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यूं ही कोई इंजीनियर अनीस अहमद खां नहीं बन जाता…, पढ़ें कैसे इस मुकाम पर पहुंचे इं. अनीस अहमद खां?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
नाथ नगरी की सियासत में इन दिनों एक नाम बड़े ही अदब के साथ लिया जाता है। यूं तो वह नाम समुदाय विशेष से ताल्लुक रखता है लेकिन हर जाति धर्म के लोग उसके मुरीद हैं। खास तौर पर समाज के उस तबके के लोग उसे विशेष सम्मान देते हैं जिन्हें मनुवादी व्यवस्था ने दलित की संज्ञा दी है। इस शख्सियत ने उन्हीं दलितों को गले से लगाया और उनके दिलों में घर कर गए। क्या हिन्दू, क्या मुस्लिम, क्या ब्राह्मण और क्या क्षत्रिय, उसके घर पर चाहने वालों का मेला सा लगा रहता है। जी हां! हम बात कर रहे हैं बरेली महानगर के समाजवादी पार्टी के नेता और समाजसेवी इंजीनियर अनीस अहमद खां की। इंजीनियर बनना तो बेहद आसान है लेकिन इंजीनियर अनीस अहमद खां कोई यूं ही नहीं बन जाता है। इसके लिए खुद को छोटा और दिल का दायरा बड़ा करना होता है। इंजीनियर अनीस अहमद खां की इसी खूबी ने उन्हें लोगों के दिलों में जगह दिलाई है। वह एक ऐसे सियासतदान हैं जिन्होंने विवादों से दूर रहकर दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा और तीसरी बार जब टिकट नहीं मिला तो दूसरे टिकट के दावेदारों की तरह कोपभवन में बैठने की जगह पार्टी उम्मीदवार को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर भी लगा दिया। पार्टी के अभियानों और उसकी मजबूती के लिए जितना पैसा इंजीनियर अनीस अहमद खां ने पानी की तरह बहा दिया उतना पैसा शायद ही बरेली महानगर के टिकट के दावेदार ने पार्टी की सेवा में खर्च किया होगा। बरेली जिले का ऐतिहासिक वोटरशिप अभियान भी इंजीनियर अनीस अहमद खां के नाम दर्ज हो चुका है। इस अभियान के माध्यम से अखिलेश यादव और उनकी नीतियां घर-घर पहुंच चुकी हैं। इतना ही नहीं सदस्यता अभियान के दौरान जिस तत्परता से निजी स्तर पर वह पार्टी के नए सदस्यों को जोड़ने का काम किया है वह निश्चित तौर पर काबिले तारीफ है। दिलचस्प बात यह है कि इंजीनियर अनीस अहमद खां पार्टी के लिए किए गए कामों का ढिंढोरा पीटने में तनिक भी विश्वास नहीं रखते। वह नेकी कर दरिया में डाल की विचारधारा पर चलते हैं। यही वजह है कि अखबारों और न्यूज चैनलों में कभी भी उनके बड़े-बड़े विज्ञापन दिखाई नहीं देते। महानगर का अगर कोई जरूरतमंद उनके घर आता है तो खाली हाथ नहीं जाता है। सादगी ऐसी कि छोटे -बड़े हर शख्स को भरपूर सम्मान देते हैं। उनकी तहज़ीब और जुबां न तो उम्र का दायरा देखती है और न ही हैसियत। उनकी नजरें सबको एक नजर से देखती हैं। यही वजह है कि पार्टी कार्यकर्ता उन्हें अपने करीब पाते हैं और उनके लिए 24 घंटे तैयार रहते हैं।
इंजीनियर अनीस अहमद खां का राजनीतिक सफर आसान नहीं रहा मगर दिलों को जीतने के हुनर ने उन्हें आम जनता के दिलों तक जरूर पहुंचा दिया है। इंजीनियर अनीस अहमद खां नौकरी से वीआरएस लेकर सियासत में आए थे। बेबस जरूरतमंदों के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत ने उन्हें राजनीति में आने पर मजबूर कर दिया। सत्ता का मोह उन्हें छू भी न सका। पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो भी उनके काम का अंदाज नहीं बदला। चुनाव आए और गए पर इंजीनियर अनीस अहमद खां अपनी राह पर आगे बढ़ते गए। इन दिनों वह पूर्व मंत्री और बहेड़ी विधायक अता उर रहमान के साथ पूरे महानगर में पार्टी के पार्षदों और कार्यकर्ताओं के साथ रोजाना बैठकें कर नगर निगम चुनाव में पार्टी की जीत के लिए तत्परता से काम करने की अपील करते नजर आ रहे हैं। इंजीनियर अनीस अहमद खां ने यह सार्वजनिक मंच से स्पष्ट भी कर दिया है कि उन्हें मेयर का चुनाव नहीं लड़ना है। वह यह चुनाव नहीं लड़ना चाहते। जो बैठकें की जा रही हैं वह भी सिर्फ पार्टी की मजबूती के लिए कर रहे हैं लेकिन विरोधी उनकी बैठकों से ही बेचैन हो उठे हैं। हर कोई उनके समर्पण में उनके स्वार्थ की तलाश करने में लगा है। यह तलाश फिलहाल तो पूरी नहीं हो सकी है। फिर भी विरोधी खेमे में खलबली मची हुई है। कोई उन्हें मेयर के दावेदार के तौर पर प्रचारित कर रहा है तो कोई उन्हें जिला अध्यक्ष की कुर्सी का दावेदार बता रहा है। इस सबके बावजूद इंजीनियर अनीस अहमद खां अपने काम में खामोशी और खूबसूरती के साथ लगे हुए हैं। उन्हें न तो मेयर का टिकट पाने की लालसा है और न ही जिला अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज होना चाहते हैं। इसके बावजूद विरोधियों की रातों की नींद हराम हो चुकी है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वह इन दोनों पदों के योग्य है। चाहे पर्सनैलिटी की बात हो, आर्थिक मजबूती की बात हो या फिर संगठन के प्रति सेवा और समर्पण की बात, इंजीनियर अनीस अहमद खां हर मोर्चे पर विरोधियों को मात दे रहे हैं। यही वजह है कि इंजीनियर अनीस अहमद खां के नाम की चर्चा उक्त दोनों पदों के प्रबल दावेदार के रूप में होने लगी है।
गरीब बेटी की शादी से लेकर जरूरतमंदों की पढ़ाई तक में इंजीनियर अनीस अहमद खां का योगदान उल्लेखनीय है। इंजीनियर अनीस अहमद खां बुरे दौर में भी पार्टी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं।

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