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लोकसभा चुनाव में सपा की जीत में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की रही अहम भूमिका, यूं नहीं छीन लीं भाजपा से रामपुर, जौनपुर और आजमगढ़ जैसी सीटें, पढ़ें प्रदेश उपाध्यक्ष इंजीनियर अनीस अहमद खां से विशेष बातचीत

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
विगत लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने शानदार जीत हासिल कर पूरे देश को हैरान कर दिया। सपा ने इस चुनाव में न सिर्फ जीत हासिल की बल्कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में भी कामयाब रही। सपा की इस जीत के पीछे यूं तो कई कारक रहे लेकिन एक सबसे अहम कारक अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की अति सक्रियता भी रही जिसने भारतीय जनता पार्टी के चुनावी मैनेजमेंट को पूरी तरह ध्वस्त कर डाला। खास तौर पर रामपुर, आजमगढ़, कन्नौज और जौनपुर जैसी सीटों पर जो कि सपा का गढ़ होने के बावजूद पिछले चुनावों में भाजपा के खाते में चली गई थीं। प्रदेश अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष शकील नदवी के नेतृत्व में उपाध्यक्ष इंजीनियर अनीस अहमद खां, महासचिव सैयद रिजवान, हापुड़ जिला अध्यक्ष आस मोहम्मद सहित अन्य पदाधिकारियों की टीम ने सचमुच कमाल कर दिखाया।
इस बार के चुनाव में सबसे अहम सीट रही रामपुर। रामपुर में चुनौती बहुत बड़ी थी। यहां सपा के संगठन का मतलब पूर्व मंत्री आजम खां हुआ करता था। लेकिन भाजपा के निशाने पर आने के बाद आजम खां की सियासी जमीन खिसक चुकी थी और पिछले उपचुनाव में यह सीट भाजपा ने जीत ली थी। अखिलेश यादव को यह आभास हो चुका था कि आजम खां गुट के किसी स्थानीय नेता को अगर मैदान में उतारा तो लोकसभा चुनाव में इस बार भी वही हश्र होगा जो पिछले उपचुनाव या विधानसभा चुनाव में हुआ। इसलिए सपा ने यहां एक ऐसे प्रत्याशी को उतारा जो हैं तो स्थानीय लेकिन स्थानीय राजनीति से वो दूर दिल्ली में एक मस्जिद में नमाज अदा कराया करते थे। साफ सुथरी छवि वाले मौलाना मोहिबुल्ला नदवी को रामपुर सीट से मैदान में उतारा गया। चूंकि यह सीट मुस्लिम बाहुल्य थी और सपा पीडीए पर चुनाव लड़ रही थी इसलिए अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की भूमिका यहां काफी अहम हो गई। इसलिए प्रदेश अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष शकील नदवी ने मोर्चा संभाला और इस सीट की जिम्मेदारी प्रदेश अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष इंजीनियर अनीस अहमद खां को सौंपी। निश्चित तौर पर इसके पीछे शकील नदवी ने कई पहलुओं को देखा होगा। बरेली बेस्ड अनुभवी नेता इंजीनियर अनीस अहमद खां का रामपुर से भी गहरा नाता रहा था। वह रामपुर के मिजाज से भली-भांति परिचित थे। सिंचाई विभाग में इंजीनियर रहने के दौरान अनीस अहमद खां की पोस्टिंग रामपुर में रही थी। उन्होंने अपनी जिंदगी के कई अहम साल रामपुर जिले में ही गुजारे थे। यही वजह थी कि आम किसान से लेकर नेताओं और नौकरशाहों के बीच भी इंजीनियर अनीस अहमद खां गहरी पैठ रखते थे। शायद यही वजह रही होगी कि नदवी ने उन्हें यह मौका दिया। 3 अप्रैल 2024 को नदवी के नेतृत्व में इंजीनियर अनीस अहमद खां, सैयद रिजवान, असगर अली सहित विभिन्न पदाधिकारियों की एक टीम रामपुर पहुंची।
