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120 भोजीपुरा विधानसभा सीट : अबकी बार मेवाती समाज को सपा नहीं कर सकेगी दरकिनार, जानिये क्या है वजह?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा का सियासी दंगल अबकी बार लहर पर नहीं जातीय और धार्मिक समीकरणों पर लड़ा जाएगा. वर्ष 2017 की तरह न तो अबकी बार मोदी लहर है और न ही योगी जी कोई बड़ा धमाका कर पाए हैं. अबकी बार सिर्फ एक ही लहर है और वो है कोरोना की लहर. पहली और दूसरी लहर निकल चुकी है और साथ ही मोदी लहर को भी उड़ाकर ले जा चुकी है. तीसरी लहर को फिलहाल आने का इंतजार है. ऐसे में वर्तमान भाजपा सरकार के खिलाफ जो एंटी इनकंबेंसी का माहौल बन रहा है उसे वोटों में बदलने के लिए विपक्ष बेकरार है लेकिन जातीय समीकरण के बिना अबकी बार किसी भी दल की नैया पार नहीं होने वाली. विगत चुनावों के मुकाबले अबकी बार जातीय गणित हल करना थोड़ा ज्यादा कठिन होगा क्योंकि वर्ष 2012 के जो जातीय समीकरण थे वे अब काफी बदल चुके हैं. उस वक्त कई जातियां ऐसी थीं जिनके नेता या तो टिकट मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे या तो वे इतने कमजोर थे कि पार्टियां उनके समाज की बहुलता होने के बावजूद उन नेताओं को आसानी से दरकिनार कर देती थीं. लेकिन दस वर्षों में काफी कुछ बदल चुका है. कल तक जिस समाज के नेता कमजोर नजर आते थे अब अपने समाज की बहुलता और उसके राजनीतिक महत्व को वे समझ चुके हैं.

वर्ष 2017 का जिक्र यहां पर इसलिए करना मुनासिब नहीं है क्योंकि उस बार का चुनाव सिर्फ मोदी लहर पर लड़ा गया था. इसलिए अबकी बार ऐसे समाज की अनदेखी राजनीतिक दलों के लिए आसान नहीं होगी. उदाहरण के तौर पर भोजीपुरा विधानसभा सीट की ही बात करें तो यहां पर मेवाती समाज हमेशा से अधिकता में रहा मगर इस समाज का कोई भी नेता पहले राजनीतिक रूप से न तो इतना महत्वाकांक्षी रहा और न ही मेवाती समाज को उस दौर में राजनीतिक हितों के लिए एकजुट कर पाया मगर दस वर्ष पूर्व जो नेता टिकट से किन्हीं कारणों से वंचित रह गए थे उन्होंने इन दस वर्षों में अपने समाज को तो एकजुट किया ही, साथ ही दूसरे समाज के बीच भी पैठ बनाने में कामयाबी हासिल की है. इनमें से ज्यादातर नेता इस बार समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं और पुरजोर तरीके से टिकट की दावेदारी भी कर रहे हैं. मेवाती समाज के ऐसे ही एक नेता हाजी तसव्वर खां हैं. हाजी तसव्वर खां वैसे तो वर्ष 2012 में ही चुनाव लड़ चुके होते लेकिन आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा ने ऐन वक्त पर उनका टिकट काटकर शहजिल इस्लाम को दे दिया था. हाजी ने उस वक्त बगावत नहीं की बल्कि एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह अपनी जड़ों को मजबूत करने में जुट गए. उन्होंने न सिर्फ अपने मेवाती समाज को एकजुट करने का काम किया बल्कि अंसारी, मंसूरी, सलमानी आदि बिरादरियों के साथ ही हिन्दुओं में भी गहरी पैठ बना ली है. इसी का नतीजा है कि आज वह अपने समाज के वोट बैंक के आधार पर समाजवादी पार्टी से टिकट के सबसे प्रबल दावेदार के रूप में नजर आ रहे हैं. भोजीपुरा विधानसभा सीट पर हाजी तसव्वर खां मेवाती समाज का सबसे बड़ा चेहरा बन चुके हैं. वहीं मेवाती समाज के दो अन्य नेताओं ने भी समाजवादी पार्टी से टिकट के लिए आवेदन किया है. इनमें एक यूसुफ खान हैं तो एक भी शामिल हैं. एक समाज से तीन नेताओं ने टिकट के लिए दावेदारी कर दी है.

हाजी तसव्वर खां

चूंकि यहां से पूर्व मंत्री शहजिल इस्लाम की दावेदारी भी काफी मजबूत मानी जा रही है लेकिन वह अंसारी बिरादरी से ताल्लुक़ रखते हैं और अंसारी बिरादरी के वोट इस विधानसभा क्षेत्र में मेवाती समाज से आधे भी नहीं हैं इसलिए समाजवादी पार्टी के लिए अबकी बार मेवाती समाज के तीन बड़े नेताओं की अनदेखी आसान नहीं होगी.

शहजिल इस्लाम
शहजिल इस्लाम

वहीं, अगर पार्टी इस सीट से मेवाती समाज को प्रतिनिधित्व देती है तो प्रदेश की अन्य सीटों पर भी उसे मेवाती वोट हासिल करने में आसानी होगी और भोजीपुरा सीट भी गंवानी नहीं पड़ेगी. चूंकि मेवाती समाज ज्यादा विकसित और पढ़ा-लिखा नहीं है इसलिए यह कहना एकदम गलत होगा कि इस समाज के लोग जनहित के मुद्दों पर वोट देंगे. इस समाज के कुछ लोगों को छोड़ दें तो भोजीपुरा विधानसभा क्षेत्र के ज्यादातर मेवाती समाज के लोग उसी पार्टी को वोट डालेंगे जिस पार्टी की हिमायत उनका अपना नेता करेगा अथवा जो पार्टी उनके अपने नेता को विधानसभा का टिकट देगी. ऐसे में अगर मेवाती समाज के तीनों दावेदारों की अनदेखी करके समाजवादी पार्टी किसी अन्य बिरादरी के नेता को मैदान में उतारती है तो भाजपा के लिए जीत की राह आसान होगी और समाजवादी पार्टी में विद्रोह का बिगुल भी बज सकता है.
बहरहाल, टिकट किसे देना है और किसे नहीं यह तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को तय करना है लेकिन जातीय समीकरणों को नकारना उनके लिए आसान नहीं होगा.

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