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सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को दी बड़ी राहत, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी है गुजारा भत्ता लेने का अधिकार, धारा 125 के तहत कर सकती हैं दावा, पढ़ें और क्या-क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के लिए?

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को बड़ी राहत देते हुए बुधवार को उन्हें भी पति से गुजारा भत्ता लेने का हकदार करार दिया है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि
हिन्दू धर्म की तलाकशुदा महिलाओं की तरह ही मुस्लिम महिलाओं को भी गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार है और ऐसी महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता के लिए दावा कर सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायेतर तलाक एक बेहतर विकल्प है –
मुस्लिम कानून इसका रास्ता दिखाता है। सीआरपीसी की धारा 125 कहती है कि “(1) यदि कोई व्यक्ति, जिसके पास पर्याप्त साधन हैं, उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इनकार करता है – (ए) उसकी पत्नी, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या (बी) अपने वैध या नाजायज नाबालिग बच्चे, चाहे वह विवाहित हो या नहीं, अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या (सी) उसकी वैध या नाजायज संतान (जो विवाहित बेटी नहीं है) जो वयस्क हो गई है, जहां ऐसा बच्चा किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या (डी) उसके पिता या माता अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, तो प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इनकार का सबूत मिलने पर, ऐसे व्यक्ति को अपनी पत्नी या ऐसे बच्चे, पिता या माता के भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता देने का आदेश दे सकता है। ऐसी मासिक दर पर जो मजिस्ट्रेट उचित समझे और ऐसे व्यक्ति को उतना ही भुगतान करे जितना मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे।”
सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने डेनियल लतीफी और अन्य बनाम भारत संघ मामले में सितंबर 2001 के अपने फैसले में 1986 अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था और कहा था कि इसके प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन नहीं करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट मोहम्मद अब्दुल समद नामक एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई कर रहा था जिसे तेलंगाना की एक परिवार अदालत ने अपनी पत्नी को 20 हजार रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।

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