इंजीनियर अनीस अहमद खां ने बताया कि अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की 25 टीमों के साथ हम रामपुर पहुंचे और पार्टी को जीत दिलाने के लिए दिन-रात एक कर दिया। उन्होंने बताया कि रामपुर में सपा प्रत्याशी मोहिबुल्ला स्वार के रहने वाले थे। हमने तोपखाना रोड पर चुनावी दफ्तर खोला। 19 अप्रैल तक पूरी टीम रामपुर में ही रही। हमारी टीम ने कड़ी मेहनत की। चूंकि रामपुर सीट में 52 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं और शहर विधानसभा सीट पर 70% वोटर मुस्लिम हैं इसलिए हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इन मतदाताओं के बिखराव को रोकने की थी। एक और चुनौती यहां पर आजम खां का प्रभुत्व भी था। नदवी साहब के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन में इन सब चुनौतियों से पार पाने में हमारी टीम कामयाब रही और मौलाना मोहिबुल्ला नदवी ने शानदार जीत हासिल की।
अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की ये टीमें रामपुर के बाद कन्नौज रवाना हो गईं। यहां से खुद पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव मैदान में थे।
इंजीनियर अनीस अहमद खां ने बताया कि प्रकोष्ठ की टीम आठ मई को कन्नौज पहुंची और 16 मई तक वहीं रही। वहां मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में जाकर अल्पसंख्यकों को एकजुट करने का काम किया। यहां भी सपा ने शानदार जीत हासिल की।
इसके बाद बारी थी आजमगढ़ और जौनपुर की। दोनों ही सीटें एक-दूसरे से सटी थीं। 16-17 मई को अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी के मार्गदर्शन में उपाध्यक्ष इंजीनियर अनीस अहमद खां प्रकोष्ठ की टीम के साथ आजमगढ़ पहुंचे। यहां एक बार फिर धर्मेंद्र यादव मैदान में थे जिन्हें लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी और भोजपुरी सिने स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने पराजित कर दिया था। अखिलेश यादव 2019 में यहां से जीते थे लेकिन करहल विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अखिलेश ने आजमगढ़ सीट छोड़ दी थी। जिसके बाद यहां उपचुनाव हुए थे और धर्मेंद्र यादव इस सीट से हार गए थे। मुस्लिम बाहुल्य आजमगढ़ सीट पर दूसरी सबसे बड़ी आबादी यादव समाज की है। यहां भी चुनौती वोटों के बिखराव को रोकने की थी। इसमें अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की अहम भूमिका रही। नतीजतन निरहुआ को मुंह की खानी पड़ी और धर्मेंद्र यादव लोकसभा पहुंच गए।
17 मई से 23 मई तक अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ ने आजमगढ़ और जौनपुर के अल्पसंख्यक बाहुल्य इलाकों में ताबड़तोड़ बैठकें कीं और जनसंपर्क किया। जौनपुर से सपा ने बसपा सरकार में मंत्री रह चुके बाबू सिंह कुशवाहा को मैदान में उतारा था। बाबू सिंह सपा के टिकट पर पहली बार लोकसभा के मैदान में उतरे थे। यहां भी मुस्लिमों के बिखराव को रोकना बड़ी चुनौती थी। प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष इंजीनियर अनीस अहमद खां ने बताया कि इन दोनों ही सीटों पर अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की टीम को दिन-रात काम करना पड़ा। दिन में आजमगढ़ में बैठकें करते तो रात में जौनपुर में। जब दिन में जौनपुर में होते तो रात में आजमगढ़ में। आखिरी दिन तक यह सिलसिला चलता रहा और आखिरकार दोनों ही सीटें हमने भाजपा से छीन लीं।
इंजीनियर अनीस अहमद खां ने बताया कि प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी, प्रदेश महासचिव सैयद रिजवान, सचिव असगर अली और हापुड़ जिला अध्यक्ष आस मोहम्मद ने लोकसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में अल्पसंख्यकों के बिखराव को रोकने का भरसक प्रयत्न किया और यह प्रयास रंग लाया।
बता दें कि अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष इंजीनियर अनीस अहमद खां को लोकसभा चुनाव में चार सीटों पर प्रचार की जिम्मेदारी मिली थी। इनमें रामपुर, कन्नौज, आजमगढ़ और जौनपुर शामिल थीं। जिनमें रामपुर की उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई थी। चारों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की।

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