यूपी

करहल जाकर अता उर रहमान ने बचा लिया बरेली का मान, कुंदरकी में काम नहीं आए जिले के दिग्गज, जमानत भी हो गई जब्त, पढ़ें उन सीटों का क्या रहा हाल जहां बरेली के सपा नेताओं की लगाई गई थी ड्यूटी

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नीरज सिसौदिया, बरेली
यूपी विधानसभा की नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में दो सीटें ऐसी भी थीं जहां बरेली जिले के दिग्गज पार्टी नेताओं की ड्यूटी लगाई गई थी। इन दोनों ही सीटों पर बरेली के दिग्गजों ने पूरी जी-जान लगा दी थी लेकिन कामयाबी सिर्फ एक सीट पर ही मिली। दूसरी सीट पर तो सपा उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके।
सबसे पहले बात सबसे वीआईपी सीट करहल की जहां सिर्फ बरेली ही नहीं बल्कि पूरे देश की नजर थी। इस सीट पर 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने जीत हासिल की थी। इस बार यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर यादव परिवार के ही तेज प्रताप सिंह मैदान में थे। वहीं, उनका मुकाबला भी यादव परिवार के दामाद, धर्मेंद्र यादव के बहनोई और तेज प्रताप के फूफा अनुजेश प्रताप सिंह से था। अनुजेश भाजपा के टिकट पर किस्मत आजमा रहे थे। ठीक उसी तरह जिस तरह महाराष्ट्र में बारामती सीट से एनसीपी के अजित पवार का मुकाबला अपने ही भतीजे योगेंद्र से था। वहां चुनावी जंग चाचा और भतीजे के बीच थी जिसमें चाचा ने बाजी मार ली जबकि करहल में फूफा-भतीजे की जंग में भतीजा बाजी मार ले गया। तेज प्रताप की ये जीत आसान कतई नहीं थी। अखिलेश यादव मौके की नजाकत को अच्छी तरह भांप चुके थे इसलिए उन्होंने करहल में ऐसे नेताओं को लगाया जो विपरीत परिस्थितियों में भी जीत का हुनर जानते थे।

इनमें पहला नाम है बरेली जिले की बहेड़ी विधानसभा सीट के मौजूदा विधायक और पूर्व मंत्री अता उर रहमान का। अता उर रहमान को कार्यालय प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। साथ ही उन्हें कांग्रेस से समन्वय के लिए बनाई गई को-ऑर्डिनेशन कमेटी का करहल विधानसभा क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया। इसी तरह रामवरन सिंह को विधानसभा क्षेत्र अध्यक्ष और आजमगढ़ से ताल्लुक रखने वाले पूर्व मंत्री चंद्र देव राम यादव को भी अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। 30 अक्टूबर को अता उर रहमान को यह जिम्मेदारी दी गई और तब से लेकर मतगणना तक अता उर रहमान ने अपने साथियों के साथ करहल में जी-जान लगा दी। इन तीनों नेताओं की मेहनत और अखिलेश यादव के रसूख की बदौलत तेज प्रताप सिंह ने अपने फूफा को 14725 वोटों से शिकस्त दी और विधानसभा पहुंच गए। तेज प्रताप का यह पहला विधानसभा चुनाव था। उन्हें 104304 वोट मिले जबकि अनुजेश प्रताप को 89579 वोट मिले। तीसरे नंबर पर रहे बसपा के अवनीश शाक्य महज 8409 वोटों पर ही सिमट गए। अगर भाजपा और बसपा के वोट मिला भी दिए जाएं तो भी तेज प्रताप ही विजयी होते। इस तरह बरेली जिले का मान अता उर रहमान ने करहल में तो रख लिया लेकिन कुंदरकी में स्थिति बेहद शर्मनाक साबित हुई।


कुंदरकी में सपा को पहले से ही अंदेशा था कि प्रशासन कुछ गड़बड़ी कर सकता है। इसलिए पार्टी के कई दिग्गज नेता लखनऊ से कई बार कुंदरकी पहुंचे। बरेली जिला एवं महानगर के पदाधिकारी भी कुंदरकी में ही डेरा डाले रहे। बरेली के रहने वाले प्रदेश के पदाधिकारियों ने भी कुंदरकी जीतने के लिए दिन-रात एक कर दिया। खास तौर पर मतदान से पहले के तीन-चार दिनों में बरेली जिले के सपा नेताओं की पूरी फौज कुंदरकी में ही डेरा डाले रही लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। यहां पार्टी को बेहद शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। सपा उम्मीदवार हाजी मोहम्मद रिजवान जमानत तक जब्त करा बैठे। उन्हें महज 25580 वोट मिले जबकि भाजपा के रामवीर सिंह को 170371 वोट हासिल कर रिजवान को 144791 वोटों से शिकस्त दी। यहां बसपा की जगह चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी कांशीराम के चांद बाबू तीसरे स्थान पर रहे। सपा के मुरादाबाद और बरेली के दिग्गज नेता यहां मुस्लिम वोटों को सहेजने में नाकाम रहे। हालांकि, सपा नेताओं का आरोप है कि यहां सत्तारूढ़ भाजपा ने प्रशासन के साथ मिलकर सपा के मतदाताओं को वोट ही नहीं डालने दिया। खुद पार्टी के मुख्य महासचिव रामगोपाल यादव ने यहां दोबारा मतदान कराने की मांग की है। लेकिन यह भी सच है कि भाजपा उम्मीदवार रामवीर सिंह के सिर पर जालीदार टोपी और मुस्लिम मतदाताओं के बीच उनकी पैठ ने भी कहीं न कहीं मुस्लिम वोटों का गणित बिगाड़ा। रामवीर सिंह को 60% मुस्लिम मतदाताओं वाली इस सीट के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से भी वोट मिले हैं।

मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट का परिणाम काफी आश्चर्यजनक है। इस मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में एकमात्र हिंदू प्रत्याशी भाजपा के रामवीर ठाकुर ने 1 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की। ऐसा माना जा रहा है कि यह परिणाम किसी हिंदू -मुस्लिम ध्रुवीकरण नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय के अंदर ही तुर्क और शेख बिरादरी के ध्रुवीकरण की वजह से आया। भाजपा प्रत्याशी यहां नमाजी टोपी और अरबी गमछा पहनकर मुसलमानों के बीच बने रहे, और उनकी लोकप्रियता मुस्लिम समुदाय के बीच बनी रही। ऐसा माना जा रहा है कि शेख बिरादरी रामवीर सिंह के पीछे खड़ी नजर आई जबकि तुर्क बिरादरी से आने वाले हाजी रिजवान मुसलमानों में अपनी पकड़ नहीं बना पाए।
बहरहाल, बरेली जिले के सपा नेताओं ने दोनों ही सीटों पर अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया। ये अलग बात है कि यह प्रयास करहल में काम आ गया लेकिन कुंदरकी में नाकाम रहा।
कुछ भी हो लेकिन इन चुनावी नतीजों ने अता उर रहमान के राजनीतिक कद में जरूर इजाफा किया है। करहल के बहाने अता उर रहमान को यादव परिवार के और करीब आने का अवसर मिला है जिसका लाभ उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में मिलने की संभावना है।

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