नीरज सिसौदिया, बरेली
इनके घर में ईद भी भी होती है और दीवाली भी मनाई जाती है, शब-ए-बारात भी होती है और होली के रंग भी उड़ाए जाते हैं, यहां एक ही छत के नीचे रामायण भी पढ़ी जाती है और कुरान भी. इंजीनियर अनीस अहमद खान का आशियाना सिर्फ एक आशियाना ही नहीं बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल भी है.
इंजीनियर की नौकरी से वीआरएस लेकर राजनीति में कदम रखने वाले इं. अनीस अहमद खान के घर में मजहब से ऊंचा दर्जा इंसान और इंसानियत को दिया जाता है. यही नहीं धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर दूसरे धर्मों के बेबस और जरूरतमंद लोगों की तकदीर संवारने का काम भी इं. अनीस अहमद खान बड़ी ही शिद्दत के साथ कर रहे हैं. इंजीनियर अनीस अहमद एक कारोबारी भी हैं. उनके घर से लेकर दफ्तर तक में काम करने वाला लगभग 90 फीसदी स्टाफ गैर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक़ रखता है. शाहजहांपुर में इंजीनियर अनीस अहमद खान के भट्ठे व अन्य काम देख रहे सुभाष चंद्र चौधरी वर्तमान में मैनेजर के पद पर तैनात हैं लेकिन 23 साल पहले जब वह इंजीनियर अनीस अहमद से जुड़े थे तो महज 15 सौ रुपये की नौकरी करते थे.
सुभाष बताते हैं, “मैं एक जाट परिवार से हूं. मूलरूप से अमरोहा जिले के गांव अंबरपुर का रहने वाला हूं. मेरे पिता खेती करते थे. मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता था इसलिए अमरोहा में ही काम करने लगा था. जिस ठेकेदार के पास मैं काम करता था वही मुझे इंजीनियर साहब के पास लेकर आया था. उस वक्त मैं सिर्फ 15 सौ रुपये की नौकरी करता था लेकिन मेरी लगन को देखते हुए इंजीनियर साहब ने मुझे मैनेजर के पद पर बैठा दिया. आज मेरे पास गाड़ी भी है और एसी दफ्तर भी.
उन्होंने कभी मुझे यह एहसास ही नहीं होने दिया कि मैं एक हिन्दू हूं और वह मुस्लिम. हमारे दफ्तर में भी ज्यादातर स्टाफ हिन्दू ही है. हिन्दुओं का हर त्योहार हमारे दफ्तर में भी उतनी ही धूमधाम से मनाया जाता है जितना कि अन्य दफ्तरों में. इंजीनियर साहब हमारे हर त्योहार का हिस्सा बनते हैं और विशेष पूजा में भी अहम योगदान देते हैं. यहां जाने कितनी हिन्दू बेटियों का घर इंजीनियर साहब की वजह से ही बस सका है.”
इंजीनियर अनीस अहमद खान का सबसे करीबी कर्मचारी का नाम रमेश कुमार है. रमेश इंजीनियर अनीस के घर पर ही रहता है. वह धार्मिक प्रवृत्ति का है और इंजीनियर साहब के घर में ही सुबह शाम रामायण और श्रीमद् भगवदगीता का पाठ भी करता है. रमेश जब महज 13 साल का था तो घर के काम में हाथ बंटाने के लिए शाहजहांपुर से इंजीनियर अनीस के घर आ गया था. उसके परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी इंजीनियर अनीस ही उठाते रहे हैं.
रमेश कुमार बताते हैं, “मैं गरीब परिवार से ताल्लुक़ रखता था इसलिए बचपन में ही शाहजहांपुर से यहां आ गया. इंजीनियर साहब ने मुझे हमेशा अपने बच्चों की तरह ही प्यार दिया. आज इंजीनियर साहब कहीं भी जाते हैं तो मुझे साथ लेकर ही जाते हैं. उन्होंने मुझे सिर्फ वेतन ही नहीं दिया बल्कि मेरे परिवार के लिए जमीन भी खरीदी जिस पर अब खेती भी होती है. मेरी शादी के लिए लड़की की तलाश हो रही है पर शादी तय नहीं हो सकी है. अभी तो मैं पिछले कई वर्षों से इंजानियर साहब के साथ ही उनके ही घर पर रहता हूं मगर शादी के बाद मैं अपनी पत्नी के साथ अपने घर में रह सकूं इसलिए उन्होंने मेरे लिए एक मकान भी बनवा दिया है. शादी के बाद मैं उसी मकान में रहूंगा. मैं एक दलित परिवार से हूं. इंजीनियर साहब के घर में मैं पिछले करीब 15-17 सालों से रह रहा हूं लेकिन मुझे आज तक कभी यह महसूस नहीं हुआ कि मैं किसी मुस्लिम परिवार के साथ रह रहा हूं. मैं गीता भी पढ़ता हूं और रामायण भी. होली भी मनाता हूं और दीपावली भी. मैंने अपने कमरे में मंदिर भी बनाया हुआ है और उसमें भगवान की स्थापना भी की है. इस परिवार में मुझे कभी धार्मिक भेदभाव महसूस भी नहीं हुआ.”
बता दें कि इंजीनियर अनीस अहमद खां एक पठान परिवार से ताल्लुक़ रखते हैं लेकिन हर धर्म का वह उतना ही सम्मान करते हैं जितना कि अपने धर्म का. वह पांचों वक्त की नमाज भी पढ़ते हैं और अपने धर्म के रास्ते पर भी चलते हैं. यही वजह है कि हर धर्म का व्यक्ति उन्हें पूरा सम्मान देता है.
बता दें कि इंजीनियर अनीस अहमद खां कैंट विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट के प्रबल दावेदार हैं. अगर पार्टी उन्हें मौका देती है तो उनकी जीत सुनिश्चित है.