चक महमूद के पार्षद मो. फिरदौस खान उर्फ अंजुम भाई के पूर्वज अफगानिस्तान से आकर बरेली में बसे थे. उनके परदादा के पिता स्व. महमूद खान के नाम पर ही इलाके का नाम चक महमूद पड़ा. खेल-खेल में राजनीति में आए अंजुम भाई बीस वर्षों में एक बार भी पार्षद का चुनाव नहीं हारे. अब वह समाजवादी पार्टी से विधानसभा चुनाव के टिकट के लिए दावेदारी जता रहे हैं. कैसा रहा अंजुम भाई का अब तक का सफर? क्या होंगे उनके चुनावी मुद्दे? अंजुम भाई में ऐसा क्या है कि पार्टी उन्हें टिकट दे? वर्तमान कैंट विधायक को वह कितना सफल मानते हैं? ऐसे ही कई पहलुओं पर इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ मो. फिरदौस खान उर्फ अंजुम भाई ने खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आप मूलरूप से कहां के रहने वाले हैं, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है आपकी?
जवाब : हम लोग मूलत: अफगानिस्तान के रहने वाले हैं. हमारे पूर्वज आजादी से पहले ही भारत आ गए थे. मेरे परदादा के पिता ने यहां बरेली में एक छह मंजिला कोठी बनाई थी. चूंकि पहले मस्जिदों में लाउडस्पीकर नहीं हुआ करते थे तो उस वक्त हमारी कोठी से ही नगाड़े बजा करते थे. तब सबको पता चल जाता था कि नमाज का वक्त हो गया है. हमारी वह कोठी पूरे शहर में नगाड़े वाली कोठी के नाम से मशहूर थी. आज वह अपने मूल स्वरूप को खो चुकी है पर उसके अवशेष आज भी मौजूद हैं. हमारे परदादा के पिता स्व. महमूद खां इलाके में इतने मशहूर थे कि आज इस इलाके का नाम चक महमूद पड़ गया. मेरे पिता लकड़ी का कारोबार करते थे. हमारा भी वही काम है.
सवाल : आपने शिक्षा कहां से ली?
जवाब : मेरी शुरुआती शिक्षा कमल शिशु विद्यालय से हुई. उसके बाद मैंने मॉडल टाउन स्थित गुरु गोबिंद सिंह इंटर कालेज से पढ़ाई की. फिर बरेली कॉलेज से समाजशास्त्र में बीए किया. एम प्रथम वर्ष के बाद दूसरे साल मैं बीमार पड़ गया जिस वजह से एमए कंप्लीट नहीं कर पाया. जब मैं हाईस्कूल में था तो पिता के साथ तभी से कारोबार में हाथ बटाने लगा था.
सवाल : राजनीति में आना कब हुआ? क्या आपकी कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि रही है?
जवाब : जी नहीं, मेरी कोई राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं रही. मेरा राजनीति में आना संयोग मात्र है. छोटा सा हंसी मजाक मुझे राजनीति में ले आया. मेरे एक रिश्तेदार इसी वार्ड से पार्षद थे. उन्होंने नुक्कड़ पर ही मुझे सार्वजनिक रूप से चुनाव लड़ने की चुनौती दी थी. मेरे दोस्तों को यह नागवार गुजरा और उन्होंने मुझे चुनाव में मेरे रिश्तेदार आसिफ उल्ला खां के खिलाफ ही मैदान में उतार दिया. मैंने वर्ष 2000 में ही समाजवादी पार्टी ज्वाइन की थी और उसी साल पार्टी के टिकट पर चुनाव भी लड़ा. अल्लाह के करम से मैं पहली बार पार्षद का चुनाव लड़ा और जीत भी गया. तब से आज तक मैं और मेरी पत्नी दुर्रेशहवार चुनाव जीतते आ रहे हैं.
सवाल : अब आपने विधानसभा के टिकट लिए दावेदारी की है. आपमें ऐसा क्या खास है कि पार्टी आपको टिकट दे?
जवाब : हमने जब इलाके के लोगों से बात की तो उन्होंंने ही हमें विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया. मैंने बीस साल के राजनीतिक करियर में तजुर्बा हासिल किया है और तजुर्बा बहुत बड़ी चीज होती है.
सवाल : पर तजुर्बे के लिहाज से तो इंजीनियर अनीस अहमद सबसे ज्यादा तजुर्बे वाले दावेदार हैं, वह दो बार विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं?
जवाब : मैं उन लोगों की बात नहीं कर रहा जो बुजुर्ग हैं. हमारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी का यह नारा है कि “युवाओं का साथ, बुजुर्गों का हाथ.” हम कहते हैं कि बुजुर्ग हमारे ऊपर अपना हाथ रखें और हमारा मार्गदर्शन करें. हम उनके बताए मार्ग पर चलकर पार्टी की सरकार बनाएंगे.
सवाल : बीस वर्षों से आप और आपकी पत्नी पार्षद हैं, इन बीस वर्षों में आपने इलाके के लोगों के लिए कौन से प्रमुख काम करवाए?
