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पाकिस्तान टु ‘भारत रत्न’, पढ़ें लालकृष्ण आडवाणी की जिंदगी से जुड़ी हर बात

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सुनीता सिंह, नई दिल्ली

जीवन के 96 वसंत देख चुके वरिष्ठ भाजपा नेता और देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को इसकी घोषण की। अयोध्या के राम जन्मभूमि आंदोलन को नई दिशा देने वाले और भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने वाले आडवाणी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। पाकिस्तान में अपनी उम्र के 20 वर्ष गुजारने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने अपने कॅरियर की शुरुआत पाकिस्तान के कराची स्थित मॉडल हाईस्कूल से बतौर शिक्षक शुरू की थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के गवाह रहे आडवाणी कराची में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। उसके बाद जनसंघ, फिर भारतीय जनता पार्टी और अब ‘भारत रत्न’ का उनका सफर बेहद दिलचस्प और प्रेरणादायी है।

परिवार के साथ खुशी मनाते लालकृष्ण आडवाणी।

खास बातें
1972 दिसम्बर में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए

1975 में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बने

1998 और 1999 में भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री रहे

1999 में भारतीय संसदीय समूह द्वारा उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से किया गया था सम्मानित

आडवाणी की पुस्तकें

मेरा देश मेरा जीवन (2008)

एक कैदी की स्क्रैपबुक (1978)

नजरबंद लोकतंत्र (2003)

सुरक्षा और विकास के नए दृष्टिकोण (2003)

तोहफा, जैसा कि मैंने इसे देखा (2011)

माई टेक (2021)

…जब आडवाणी को भारी पड़ गया था ‘जिन्ना का जिन्न’

जून 2005 में लालकृष्ण आडवाणी की पाकिस्तान की यात्रा भाजपा नेता को भारी पड़ गई थी। उनकी इस यात्रा से घटनाओं का एक अजीब क्रम शुरू हुआ, जहां पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना के ‘जिन्न’ ने भाजपा के दो दिग्गजों के कॅरियर को प्रभावित किया, पहले 2005 में आडवाणी और बाद में 2009 में जसवंत सिंह का।

लालकृष्ण आडवाणी जैसे ही पाकिस्तानी धरती पर जिन्ना की मजार पर गए, विवाद शुरू हो गया। तब आडवाणी ने कहा था कि पाकिस्तान के साथ शांति पहली चीजों में से एक है; बाबरी मस्जिद का विध्वंस सबसे दुखद दिन था; विभाजन अपरिवर्तनीय है; हर भारतीय में एक पाकिस्तानी है। फिर उल्लेखनीय रूप से उस पार्टी के अध्यक्ष की ओर से जिसके सदस्य खुले तौर पर मुसलमानों को “जिन्ना की संतान” कहते थे, आडवाणी ने दो राष्ट्र सिद्धांत के निर्माता जिन्ना को “महान व्यक्ति” के रूप में प्रस्तुत किया। यह भाजपा के लिए विधर्म से कम नहीं था। पार्टी और उसके नेता के बीच बेमेल संबंध इतना गहरा कभी नहीं था।

“देशद्रोही” तक दे दिया था करार

आडवाणी के बयान के बाद भाजपा ‘धर्म संकट’ में फंस गई थी। विहिप नेताओं ने आडवाणी को “देशद्रोही” तक करार दे दिया था। आरएसएस आडवाणी के परिवर्तन से नाराज और स्तब्ध था। सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई भाजपा के भीतर चल रही थी, जहां उनके वफादार भी उनके बयान का समर्थन करने को तैयार नहीं थे। यहां तक ​​कि पार्टी के भीतर के नरमपंथियों ने भी जिन्ना के प्रति आडवाणी के इस बदले हुए रवैए को इतना विचित्र माना कि इसे बीच के रास्ते की वास्तविक लड़ाई के रूप में नहीं देखा जा सकता। प्रमोद महाजन जैसे व्यावहारिक लोग किनारे से चुपचाप देखते रहे। सुषमा स्वराज की आडवाणी के सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी के साथ बहस भी हुई थी। सुधींद्र कुलकर्णी ने ही आडवाणी के पाकिस्तान में दिए गए भाषणों की स्क्रिप्टिंग की थी। जब कुलकर्णी ने मांग की कि पार्टी जिन्ना का बयान जारी करे (पार्टी ने अंततः कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं की, लेकिन बयान को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया), तो एक अन्य वरिष्ठ नेता ने उन पर हमला करते हुए कहा, “हम पाकिस्तान में चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।” एक बार के लिए वेंकैया नायडू जैसे आडवाणी के सहयोगी को भी अपने नेता के बचाव के लिए शब्द नहीं मिले।

