नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
शहीदों की चिताओं पर मेले लगाने की बात तो हर कोई करता है लेकिन शहीदों की कुर्बानी को पीढ़ियों तक पहुंचाने की पहल कोई नहीं करता. अब शहीदों की कुर्बानी किताबों के पन्नों में लिपटकर अलमारियों की धूल फांकने पर मजबूर नहीं होगी. ये मुमकिन कर दिखाया है सियासत की राहों में चंद कदमों का फासला तय करने वाले पद्मश्री सांसद हंसराज हंस ने.
सुरों के फलक पर सितारों की तरह जगमगाने वाले हंसराज हंस ने अपने संसदीय क्षेत्र उत्तर पश्चिमी दिल्ली से एक ऐसे अभियान का आगाज किया है जिससे बड़ी श्रद्धांजलि शहीदों के लिए फिलहाल नहीं होगी.
हंसराज हंस ने उत्तर पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट के पांच विधानसभा इलाकों रोहिणी, रिठाला, बादली, मंगोलपुरी और नरेला में अपनी तरह का पहला और अनोखा पौधरोपण अभियान शुरू किया है. इसके तहत पांचों विस हलकों में कुछ पौधे लगाए गए हैं. हर पौधे पर एक शहीद का नाम और शहादत की कहानी लिखी गई है. साथ ही इन पौधों पर उस शख्स का नाम भी लिखा गया जिसने उस पौधे को लगाया है और उस पौधे को पाल पोस कर बड़ा करने की जिम्मेदारी भी उसी शख्स की होगी. इस अभियान की शुरुआत बेहद उम्दा सोच के साथ की गई है. पौधरोपण करने वाले बताते हैं कि देशवासियों को जिंदगी देने के लिए हमारे वीर जवान सरहद पर कुर्बान हो जाते हैं. एक तरह से ये जवान अंतिम सांस तक हमारी जिंदगी के लिए लड़ते रहते हैं. वहीं, दूसरी तरफ जब तक पेड़ हरे भरे रहते हैं तब तक ये पेड़ भी हमें जिंदगी देते हैं. यानी जवान हों या पेड़ दोनों ही अंतिम सांस तक हमारी जिंदगी को सुरक्षित रखते हैं. अब अगर हर पौधे पर शहीद की कुर्बानी दर्ज होगी तो ये पेड़ न सिर्फ हमें जिंदगी देंगे बल्कि देशभक्ति का अहसास भी कराएंगे.
शहीदों को इससे बड़ा सम्मान न ही इतिहास में किसी ने दिया है और शायद ही दुनिया के किसी मुल्क ने दिया हो. हमारे जवानों को दुनिया के सभी देशों से बढ़कर सम्मान देने की यह एक पहल मात्र है जो हंसराज हंस ने की है. बस इसी सोच के साथ इस मुहिम का आगाज किया गया है.
हंस का सपना लोकसभा हलके के सभी पार्कों, स्कूल, कॉलेज में इस मुहिम को पहुंचा कर युवा पीढ़ी को देशभक्ति और पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रेरित करने का है. साथ ही हंस ने इस मुहिम को एक जन आंदोलन बनाने की अपील देशवासियों से की है. उन्होंने कहा कि इस 15 अगस्त पर आओ मिलकर शहीदों को ये श्रद्धांजलि दें. उनकी कुर्बानी को अमर बनाने के एक नए सफर का आगाज करें.
बहरहाल, हंसराज हंस ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सुरों का सितारा सियासत के फलक पर भी चमकता रहेगा. कलियुग भले ही आ गया हो पर मोती कौआ नहीं नहीं खाएगा. कभी किसी शायर ने कहा था कि-
‘मुमकिन है सफर हो आसां, अब साथ चलकर देखें,
कुछ तुम भी बदलकर देखो, कुछ हम भी बदलकर देखें.
हंस ने बदलाव के एक नए सफर का आगाज कर दिया है. अब जरूरत है कि हर देशवासी इस सफर का हमसफर बने. यही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी और गुमनाम शहीदों को भी पीढ़ियां युगों युगों तक याद रख पाएंगी.