जवाब : हमारे वार्ड में एक मलिन बस्ती चक सकलैन नगर हुआ करती थी. जहां शाम को अंधेरा होने के बाद कोई व्यक्ति कदम तक नहीं रख सकता था. वर्ष 2000 में जब मैं पार्षद बना तो बिजली के पोल लगवाए, पानी की लाइन बिछाई और कच्चे रास्तों को पक्का करवाया. क्षेत्र में कहीं भी जलनिकासी की व्यवस्था नहीं थी जिसके कारण जलभराव की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी थी. हमने यह पानी सकलैन नगर से हजियापुर तक पहुंचवाया. उसके बाद एक संपवेल लगवाया जिससे यहां के जलभराव की समस्या का स्थायी समाधान हो गया. मेरे यही काम मेरी चर्चा का विषय बने और वर्ष 2005 में जब यह सीट पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित कर दी गई तो हजियापुर के लोगों ने बुलाकर मुझे उस वार्ड से चुनाव लड़वाया और जितवाया. मैंने वार्ड के सभी मंदिरों और मस्जिदों में पानी की व्यवस्था करवाई. हजियापुर में मैंने लगभग पांच से सात करोड़ रुपये के विकास कार्य करवाए. वहीं, चक महमूद वार्ड में अब तक लगभग 20 से 25 करोड़ रुपये के विकास कार्य करवाए जा चुके हैं.
सवाल : कैंट विधानसभा सीट वैश्य बाहुल्य सीट है, आप इस सीट पर वोटों का समीकरण अपने पक्ष में कैसे बनाएंगे?
जवाब : मेरे वार्ड में हर जाति धर्म के लोग रहते हैं. मैं हिन्दू-मुस्लिम में कोई भेदभाव नहीं करता. रक्षाबंधन में मेरे वार्ड की हिन्दू बहनें मुझे बेहद प्यार से राखी बांधती हैं. मैं उनके हर त्योहार और सुख- दुःख में शामिल होता हूं. यही वजह है कि जब मैं पार्षद का चुनाव लड़ता हूं तो तीस प्रतिशत से भी अधिक हिन्दू वोट मुझे ही मिलता है.
सवाल : अगर पार्टी आपको टिकट देती है तो कैंट विधानसभा क्षेत्र के वे कौन से मुद्दे हैं जिन पर आप चुनाव लड़ेंगे?
जवाब : कैंट विधानसभा क्षेत्र में मुद्दे ही मुद्दे हैं. यहां विधायक राजेश अग्रवाल ने कोई काम कराया ही नहीं है. वह तो साल में 11 महीने लखनऊ और दिल्ली रहते हैं. कैंट के लोगों से उनका कोई वास्ता नहीं है. सड़क, नालियां, जलभराव, बेरोजगारी जैसे कई मुद्दे हैं.
सवाल : बतौर पार्षद आप अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि किसे मानते हैं?
जवाब : मेरे वार्ड और आसपास के इलाके रोहिणी टोला, कांकरटोला, काजी टोला, रबड़ी टोला, सूफी टोला, अब्बास नगर, नई बस्ती आदि में लोगों को सरकारी सहायता नहीं मिल पा रही थी. मैंने वह सहायता दिलाने का प्रयास किया और सफल भी हुआ. मुझे देख अन्य पड़ोसी वार्ड के पार्षदों ने भी यह काम शुरू किया. आज मेरी वजह से सबको पेंशन मिल रही है, सरकारी सहायता मिल रही है.
सवाल : आपकी नजर में शहर की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
जवाब : सबसे बड़ी समस्या जाम की है. शहर में हर तरफ जाम है. बेरोजगारी की है, लोग रोजगार के लिए दूसरे शहरों में पलायन कर रहे हैं. कुछ कारोबार ऐसे हैं जो बरेली की शान हुआ करते थे पर अब वे कारोबार चौपट हो चुके हैं और कारीगर बेरोजगार हो चुके हैं.
सवाल : विधायक बनने पर आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?
जवाब : कारोबार चौपट होने से जो कामगार बेरोजगार हो चुका है मेरी प्राथमिकता सबसे पहले उसे सैटल करने की होगी. कैंट विधानसभा क्षेत्र में लगभग 65 फीसदी लोग बेरोजगार हैं. कई परिवार ऐसे हैं जहां 7-7, 8-8 लोग हैं और कमाने वाला एक है, उसे भी कभी काम मिलता है तो कभी नहीं मिलता है. रोटी तक के लाले पड़ जाते हैं. इसलिए मैं नए उद्योग लाने के साथ ही खाली पड़े सरकारी पदों पर भर्तियां निकलवाने के लिए मुख्यमंत्री से बात करूंगा. डिग्री कालेज खुलवाऊंगा.
सवाल : वर्तमान कैंट विधायक को आप कितना सफल मानते हैं?
जवाब : कैंट विधायक का मैं बहुत सम्मान करता हूं लेकिन विकास के मामले में मैं उन्हें बिल्कुल सफल नहीं मानता. उन्होंने कैंट वासियों को कोई ऐसा तोहफा नहीं दिया जो विकास की तस्वीर को दर्शाता हो.