नीरज सिसौदिया, लखनऊ
लोकसभा चुनाव में इस बार बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन पूरी तरह निराशाजनक रहा है। पिछली बार 10 सीटें जीतने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार शून्य पर सिमट गई है साथ ही उसके वोट शेयर में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। बसपा की यह हार दर्शाती है कि उत्तर प्रदेश में अब मायावती दलित राजनीति का केंद्र नहीं रह गई हैं। दलितों का भी उनसे मोहभंग हो चुका है। इस चुनाव में दो बड़े दलित चेहरे उभरकर सामने आए हैं। इनमें से एक हैं श्रीराम की नगरी में भगवा ब्रिगेड को चारों खाने चित करने वाले समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अवधेश प्रसाद। दूसरे हैं नगीना लोकसभा सीट से नगीना बनकर उभरे आजाद समाज पार्टी कांशीराम के प्रमुख चंद्रशेखर रावण। अवधेश प्रसाद के मुकाबले चंद्रशेखर की राह कुछ आसान थी। अवधेश का मुकाबला न सिर्फ भाजपा के साथ था बल्कि ऐतिहासिक श्रीराम मंदिर की भगवा ब्रिगेड की उपलब्धि के साथ भी था जिसका शोर पूरे देश में गूंज रहा था। भाजपा ने अयाेध्या में पूरी ताकत झोंक दी थी। वैसे तो पूरे फैजाबाद मंडल की पांचों सीटों सहित पास की श्रावस्ती और बस्ती सीट पर भी भाजपा को शिकस्त झेलनी पड़ी है लेकिन अयोध्या की हार अप्रत्याशित रही। भाजपा सांसद लल्लू सिंह को 50 हजार से भी अधिक वोटों से पराजित करने के बाद अवधेश प्रसाद की लोकप्रियता का ग्राफ सातवें आसमान पर पहुंच गया। पूरे देश की मीडिया के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी अवधेश का चेहरा छाया रहा। अवधेश प्रसाद की यह उपलब्धि इसलिए भी और बड़ी हो गई क्योंकि वह एकमात्र ऐसे दलित नेता हैं जिन्होंने दलित होने के बावजूद सामान्य सीट से चुनाव लड़ा और जीता। यही वजह है कि अवधेश प्रसाद उस दलित चेहरे के तौर पर उभर कर आए जो प्रदेश की राजनीति में दम तोड़ते दलित चेहरे की जगह ले सकता है।
दरअसल, उत्तर प्रदेश की सियासत में जब भी दलितों के नेता की बात होती है तो सबसे पहला नाम मायावती का सामने आता है। मायावती ने प्रदेश की सियासत में दलितों को एक नई राह दिखाई थी लेकिन बदलते वक्त के साथ मायावती का ग्राफ गिरता गया और आज वो राजनीतिक पतन की ओर बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में दलितों के समक्ष सबसे बड़ा सवाल यह उठने लगा है कि दलितों का अगला खेवनहार कौन होगा? मायावती में अब सत्ता को चुनौती देने का दम नहीं रह गया है। इस बीच साइकिल पर सवार होकर अयोध्या फतह करने वाले अवधेश प्रसाद जिस तरह से सुर्खियां बटोर रहे हैं उससे दलितों के बीच एक उम्मीद जगी है। उन्हें यूपी के अगले दलित चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है। समाजवादी पार्टी के लिए दलितों में पैठ बनाने का यह सबसे बेहतर मौका है। मायावती की जगह अवधेश प्रसाद ले सकते हैं बशर्ते समाजवादी पार्टी को उन्हें एक कद्दावर चेहरे के तौर पर पेश करना होगा। साइकिल के लिए उन दलितों का विश्वास जीतने में अवधेश प्रसाद कारगर साबित हो सकते हैं जो समाजवादी पार्टी को अब भी सिर्फ मुस्लिमों और यादवों की पार्टी के रूप में देखते हैं। अवधेश प्रसाद को अनारक्षित सीट से उम्मीदवार बनाकर अखिलेश यादव ने इस बात का प्रमाण दिया है कि उनके लिए दलित कितने अहम हैं। कुछ दलित इस बात को समझ चुके हैं लेकिन कुछ को इस बात का विश्वास दिलाना होगा। इस विश्वास को बनाने में अवधेश प्रसाद अहम भूमिका निभा सकते हैं। बशर्ते उनकी लोकप्रियता के ग्राफ के साथ ही पार्टी में उनका कद भी बढ़ता रहे।
यह सर्वविदित है कि समाजवादी पार्टी में कई दलित चेहरे होने के बावजूद कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो मायावती के कद को टक्कर देने में सक्षम हो। सपा का कोई भी ऐसा चेहरा नहीं था जिसके नाम से देशभर का दलित समाज वाकिफ हो। लेकिन अयोध्या में जीत के बाद अवधेश प्रसाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय दलित चेहरे के तौर पर उभरकर सामने आए हैं। सपा नेतृत्व को इस चेहरे को एक नई पहचान देनी होगी। इसका लाभ उसे आगामी विधानसभा चुनाव में तो मिलेगा ही, साथ ही देश की दलित राजनीति का केंद्र बनने में भी सपा को मदद मिलेगी। सपा को बस इतना ध्यान रखना होगा कि श्रीराम की नगरी के इस चेहरे की चमक फीकी न पड़ने पाए।