नई दिल्ली। सरसंघचालक मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि विकास के लिए भारत को किसी दूसरे देश का अनुसरण करने की बजाए भारत बनकर ही रहना होगा । उन्होंने कहा कि अगर हम चीन, रूस, अमेरिका बनने का प्रयास करेंगे, तो वह नकल करना होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा करने पर लोग तमाशा देखने जरूर आयेंगे लेकिन वह भारत का विकास नहीं होगा। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास तथा उसके धन एवं रण गौरव को निरंतर गलत बताने वाले लोगों पर विश्वास करना गलती थी और विकास के दीर्घकालिक लक्ष्य को हासिल करने के लिये भूगोल की जानकारी एवं इतिहास पर गर्व करना जरूरी है। भागवत ने ‘कनेक्टिंग विद द महाभारत’ पुस्तक का विमोचन करते हुए यह बात कही । सरसंघचालक ने कहा, ‘‘कुछ लोगों ने प्रयत्न किये कि हम अपने देश को, अपने इतिहास को भूल जाएं। वे हमें बता रहे थे कि हमारे इतिहास में कुछ नहीं है, कोई धन गौरव, रण गौरव नहीं है। वे हमारे ग्रंथों को गलत बता रहे थे। ’’ भागवत ने कहा कि ऐसे लोग इस तरह की बातें इसलिये कह रहे थे क्योंकि उन्हें स्वार्थ साधना था । उन्होंने कहा कि महाभारत, रामायण को कविता, कहानी बताया गया । लेकिन यह समझना जरूरी है कि क्या कोई कल्पना इतनी लम्बी चलती है ? भागवत ने कहा कि वेद व्यास को सिंहासन की आस नहीं थी और वे एक ऋषि थे, ऐसे में महाभारत में व्यास गलत क्यों बोलेंगे ? उन्होंने कहा कि सुख और दुख आने जाने वाली बात है और हमें अपने धर्म पर कायम रहना चाहिए.. यही महाभारत का बोध है। सरसंघचालक ने कहा कि भारत को किसी दूसरे देश का अनुसरण करने की बजाए भारत बनकर ही रहना होगा । उन्होंने कहा कि अगर हम चीन, रूस, अमेरिका बनने का प्रयास करेंगे, तो वह नकल करना होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा करने पर लोग तमाशा देखने जरूर आयेंगे लेकिन वह भारत का विकास नहीं होगा। भागवत ने कहा कि हमारी गाड़ी अब विकास की ओर मुड़ गई है और हम उस ओर बढ़ रहे हैं । उन्होंने कहा कि हमें इस उद्देश्य के लिये एक लम्बा लक्ष्य लेकर चलना होगा और उस पर आगे बढ़ते रहना होगा । आरएसएस प्रमुख ने कहा कि इसके लिये इतिहास और भूगोल की जानकारी चाहिए तथा अपने इतिहास पर गौरव होना चाहिए।

दीर्घकालिक विकास के लिए भारत को भारत बनकर रहना होगा : भागवत
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