट चाहे किसी को भी मिले मुस्लिम वोट भाजपा के खाते में नहीं जाएगा. अगर सपा संजय आनंद या किसी भी खत्री पंजाबी या सिख समाज के दावेदार को अपना उम्मीदवार बनाती है तो पंजाबी-मुस्लिम समाज मिलकर भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है.

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *