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राजेश अग्रवाल ने सिर्फ अपने उद्योगों का विकास किया, पुराने शहर सहित दलितों-पिछड़ों व गरीबों के इलाकों में कोई काम नहीं हुआ, सरकार और कैंट विधायक पर जमकर बरसे सपा नेता इं. अनीस अहमद, पढ़ें स्पेशल इंटरव्यू

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इंजीनियर अनीस अहमद खां राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं. वह दो बार विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. इस बार कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के प्रबल दावेदार भी हैं. अबकी बार वह किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे? वर्तमान कैंट विधायक को वह कितना सफल मानते हैं? राजनीति में उनका आगमन कब हुआ? चुनाव जीतने पर उनकी प्राथमिकताएं क्या होंगी? राजनीतिक दलों से गठबंधन के बारे में वह क्या सोचते हैं? क्या इस बार का विधानसभा चुनाव भी हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे पर लड़ा जाएगा अथवा विकास का मुद्दा और सरकार की नाकामियां हावी रहेंगी? ऐसे कई बिंदुओं पर समाजवादी पार्टी के कैंट विधानसभा सीट से प्रबल दावेदार इंजीनियर अनीस अहमद ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आप मूलरूप से कहां के रहने वाले हैं, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही? 
जवाब : मैं मूलरूप से शाहजहांपुर जिले की तिलहर तहसील के अंतर्गत पड़ते गांव इनायतपुर का रहने वाला हूं. मेरी राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि रही है. मेरे पिता किसान थे मगर मेरे चाचा शाहजहांपुर जिला परिषद् चेयरमैन और को-ऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन भी रहे. हम चार भाई और दो बहनें हैं. भाईयों में मैं सबसे छोटा हूं. मेरे एक भाई समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष और तिलहर से ब्लॉक प्रमुख भी रहे. एक भाई शाहजहांपुर जिले से दो बार विधायक भी रहे.
सवाल : आपका राजनीति में आना कब हुआ?
जवाब : पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक होने की वजह से बचपन से ही मेरा रुझान राजनीति में रहा. उस वक्त मेरी उम्र तकरीबन 16-17 साल की रही होगी. मैं तब फर्स्ट ईयर का छात्र था. वहीं से मेरे राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई. मैंने शाहजहांपुर के जीएफ कॉलेज से पढ़ाई की. जिस वक्त वर्तमान कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना कॉलेज के अध्यक्ष हुआ करते थे उस वक्त मैं कॉलेज का उपाध्यक्ष था.
सवाल : आगे का सफर कैसा रहा?
जवाब : कॉलेज से पास आउट करने के बाद मैंने जल निगम में बतौर जेई अपने करियर की शुरुआत की. मेरी ज्यादातर पोस्टिंग बरेली और मुरादाबाद मंडल में ही हुई. जल निगम में रहते हुए मैं मंडी परिषद में डेपुटेशन पर चला गया. पीलीभीत, बदायूं, शाहजहांपुर बरेली मंडल में ही आते थे. बाद में मैं रेजिडेंट इंजीनियर बन गया.
सवाल : आपकी नौकरी अच्छी चल रही थी तो फिर इसे छोड़ने की क्या वजह रही?
जवाब : वर्ष 2011 की बात है. मायावती जी ने मुझे बुलाया और कहा कि पार्टी आपको बरेली कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाना चाहती है इसलिए आप वीआरएस ले लीजिए. मेरा रिटायरमेंट वर्ष 2018 में होना था लेकिन चूंकि मैं हमेशा से राजनीति में सक्रिय रहा था  इसलिए चुनाव का मौका गंवाना नहीं चाहता था. मैंने मायावती जी की बात मानकर रिटायरमेंट से सात साल पहले ही वीआरएस ले लिया. लेकिन नामांकन का समय आते ही मेरा टिकट काटकर दूसरे को दे दिया गया. चूंकि मैं पूरी तैयारी कर चुका था इसलिए मैंने हार नहीं मानी और निर्दलीय चुनाव लड़ा. जब नतीजे आए तो बसपा प्रत्याशी पांचवें नंबर पर था और कांग्रेस की सुप्रिया एरन चौथे नंबर पर रहीं. मैं तीसरे नंबर पर रहा. इसके बाद मायावती जी ने मुझे दोबारा बुलाया और अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा कि उन्हें कुछ लोगों ने कनफ्यूज कर दिया था. फिर वर्ष 2017 में मायावती जी ने मुझे शहर विधानसभा सीट से बसपा का प्रत्याशी बनाया.
सवाल : जब मायावती को आप पर इतना भरोसा था तो कांग्रेस में क्यों शामिल हुए?
जवाब : जब मैं वर्ष 2017 का चुनाव लड़ रहा था तो मायावती जी का इतना प्रेशर था कि वहां से जो डिमांड आती थी वो नींदें हराम कर देती थीं. मैंने उसी वक्त तय कर लिया था कि चुनाव जीतूं या हारूं पर पार्टी में नहीं रहूंगा. फिर जब चुनाव हो गया तो पता चला कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी को निकाल दिया गया है. ब्रह्म स्वरूप सागर ने इस्तीफा दे दिया है. चूंकि मैं पहले से ही तय कर चुका था कि पार्टी में नहीं रहना है इसलिए समाजवादी पार्टी से अप्रोच किया. अता उर रहमान साहब ने बात भी कर ली थी पर उसी टाइम पता चला कि सपा और बसपा का गठबंधन होने जा रहा है. हमें लगा कि मायावती हमें सर्वाइव नहीं करने देंगी. नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी तो हम भी कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस में हमने काम किया लेकिन पार्टी सही तरीके से काम नहीं कर पा रही थी. मैं कांग्रेस में परेशानी महसूस कर रहा था. इसी बीच अखिलेश यादव जी ने मुझे बुलवाया. वर्ष 2019 में सलीम शेरवानी साहब आंवला से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. उनकी वजह से उस वक्त मैं सपा में शामिल नहीं हो पाया. इसके बाद फिर अखिलेश जी से बात हुई और वर्ष 2021 में मैं सपा में शामिल हो गया.
सवाल : आप बरेली में वर्षों तक तैनात रहे, शहर के विकास की रफ्तार को आप किस नजरिये से देखते हैं?
जवाब : बरेली शहर के विकास की रफ्तार अब थम चुकी है. सुभाष नगर, मढ़ीनाथ, नेकपुर और पुराने शहर में विकास कहीं नजर ही नहीं आता. मैंने वर्ष 2012 के चुनाव में पुरजोर तरीके से कुछ मुद्दे उठाकर जो विकास करवाया था उसके बाद से कैंट विधानसभा क्षेत्र के इन इलाकों में कोई विकास कार्य ही नहीं हुआ. हालात पहले से भी बदतर हो चुके हैं. सारी दिक्कतें गरीब बस्तियों में हैं. चाहे हिन्दू बस्तियां हों या मुस्लिम बस्तियां हों, गरीबों, दलितों और पिछड़ों के इलाकों में कोई काम नहीं हो रहा. काम अगर हो रहा है तो सिविल लाइन्स इलाके में हो रहा है. वहां बनी हुई सड़क के ऊपर सड़क बनाकर बजट खपाया जा रहा है. गरीबों की बस्तियों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा.

विभिन्न मुद्दों के बारे में जानकारी देते इंजीनियर अनीस अहमद

सवाल : बरेली शहर के औद्योगिक विकास को आप किस नजरिये से देखते हैं?
जवाब : बरेली में केंद्रीय मंत्री भी रहे, राज्य के मंत्री भी रहे. खुद कैंट विधायक राजेश अग्रवाल वित्त मंत्री रहे हैं लेकिन पिछले सात वर्षों में विकास का कोई भी कार्य यहां नहीं हुआ. जरी जरदोजी के कारीगर, फर्नीचर का काम करने वाले आज ठेला लगाकर आलू-प्याज बेच रहे हैं. राजेश अग्रवाल ने सिर्फ अपने उद्योगों का विकास किया है, कैंट विधानसभा क्षेत्र में ऐसी कोई इंडस्ट्री नहीं लगवाई जिससे यहां के लोगों को रोजगार मिल सके. ये लोग उद्योगपति हैं समाजसेवी नहीं हैं. भाजपा उद्योगपतियों की पार्टी है. विधायक के तौर पर मैं राजेश अग्रवाल को पूरी तरह नाकाम मानता हूं. मंत्री रहते हुए भी उन्होंने कैंट विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए कुछ नहीं किया, इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति और क्या होगी? कोई भी विकास इन नेताओं ने नहीं किया. इसी मुद्दे पर जनता इन्हें जवाब देगी.
सवाल : जब विधायक और सांसद ने विकास नहीं करवाया तो वे लगातार चुनाव कैसे जीतते आ रहे हैं?
जवाब : देखिये, वर्ष 2014 से जो चुनाव हो रहे हैं वह विकास के नाम पर नहीं हो रहे हैं. हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर चुनाव हो रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने पूरे हिन्दुस्तान में भाईचारा खत्म कर दिया है. हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाया है. इसके अलावा कोई और मुद्दा नहीं है इनके पास. इसी मुद्दे पर ये 2014 में जीते, 2019 में जीते और 2017 का विधानसभा चुनाव जीते मगर अब जनता समझ चुकी है कि हिन्दू-मुस्लिम से देश देश चलने वाला नहीं है. देश तो संविधान से चलेगा और तभी विकास होगा, भाईचारा कायम होगा. अब इनके जाने का वक्त आ गया है.
सवाल : वर्तमान में जो हालात बन रहे हैं, क्या आपको लगता है कि इस बार भी चुनाव हिन्दू-मुस्लिम होगा?
जवाब : बिल्कुल नहीं, अबकी बार चुनाव विकास, रोजगार और महंगाई जैसे मुद्दों पर होगा. जनता यह समझ चुकी है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह देश 2-3-4 व्यापारियों के हाथों में बेच दिया है. किसान आंदोलन चल रहा है. आठ महीने बाद भी किसानों की नहीं सुनी जा रही है. संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. कोरोना काल में ये पूरी तरह फेल साबित हुए हैं. इनके अपने सांसद, विधायक अस्पतालों में पड़े तरस रहे थे. दवा तो दूर उन्हें पानी तक नसीब नहीं हो रहा था. लकड़ियां नसीब नहीं हुईं श्मशान भूमि में. नदी किनारे लाशें यूं ही फेंकने को लोग मजबूर हो गए. इन हालातों को देखते हुए हिन्दू-मुस्लिम का चक्कर तो अब खत्म हो चुका है लेकिन ये लोग कोशिशें कर रहे हैं कि हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा फिर से गर्म कर दिया जाए. मुझे लगता है कि अब जनता जागरूक हो चुकी है. अब हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा नहीं चलने वाला.
सवाल : अगर पार्टी आपको विधानसभा का टिकट देती है तो आपके प्रमुख स्थानीय मुद्दे क्या होंगे?
जवाब : मैं विकास के मुद्दों पर चुनाव लड़ूंगा. बेरोजगारी के मुद्दे पर लड़ूंगा. पुराने शहर के ड्रेनेज सिस्टम पर लड़ूंगा, जरी जरदोजी, फर्नीचर और बेंत के ठप हो चुके कारोबार के मुद्दे पर लड़ूंगा, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में पुराना शहर सहित 72 वार्डों की उपेक्षा के मुद्दे पर लड़ूंगा. इंटर कॉलेज, डिग्री कालेज, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के मुद्दों पर लड़ूंगा. मुद्दे ही मुद्दे हैं.
सवाल : चुनाव जीतने पर आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?
जवाब : मेरी प्राथमिकता होगी कि मैं जरी जरदोजी, फर्नीचर के कारोबारियों के लिए एक्सपोर्ट सेंटर स्थापित करवाऊं. अभी एक्सपोर्टर दिल्ली और जयपुर में बैठे हैं. पुराने शहर में डिग्री कॉलेज बनवाना, दिल्ली की तरह मोहल्ला क्लिनिक बनवाना मेरी प्राथमिकताएं होंगी.
सवाल : क्या आपको लगता है कि विपक्षी पार्टियों को एकजुट होकर चुनाव लड़ना चाहिए?
जवाब : इस बार समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने एक रणनीति बनाई है कि छोटे-छोटे जो दल हैं, जो पांच-दस सीटें जीतकर आते रहे हैं और अन्य सीटों पर परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं उनके साथ गठबंधन की बातचीत चल रही है. जो बड़े दल हैं उनमें कांग्रेस का अब कोई वजूद नहीं रह गया. बसपा के साथ गठबंधन करके पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ था इसलिए उनके साथ गठबंधन न करके छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन किया जा रहा है.

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