झारखण्ड

पर्यावरण का आवरण ओढे़ चार सौ साल पुराना है पेंक का बरगद पेड़

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बोकारो थर्मल, कुमार अभिनंदन 
पूरी दुनिया का वातावरण प्रदूषण के चपेट में है। यह स्थिति वनों के अंधाधुंध कटाई के कारण उत्पन्न हुई है। विकास के नाम पर जिस प्रकार जंगलों की कटाई की गई है उसका परिणाम आज पूरी मानव जाति भुगत रहा है। वहीं इस विपरीत परिस्थिति में भी ग्रामीण क्षेत्र में पेडों की पूजा करतेहैं। ऐसा ही बेरमोअनुमंडल के नावाडीह प्रखंड अन्तर्गत पेंक में एक बरगद का पेड है। बड़का बोर के नाम से ऊपरघाट में प्रसिद्धि प्राप्त है। चार एकड़ जमीन पर फैला है।
इस पेड की मान्यता है कि यह चार सौ साल से अपनी जडें जमाई खडी है। जिस पर खोज आज भी निरंतर जारी है। पर्यावरण दिवस के अवसर पर यहॉं के ग्रामीण प्रतिवर्ष इसकी रक्षा के लिए पूजा पाठ करते हैं। बताया जाता है कि इस पेड को यहां के घटवार परिवार के पूर्वजों ने लगाई थी जो आज भी इस पूरे इलाके लिए पूजनीय है। मान्यता के अनुसार पहली बैशाख माह में महुआ के नई फुल से बना रस यथा शराब को पहली भेंट की जाती है ताकि गांव में खुशहाली बनी रहे।

1908 के पहली जनगणना में इस पेड का जिक्र है। उस सर्वे में ही 400 साल पुराना पेड होने की बात कही गई है। पर्यावरण पर शोध करने वाले हजारीबाग के देवदत ने भी अपनी किताब में इस बरगद के पेड का जिक्र किया है। वैसे ग्रामीण क्षेत्र के लोग पेडों को पर्यावरण से ज्यादा धार्मिक दृष्टिकोण से मानते हैं। उन्हें तो बाद में मालूम होता है कि पेड पर्यावरण के लिए उपयुक्त है। अन्यथा पीपल के पेड को काटना सनातन में मनाही है। पीपल के पेड को काटने पर पाप लगता है, ऐसा पूर्वजों ने कहकर गए हैं। कालांतर में वैद्यों को मालूम था कि पीपल के पेड 24 घंटा ऑक्सीजन देता है। यदि उस समय
यह कहा जाता है कि पीपल 24 घंटा ऑक्सीजन देता है इसलिए नही काटना है तो शायद लोग नही मानते। लेकिन जब यह कहा गया कि सनातन धर्म में पीपल को काटने से पाप लगेगा। उस बात को मानते हुए आज भी ग्रामीण क्षेत्र में लोग इसी परंपरा को मानते हैं। ऐसा ही इस बरगद के पेड के साथ पूर्वजों की
मान्यता जुडी हुई है। इसलिए आसपास के लोग आज भी 5 जून को पूजा पाठ कर इसकी रक्षा की संकल्प लेते हैं।

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