यूपी

कैंट विधानसभा सीट : भाजपा विरोधी प्रत्याशी को एकतरफा वोट देते हैं मुस्लिम, फिर भी जीत जाती है भाजपा, जानिए क्या है वजह?

Share now

नीरज सिसौदिया, बरेली
कैंट विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी पिछले दस वर्षों से जीत हासिल नहीं कर सकी है. इसकी मुख्य वजह खराब चुनाव प्रबंधन और जमीनी स्तर पर कार्य करने की रणनीति का अभाव रहा है. अगर सही तरीके से चुनाव प्रबंधन किया जाए तो इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी कभी भी चुनाव नहीं जीत सकती. इसकी सबसे बड़ी वजह यहां मौजूद मुस्लिम वोट बैंक है जो कभी भी भाजपा को वोट नहीं देता. मुस्लिम मतदाताओं का आंकड़ा खुद ब खुद इसकी गवाही दे रहा है लेकिन इतनी बड़ी तादाद में वोट होने के बावजूद समाजवादी पार्टी इन मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक पहुंचाने में नाकाम रही है. अगर अकेले मुस्लिम वोट पोलिंग बूथ तक पहुंच जाए तो समाजवादी पार्टी एकतरफा जीत हासिल कर सकती है. सपा की हार की इस सबसे बड़ी वजह पर अब तक किसी का ध्यान ही नहीं गया था. वर्ष 2012 और 2017 के चुनावों में जो भी प्रत्याशी सपा या गठबंधन के रहे उन्होंने सिर्फ हवाई चुनाव लड़ा और पार्टी का वोट बैंक होने के बावजूद चुनाव हार गए. वर्तमान में समाजवादी पार्टी से कैंट विधानसभा सीट से टिकट के प्रबल दावेदार इंजीनियर अनीस अहमद इस कमजोरी को भांप गए और इसी पर काम करना शुरू कर दिया है. वह सिर्फ वोट बनवाने का ही काम नहीं कर रहे बल्कि वोटर को मतदान केंद्र तक पहुंचाने की भी तैयारी करने में जुटे हैं.
वोटों के इस गणित को समझाते हुए इंजीनियर अनीस अहमद खां कहते हैं, ‘मुझे नहीं पता है कि इस बार पार्टी मुझे टिकट देगी या नहीं देगी मगर मैं कैंट विधानसभा सीट पर पार्टी की जीत के लिए उस दिशा में काम कर रहा हूं जिस दिशा में पिछले दस वर्षों में किसी भी दावेदार ने नहीं किया.’ पिछले दो बार के विधानसभा चुनावों का उदाहरण देते हुए इंजीनियर अनीस अहमद खां कहते हैं, ‘वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कैंट विधानसभा सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या लगभग दो लाख 88 हजार थी जिसमें लगभग एक लाख मतदाता मुस्लिम समाज का था लेकिन मतदान प्रतिशत सिर्फ 53 फीसदी ही रहा. बड़ी तादाद में मुस्लिम वोटर मतदान केंद्र तक पहुंच ही नहीं पाए या फिर विभिन्न कारणों से मतदान ही नहीं कर पाए अथवा अन्य दलों में बंट गए. नतीजा यह हुआ कि महज 34 फीसदी यानि लगभग साढ़े 51 हजार वोट हासिल करके भाजपा प्रत्याशी राजेश अग्रवाल चुनाव जीत गए और सपा उम्मीदवार फहीम साबिर को सिर्फ 33 हजार वोटों से संतोष करना पड़ा. मुझे उस वक्त 24 हजार से भी अधिक वोट मिले थे जिसमें दलित वोट भी शामिल था. अगर सपा प्रत्याशी और मेरे वोट जोड़ भी दिए जाएं तो भी उतना आंकड़ा नहीं बैठता जितना कुल मुस्लिम वोट था. अगर 80 फीसदी भी मुस्लिम वोटर पोलिंग बूथ तक पहुंच जाता तो सपा यह सीट जीत सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसी तरह वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में विपक्षी सपा और कांग्रेस ने आपस में गठबंधन तो कर लिया मगर मुस्लिम और यादव वोटर जो कि सपा का कैडर वोट माना जाता है, उस वोट को पोलिंग बूथ तक पहुंचाने में कामयाब नहीं हो सके. वर्ष 2017 में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग तीन लाख 42 हजार थी. इनमें लगभग सवा लाख वोट मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक़ रखता है और लगभग पांच से दस हजार वोट यादव समाज का भी था. कांग्रेस और सपा का गठबंधन इन सभी वोटरों को मतदान केंद्र तक लाने में इस बार नाकाम साबित हुए. नतीजा यह हुआ कि राजेश अग्रवाल 88441 वोट पाकर चुनाव जीत गए जबकि गठबंधन के उम्मीदवार मुजाहिद हसन खां 75777 वोट हासिल करने के बावजूद चुनाव हार गए. दिलचस्प बात यह है कि पिछला चुनाव पूरी तरह हिन्दू-मुस्लिम के मुद्दे पर लड़ा गया था. कैंट विधानसभा सीट पर मुस्लिमों का एकतरफा वोट गठबंधन प्रत्याशी को मिला था. आईएमसी जैसे दल ने मनजीत सिंह को चुनाव लड़ाया था लेकिन उन्हें लगभग पांच सौ वोट ही मिले थे. वहीं पीस पार्टी की मुस्लिम प्रत्याशी को लगभग आठ सौ वोट मिले थे. अगर सवा लाख मुस्लिम वोटरों में से अगर एक लाख मुस्लिम वोटर भी मतदान केंद्र तक पहुंच जाते तो राजेश अग्रवाल किसी भी सूरत में चुनाव नहीं जीत पाते.’
इस बार के हालात भी लगभग ऐसे ही हैं. मुस्लिम मतदाताओं का आंकड़ा लगभग डेढ़ लाख के करीब पहुंच चुका है. अगर समाजवादी पार्टी इन डेढ़ लाख मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के साथ ही उन्हें पोलिंग बूथ तक पहुंचाने में कामयाब हो जाती है तो सपा की जीत सुनिश्चित हो सकती है. इसके लिए सपा की पहली जरूरत मुस्लिम प्रत्याशी है. अगर भाजपा के हिन्दुत्व के एजेंडे को मात देने के मकसद से सपा भी उसी राह पर चल पड़ी तो मुस्लिम मतदाताओं में असुरक्षा की भावना जन्म ले सकती है जो मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण में बाधा उत्पन्न कर सकती है. अगर मुस्लिम और यादव वोटों का बिखराव हुआ तो सपा की जीत नामुमकिन है क्योंकि सिर्फ हिन्दू प्रत्याशी उतारने भर से सपा की मुस्लिम हितैषी छवि नहीं बदलने वाली.