आडवाणी के इस्तीफे की होने लगी थी मांग

कई नेता अपनी गलतफहमियों को लेकर जनता के बीच गए। मुरली मनोहर जोशी ने स्पष्ट कहा कि “विचारधारा से समझौता करने और जिन्ना पर अडवानी के शब्दों का समर्थन करने का कोई सवाल ही नहीं है।” यशवंत सिन्हा तो यहां तक ​​मांग कर बैठे कि आडवाणी विपक्ष के नेता का पद छोड़ दें और फिर पलट गए। एक आंतरिक बैठक में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कथित तौर पर कहा कि पार्टी को आडवाणी से पद से इस्तीफा देने का अनुरोध करके संसद में जिन्ना पर बहस की शर्मिंदगी से बचना चाहिए। उन्होंने कहा, “जिन्ना के बारे में उनके शब्दों का बचाव करना हमारे लिए असंभव है।” भाजपा के कुछ मुस्लिम सदस्यों में से एक, शाहनवाज हुसैन ने घोषणा की, “जिन्ना किसी भी भारतीय मुस्लिम के लिए नायक नहीं हैं। वह सांप्रदायिक हैं, धर्मनिरपेक्ष नहीं। हम जिन्ना की विरासत से लड़ने के लिए भाजपा में शामिल हुए, न कि उसकी रक्षा के लिए।” भड़काऊ भाषणों के लिए जाने जाने वाले विनय कटियार ने कहा: “जिन्ना ने सबसे पहले भारत का विभाजन किया। अब उन्होंने भाजपा का बंटवारा कर दिया है।”

आडवाणी ने पीछे हटने से कर दिया था इनकार

लालकृष्ण आडवाणी ने इस मामले में पीछे हटने से इनकार कर दिया। वह कथित तौर पर इस बात से भी नाराज थे कि उनकी पार्टी के सहयोगियों ने उनकी वापसी पर स्वागत समारोह में कमी कर दी थी। उनकी पाकिस्तान यात्रा की सराहना करते हुए कोई भी बयान जारी करने को तैयार नहीं था। दूसरे दर्जे के कई नेताओं ने (जिन्होंने बाद में उनसे मुलाकात की) उन्हें स्पष्ट शब्दों में बताया कि उनका बचाव करने में असमर्थता से उन्हें “गहरा दुख” हुआ है। तब लालकृष्ण आडवाणी ने ठाना कि अपने व्यक्तित्व और अधिकार की पूरी ताकत का इस्तेमाल पार्टी को पटरी पर लाने की कोशिश में करेंगे। लेकिन उन्हें आरएसएस के “विचारधारा पर कोई समझौता नहीं” के रुख के कारण कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। अंततः उनका बचाव करने का जिम्मा अटल बिहारी वाजपेयी पर छोड़ दिया गया। ऐसा माना जाता है कि वाजपेयी एक विवेकशील व्यक्ति थे, उन्होंने अपने वफादारों के छोटे समूह से कहा था कि यदि आडवाणी इस दौर में हार गए तो पार्टी कट्टरपंथियों के हाथों में चली जाएगी और यह एनडीए के मौजूदा स्वरूप के अंत का संकेत होगा। तब आडवाणी ने स्पष्ट कर दिया कि वह संघ के साथ टकराव के लिए तैयार हैं।
वेस्टलैंड बुक्स की पुस्तक शेड्स ऑफ सैफ्रॉन में सबा नकवी लिखती हैं कि तत्कालीन आरएसएस प्रमुख के सुदर्शन ने सार्वजनिक रूप से अडवानी और वाजपेयी को यह कहा था कि उन्हें युवा नेताओं के लिए रास्ता बनाना चाहिए। सितम्बर 2005 में चेन्नई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, “यह धारणा मजबूत हो गई है कि भाजपा कोई भी निर्णय आरएसएस पदाधिकारियों की सहमति के बिना नहीं ले सकती… यह न तो पार्टी के लिए चलेगा और न ही आरएसएस के लिए। चेन्नई की वह प्रेस कॉन्फ्रेंस जिन्ना की टिप्पणी के बाद अडवानी द्वारा आरएसएस का समर्थन खोने का परिणाम थी। आख़िरकार, पाकिस्तान यात्रा के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने जो कहा था, उसके वैचारिक निहितार्थ भाजपा के लिए बहुत बड़े थे। पार्टी को एक ही झटके में अपनी पहचान की राजनीति को छोड़ने के लिए कहा जा रहा था। भले ही आडवाणी भाजपा को बदलने के नेक इरादे से निकले थे, लेकिन जिस तरह से उन्होंने ऐसा किया उससे पूरे मामले पर सवालिया निशान लग गया।

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