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ये मजहबी सियासत नहीं करते, ईद पर बांटते हैं खुशियां तो सिखों के नगर कीर्तन में पंच प्यारों का स्वागत भी करते हैं, क्रिसमस पर चर्च जाते हैं तो होली में गुलाल भी उड़ाते हैं, पिछली बार तोड़ लाए थे भाजपा के बूथ अध्यक्ष का पूरा परिवार, पढ़ें अबकी बार क्या है सपा नेता मो. कलीमुद्दीन की तैयारी?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी के प्रदेश सचिव मोहम्मद कलीमुद्दीन इन दिनों शहर विधानसभा सीट से सपा के टिकट की दावेदारी के चलते चर्चा में हैं। मजहबी सियासत के इस दौर में कलीमुद्दीन बरेली शहर के उन चुनिंदा हस्तियों में हैं जो मजहब और जात-पात की सियासत में बिल्कुल भी यकीन नहीं रखते। वो ईद की खुशियां भी बांटते हैं तो सिखों के गुरु साहिबान के प्रकाश पर्व पर निकाले जाने वाले नगर कीर्तन का भव्य स्वागत भी करते हैं। वह ब्राह्मणों के साथ बैठकर खाना भी खाते हैं और दलितों को गले भी लगाते हैं। वो क्रिसमस पर चर्च भी जाते हैं और होली पर गुलाल भी उड़ाते हैं। कलीमुद्दीन ने बरेली की सियासत में ही नहीं बल्कि प्रदेश की राजनीति में भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है। यही वजह रही कि जब कुंदरकी में उपचुनाव हुए थे तो कलीमुद्दीन को भी वहां की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्हें प्रदेश सचिव जैसे अहम पद से भी नवाजा गया है।
पिछले चुनाव में कलीमुद्दीन ने अपनी ताकत दिखाई थी। वह एकमात्र ऐसे दावेदार थे जो भाजपा के बूथ अध्यक्ष के परिजनों सहित राठौर समाज की दर्जनों महिलाओं को तोड़कर सपा में ले आए थे। उनकी जाटव समाज में भी अच्छी पकड़ बताई जाती है। पिछले चुनावों में उन्होंने दलितों के सम्मेलन भी आयोजित किए थे। अब एक बार फिर कलीमुद्दीन पुराने अंदाज में वापसी की तैयारी कर रहे हैं।
ओमेगा क्लासेज के डायरेक्टर कलीमुद्दीन की कोचिंग के बच्चों ने इस बार भी नीट परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया है। कई बच्चों ने सरकारी कॉलेजों में एमबीबीएस में जगह बनाई है। कलीमुद्दीन इन बच्चों की बदौलत आज सिर्फ बरेली शहर ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में भी घर-घर तक पहुंच चुके हैं।

मो. कलीमुद्दीन

पिछले पांच वर्षों में कलीमुद्दीन ने शहर विधानसभा क्षेत्र में जिस तरीके से काम किया है, आज उसी की वजह से वो सपा के टिकट के लिए दावेदारी जता रहे हैं। सपा को शहर विधानसभा सीट पर एक ऐसा ही चेहरा चाहिए जो न सिर्फ मुस्लिम बल्कि हिन्दू और पंजाबी समाज में भी अच्छी पकड़ रखता हो। कलीमुद्दीन पार्टी के इन पैमानों पर पूरी तरह खरे उतरते हैं।
बहरहाल, टिकट किसे मिलेगा और किसे नहीं, इसका फैसला तो पंचायत चुनाव के बाद ही होगा।

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