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ढाई साल से विलुप्त हैं चुनावी बरसात के सियासी मेढक, इंजीनियर अनीस अहमद और राजेश अग्रवाल ही नजर आ रहे जनता के बीच, पढ़ें कैसे गायब हो गए विधानसभा चुनाव में टिकट मांगने वाले सपा के उम्मीदवार?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लगभग ढाई साल से अधिक समय हो चुका है। प्रदेश भर में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं जो 2027 के शुरुआती महीनों में होने हैं। इस सबके बावजूद चुनावी बरसात में टिकट के लिए टरटराने वाले सियासी मेढक अभी तक बिलों से बाहर नहीं आए हैं। पिछले ढाई वर्षों में स्थानीय जनता को किन-किन परेशानियों से जूझना पड़ा इससे समाजवादी पार्टी के टिकट के उन दावेदारों को कोई लेना-देना नहीं है। न ही वो जनता के बीच जाकर उनके काम कराते नजर आ रहे हैं। सिर्फ इंजीनियर अनीस अहमद खां और राजेश अग्रवाल ही दो ऐसे चेहरे हैं जो विधानसभा चुनाव के बाद भी उसी तरह जनता के सुख-दुख में भागीदार बनते आ रहे हैं जिस तरह वह विधानसभा चुनाव से पहले नजर आ रहे थे।

लोकसभा चुनाव के दौरान बैठक करते इंजीनियर अनीस अहमद खां।

बता दें कि विगत विधानसभा चुनाव में बरेली महानगर की दो सीटों- शहर और कैंट से लगभग सौ से भी अधिक नेता टिकट के लिए दावेदारी जता रहे थे। उस वक्त गली-मोहल्लों में उनके इतने पोस्टर देखने को मिल रहे थे जैसे कि उनसे बड़ा समाजसेवी और पार्टी के लिए समर्पित नेता कोई दूसरा है ही नहीं। लेकिन जैसे ही विधानसभा चुनाव में उनका पत्ता साफ हुआ तो वो भी समाजसेवा की राहों से साफ हो गए। कोई वापस अपनी कोचिंग में व्यवस्त हो गया, कोई अपने अस्पताल में तो कोई दूसरे कारोबार में। हालांकि, नगर निगम के कुछ पार्षद जो टिकट के दावेदार थे, जरूर जनता के काम कराते नजर आए। लेकिन उन्होंने अपना दायरा अपने वार्ड तक ही सीमित रखा। ऐसे सिर्फ दो नेता नजर आए जो विधानसभा स्तर पर जनता के काम कराते और उनसे नियमित रूप से जनसंपर्क करते दिखाई दिए। इनमें एक इंजीनियर अनीस अहमद खां हैं तो दूसरे पार्षद राजेश अग्रवाल। राजेश अग्रवाल को समाजवादी पार्टी ने शहर विधानसभा सीट से टिकट दिया था लेकिन बदकिस्मती से वो चुनाव हार गए थे। शहर विधानसभा सीट से चुनाव हारने के बावजूद वह सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि उनकी सक्रियता इस बार शहर विधानसभा की जगह कैंट विधानसभा क्षेत्र में ज्यादा दिखाई दे रही है। यह स्वाभाविक इसलिए भी है क्योंकि उनका घर और वार्ड कैंट विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इसलिए वह अक्सर यहां की टूटी सड़कों, नालियों आदि की मरम्मत कराते नजर आ जाते हैं। इसके अलावा पूरे महानगर का गृहकर का मुद्दा भी वह जोर-शोर से उठाते आ रहे हैं।
राजेश अग्रवाल के अलावा जनता के प्रति समर्पण के मामले में इंजीनियर अनीस अहमद खां ने सबको पीछे छोड़ दिया है। इंजीनियर अनीस अहमद खां पिछले विधानसभा चुनाव में बरेली कैंट विधानसभा सीट से टिकट चाहते थे लेकिन ऐन वक्त पर पार्टी ने उनकी जगह कांग्रेस छोड़कर सपा में आईं पूर्व मेयर सुप्रिया ऐरन को मैदान में उतार दिया। सुप्रिया को भाजपा के संजीव अग्रवाल ने शिकस्त दी।

मेयर उमेश गौतम को ज्ञापन सौंपते राजेश अग्रवाल

इसके बाद उनके पति और पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन को सपा ने बरेली लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार बनाया। प्रवीण सिंह ऐरन भी चुनाव हार गए। इसके बाद दोनों पति-पत्नी ने आम जनता से दूरी बना ली। लेकिन टिकट कटने के बावजूद इंजीनियर अनीस अहमद खां ने पार्टी और जनता के प्रति अपना समर्पण नहीं छोड़ा। वह पिछले लगभग ढाई साल से लगातार जनता के सुख-दुख के भागीदार बनते आ रहे हैं। खास तौर पर मुस्लिम बाहुल्य कैंट विधानसभा इलाके में वह दलितों के घर में भी बैठकें और जनसंपर्क करते अक्सर नजर आते रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने विधानसभा क्षेत्र में अपनी टीमें भी लगा रखी हैं जो आज भी उसी तरह जनता के बीच समाजवादी पार्टी का प्रचार कर रही हैं जैसे कि विधानसभा चुनाव से पहले करती थीं। यही वजह है कि इंजीनियर अनीस अहमद खां आज समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के नारे पर अमल करते हुए विधानसभा क्षेत्र में अपनी पकड़ काफी मजबूत कर चुके हैं। समाजवादी पार्टी ने इंजीनियर अनीस अहमद खां के इसी समर्पण को देखते हुए उन्हें अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है जिसे वह बाखूबी निभा रहे हैं। विगत लोकसभा चुनाव में वह रामपुर से लेकर आजमढ़ तक पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करते नजर आए थे।
इन दो चेहरों के अलावा एक और चेहरा है जिसने विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक समाजवादी पार्टी के दबदबे को कम नहीं होने दिया है और वह चेहरा है समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी का। संगठन ने उनके समर्पण और मेहनत को देखते हुए एक बार फिर उन्हें महानगर अध्यक्ष पद से नवाजा था। इस नाते वह भी क्षेत्र में काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं।
इनके अलावा गौरव सक्सेना, डॉ. पवन सक्सेना, डॉ. अनीस बेग और अब्दुल कय्यूम खां उर्फ मुन्ना भी टिकट के कुछ ऐसे दावेदार हैं जो जनता के बीच औसत रूप से सक्रिय तो नजर आते हैं लेकिन इनकी सक्रियता का दायरा सीमित है।
ऐसा कोई सपा का टिकट का दावेदार नजर नहीं आया जिसने कैंट विधायक संजीव अग्रवाल या शहर विधायक डॉ. अरुण कुमार या मेयर डॉ. उमेश गौतम के खिलाफ उन इलाकों के बाशिंदों की समस्याओं के समाधान के लिए कोई जनआंदोलन छेड़ा हो जिनकी उक्त विधायकों ने अनदेखी की है या पिछले ढाई वर्षों में जहां उक्त भाजपा नेताओं ने कोई विकास कार्य नहीं करवाया है।

बरेली में जन संपर्क करते इंजीनियर अनीस अहमद खां।

बहरहाल, समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो की नजर पार्टी के उन सभी टिकट के दावेदारों पर है जो सक्रिय है अथवा निष्क्रिय हैं। पार्टी मुख्यालय के सूत्र बताते हैं कि इस बार टिकट वितरण का मुख्य पैमाना पांच वर्षों के कार्यकाल के दौरान पार्टी नेताओं की सक्रियता और पीडीए के बीच उनकी पकड़ पर आधारित होगा।

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