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जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव : वीरपाल, महिपाल और भगवत सरन होंगे किंग मेकर, जानिए क्यों?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
जिला पंचायत चुनाव के परिणाम आने के बाद अब जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए घमासान तेज हो गया है. समाजवादी पार्टी सबसे अधिक सीटें लेकर इस दौड़ में सबसे आगे नजर आ रही है तो भाजपा भी अपना अध्यक्ष बनाने के लिए सियासी घोड़े दौड़ा रही है. ऐसे में खरीद फरोख्त और जुगाड़बंदी के खेल की आशंकाएं भी बढ़ गई हैं. सपा की जीत पर भले ही जिला अध्यक्ष अगम मौर्या का कद बढ़ता नजर आ रहा है लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष पद के असल किंग मेकर की भूमिका में जो तीन मुख्य चेहरे नजर आ रहे हैं उनमें अगम मौर्या कहीं खड़े नजर नहीं आते. किंग मेकर की भूमिका में पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार, पूर्व विधायक महिपाल सिंह यादव और पूर्व सांसद वीरपाल सिंह यादव ही दिखाई दे रहे हैं. अगर ये तीनों सपा का समर्थन नहीं करेंगे तो सपा जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने में नाकाम हो जाएगी. ऐसा क्यों होगा इसकी कई वजहें हैं.
दरअसल, जिला पंचायत चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका है. समाजवादी पार्टी को बहुमत के लिए सात और सदस्य चाहिए क्योंकि अभी तक उसे सिर्फ 24 सीटें ही मिल सकी हैं. 3-4 सीटों पर पेंच अभी भी फंसा हुआ है. वहीं, भाजपा अगर बसपा व सभी निर्दलीयों को अपने खेमे में कर लेती है तो ही अपना अध्यक्ष बना पाएगी. चूंकि निर्दलीयों का आंकड़ा 13 है इसलिए वे सपा का खेल बिगाड़ने का भी दम रखते हैं.
अब सबसे पहले बात करते हैं पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार की. भगवत सरन ने चुनाव परिणाम आने से पूर्व इंडिया टाइम 24 से खास बातचीत में यह दावा किया था कि उनके विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाली सभी आठ सीटों पर उनके समर्थित उम्मीदवार ही जीतेंगे. भगवत सरन का यह दावा काफी हद तक सही भी साबित हुआ. आठ सीटें तो उनके समर्थित उम्मीदवार नहीं जीत सके पर छह सीटों पर जीत जरूर मिली. इसी के साथ भगवत सरन सपा के एकमात्र ऐसे पूर्व विधायक बन गए हैं जिसने अपने विधानसभा क्षेत्र की सबसे अधिक सीटें जितवाई हैं.

भगवत सरन गंगवार

अब आधा दर्जन सदस्य भगवत सरन के समर्थित तो हैं ही. साथ ही कुछ निर्दलीय भी उनके करीबी बताए जा रहे हैं. चूंकि कुर्मी बिरादरी के कुछ और प्रत्याशी भी निर्दलीय जीते हैं जो भगवत सरन के करीबी माने जा रहे हैं. ऐसे में जिला पंचायत अध्यक्ष का ताज भगवत सरन को भरोसे में लिए बिना किसी के सिर पर नहीं सजाया जा सकता. हालांकि, एक सीट पर भगवत सरन अपने चहेते को टिकट नहीं दिलवा सके थे. जिसके चलते अगम मौर्या को उनका विरोध भी झेलना पड़ा था और अंतत: भगवत सरन का वह करीबी प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरा था और जीत भी गया. बहरहाल, लगभग आधा दर्जन से भी अधिक सदस्यों के साथ भगवत सरन मजबूत स्थिति में होने के चलते किंगमेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं.
अब बात करते हैं महिपाल सिंह यादव और वीरपाल सिंह यादव की. दोनों ही दिग्गज नेता हैं और बरेली की सियासत में अपना अलग वजूद भी रखते हैं. मजे की बात है कि दोनों समधि हैं और वीरपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से अपनी जिस पुत्रवधु को मैदान में उतारा था वह सपा नेता महिपाल सिंह यादव की ही बेटी हैं. महिपाल की बेटी प्रसपा से चुनाव जीत गई हैं. साथ ही उनकी पत्नी और पुत्रवधु भी जीत चुकी हैं.

महिपाल सिंह यादव

सूत्र बताते हैं कि उक्त चुनाव में अपने कुछ चहेतों को टिकट दिलवाने में नाकाम रहे महिपाल सिंह यादव के कुछ समर्थक निर्दलीय मैदान में उतरे थे. जिनमें से कुछ जीत भी गए हैं. साथ ही वीरपाल सिंह यादव के राजनीतिक शिष्य भी निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं. वहीं, सुभाष पटेल से नाराज कुछ भाजपाई जिला पंचायत सदस्य भी वीरपाल के संपर्क में हैं. अगर वीरपाल और महिपाल एक हो गए तो वह भी किसी का भी खेल बना अथवा बिगाड़ सकते हैं.

वीरपाल सिंह यादव

दिलचस्प बात यह है कि भगवत सरन गंगवार को समाजवादी पार्टी में लाने वाले वीरपाल सिंह यादव ही थे. उन्हें मंत्री बनवाने तक में वीरपाल की अहम भूमिका रही है. वीरपाल भले ही अब समाजवादी पार्टी का हिस्सा न हों लेकिन सपा में उनके चाहने वालों की कमी नहीं है. साथ ही आगामी विधानसभा चुनाव से पहले वीरपाल फिर से सपा में मजबूत स्थिति में वापसी कर सकते हैं. ऐसे में भगवत सरन गंगवार उनके और महिपाल यादव के खिलाफ जाने का निर्णय इतनी आसानी से नहीं ले सकते. मुमकिन है कि वह दोनों को अपने खेमे में कर लें. बहरहाल, जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अब तक धन बल के बूते जीती जाती रही है. इस बार भी इसकी संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.

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