नीरज सिसौदिया, बरेली
विधानसभा चुनाव में प्रदेशभर में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन वर्ष 2017 के मुकाबले बेहतर रहा लेकिन वह सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में नाकाम रही है। इसकी एक वजह टिकट वितरण में सही उम्मीदवारों का चयन न होना भी माना जा रहा है। बात अगर बरेली जिले की करें तो पार्टी ने यहां इस बार अनूठा प्रयोग करते हुए दोनों सीटों पर वैश्य उम्मीदवारों को उतार दिया लेकिन इस समाज ने दोनों पार्टी उम्मीदवारों को सिरे से खारिज कर दिया। सियासी जानकारों की मानें तो कायस्थों और मुस्लिम दावेदारों की अनदेखी पार्टी को ले डूबी। खास तौर पर शहर विधानसभा सीट पर जो कि कायस्थ बहुल सीट है। अब मेयर का चुनाव सामने है। भाजपा से कायस्थ विधायक अब मंत्री पद पर काबिज हो चुका है। ऐसे में निश्चित तौर पर भाजपा किसी भी कायस्थ को मेयर का उम्मीदवार नहीं बनाएगी। समाजवादी पार्टी के लिए यह एक सुनहरा मौका है कि वह कायस्थों को अपने पाले में जोड़ सकती है। पार्टी के पास कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो कायस्थ समाज को अपने व्यक्तित्व के बूते जोड़े हुए हैं। साथ ही अन्य समाज के लोगों में भी गहरी पैठ रखते हैं। इनमें पार्षद गौरव सक्सेना, डॉ. अमित सक्सेना और पत्रकार से राजनेता बने डॉ. पवन सक्सेना प्रमुख हैं। गौरव सक्सेना का राजनीतिक जन्म ही समाजवादी पार्टी में हुआ। वह छात्र राजनीति से ही समाजवादी पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं।
सबसे युवा चेहरा होने के साथ ही उन्होंने भाजपा के गढ़ में उस वक्त अपनी ताकत दिखाई थी जब कलम दवात प्रकरण हुआ था। उस वक्त भाजपा प्रदेश और नगर निगम की सत्ता पर काबिज थी लेकिन भाजपा के कायस्थ नेताओं, पार्षदों की जगह पूरा कायस्थ समाज गौरव सक्सेना के साथ खड़ा नजर आया था और कलम दवात स्थापित करने का श्रेय गौरव सक्सेना को ही गया था। दो बार के पार्षद रह चुके गौरव सक्सेना की नजर इस बार मेयर की कुर्सी पर है। वह इस मौके का भरपूर फायदा उठाना चाहते हैं। इसलिए पुरजोर तरीके से मेयर के टिकट का दावा भी कर रहे हैं। संगठन में वह महासचिव के पद पर अहम भूमिका निभा चुके हैं। नई कार्यकारिणी में अगर पार्टी कायस्थ को महानगर अध्यक्ष के पद पर सुशोभित करने का निर्णय लेती है तो गौरव सक्सेना के नाम पर भी जरूर विचार किया जा सकता है।
समाजवादी पार्टी में कायस्थ नेता के तौर पर एक और बड़ा नाम पत्रकार से राजनीति में आए डॉ. पवन सक्सेना का है। पवन सक्सेना का राजनीतिक सफर भले ही बहुत छोटा हो लेकिन उनकी राजनीतिक समझ का सभी लोहा मानते हैं। एक पत्रकार के साथ ही व्यवसायी नेता के तौर पर भी उन्हें जाना जाता है। लगभग ढाई दशक से भी अधिक के पत्रकारिता के करियर में पवन सक्सेना ने हर वर्ग की आवाज बुलंद की और अपने समाज को एक मंच पर लाने में सफलता हासिल की।
विधानसभा चुनाव में पार्टी उन्हें मौका देती तो शायद नतीजे बदल सकते थे लेकिन अपने समाज के नेता को टिकट न मिलने के कारण कायस्थ समाज भाजपा उम्मीदवार डॉ. अरुण सक्सेना के पाले से नहीं टूट सका। अब चूंकि मेयर के चुनाव में भाजपा किसी कायस्थ को मेयर का टिकट नहीं देगी इसलिए पवन सक्सेना सपा के लिए बेहतर उम्मीदवार साबित हो सकते हैं।
इसके अलावा डॉ. अमित सक्सेना भी मेयर की दौड़ में बेहतर कायस्थ चेहरा हो सकते हैं। वह शहर विधानसभा सीट से टिकट के दावेदार भी थे लेकिन पार्टी ने उन्हें मौका नहीं दिया। अब मेयर के पद पर समर्थक चाहते हैं कि अमित सक्सेना पार्टी का चेहरा बनें।
इनके अलावा जिला उपाध्यक्ष संजीव सक्सेना भी मेयर की दौड़ में बताये जा रहे हैं। वीरपाल सिंह यादव के सपा में वापसी करने के बाद संजीव सक्सेना कुछ मजबूत जरूर हुए हैं लेकिन अपने समाज को पार्टी के पक्ष में जोड़ने में वह कितने कामयाब हो पाएंगे यह कहना मुश्किल है।
हालांकि, कई सामाजिक संगठनों में संजीव सक्सेना अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं। वह कैंट विधानसभा सीट से टिकट के दावेदार भी थे। सपा के पूर्व विधायक महिपाल सिंह से उनके कारोबारी रिश्ते भी बताए जाते हैं।