इंजीनियर अनीस अहमद

समाजवादी पार्टी को चुनावी रणनीति बदलने की जरूरत है. इंजीनियर अनीस अहमद यह बात अच्छी तरह समझ चुके हैं. यही वजह है कि उन्होंने कैंट विधानसभा सीट पर एक ऐसा वोटरशिप अभियान निजी स्तर पर शुरू किया है जिसके तहत वह न सिर्फ वोट बनवाने का काम कर रहे हैं बल्कि हर घर में एक स्टीकर भी लगवा रहे हैं जिसमें उस परिवार के हर मतदाता का पोलिंग बूथ नंबर स्पष्ट रूप से अंकित है ताकि मतदान के लिए किसी भी मतदाता को अपना पोलिंग बूथ तलाशने के लिए भटकना न पड़े. इंजीनियर अनीस अहमद यह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर सिर्फ 80 फीसदी मुस्लिम वोटर मतदान केंद्र तक पहुंच गया तो सपा की जीत सुनिश्चित है. बहरहाल, समाजवादी पार्टी अगर सिर्फ मुस्लिम और यादव मतदाता यानि पार्टी के कैडर वोट को बूथ तक पहुंचाने की दिशा में काम करें तो भाजपा की जीत मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो सकती है. वोट प्रतिशत ही इस सीट पर हार-जीत का फैसला करेगा.

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *