दिल्ली

उम्मीदों के सफर पर कितने कदम चले हैं केजरीवाल

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली

लगभग 7 साल से पहले दिल्ली के रामलीला मैदान से उम्मीदों का जो सफर शुरू हुआ था उसने बदलाव का पहला पड़ाव पार कर लिया है| कहते हैं दुनिया बदलने का सफर लाखों मीलों का होता है, अगर हम चंद कदमों का फासला भी तय कर लें तो हजारों लोगों की तकदीर संवर सकती है| 7 साल पहले बदलाव के सफर पर निकला आम आदमी पार्टी का कारवां आज निश्चित तौर पर चंद मीलों का फासला तो तय कर ही चुका है| दिल्ली सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के 5 साल पूरे करने जा रही है| देश का दिल एक बार फिर विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ा है| क्या इस बार भी दिल्ली इतिहास दोहराएंगी? क्या इस बार भी दिल्ली बोल रही है दिल से केजरीवाल फिर से? क्या भाजपा और कांग्रेस को इस बार भी केजरीवाल से मुंह की खानी पड़ेगी? उम्मीदों के सफर पर कितने खरे उतरे हैं केजरीवाल? ऐसे कई सवाल हैं जो सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता के जेहन में रह-रहकर उठ रहे हैं| एक नजर डालते हैं आम आदमी पार्टी के सफर पर|

7 साल पहले अन्ना के आंदोलन से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ| अन्ना के आंदोलन पर बैठे कुछ लोगों के जेहन में यह बात घर कर गई थी कि बदलाव सिर्फ आंदोलन या धरना प्रदर्शन से नहीं आने वाला है बल्कि असल बदलाव तब आएगा जब राजनीति में कोई ईमानदार और समझदार व्यक्ति उतरेगा| ऐसे ही कुछ लोगों ने उम्मीदों का एक सफर शुरू किया था| इस सफर की बागडोर संभाली अरविंद केजरीवाल ने जो एक आईआरएस अफसर थे और अपने पद से इस्तीफा देकर सियासत में उतरे| केजरीवाल की राहें आसान नहीं थी| किरण बेदी, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे साथी एक-एक करके केजरीवाल का साथ छोड़ते गए| लेकिन केजरीवाल डटे रहे| उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने दम पर दिल्ली की सत्ता में आए| बदलाव के इस सफर में अरविंद केजरीवाल का साथ कुमार विश्वास भी छोड़ गए| अब केजरीवाल के साथ सिर्फ दो चेहरे थे एक मनीष सिसौदिया और दूसरे संजय सिंह| दोनों ही बेहद समझदार और सुलझे हुए राजनेता साबित हुए| मनीष सिसौदिया ने जहां दिल्ली के स्कूलों की कमान संभाली और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पटल पर एक पहचान दिलाई| तो वहीं संजय सिंह ने पार्टी को संभाला और सुलझे हुए राजनेता के तौर पर पार्टी को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई| लेकिन असली चुनौती थी जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की| वह भी ऐसे समय जब दिल्ली की जनता पूरी तरह से कांग्रेस और भाजपा से निराश हो चुकी थी| यही वजह थी कि 49 दिनों के शासन के बाद अरविंद केजरीवाल जब दोबारा चुनावी मैदान में उतरे तो जनता ने उन्हें न सिर्फ हाथों हाथ लिया बल्कि ऐतिहासिक जीत भी केजरीवाल की झोली में डाली| अब वक्त आ गया था कि की उम्मीदों को हकीकत का जामा पहनाया जाए| दिल्ली की जनता को ऐसा लाभ चाहिए था जो उसे तत्काल राहत पहुंचा सके| इसी के साथ केजरीवाल ने बदलाव के सफर को शुरू किया| सबसे पहले देश का भविष्य सुधारने की कवायद शुरू की और दिल्ली के सरकारी स्कूलों की सूरत बदली जाने लगी| अतिशी मरलेना और मनीष सिसौदिया के संयुक्त प्रयासों से दिल्ली के सरकारी स्कूल वाकई न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़े बल्कि उनका इंफ्रास्ट्रक्चर भी वर्ल्ड क्लास लेवल का नजर आने लगा| नतीजा यह हुआ कि जिस दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बच्चे बामुश्किल पास हुआ करते थे, आज उन्होंने बोर्ड परीक्षा के परिणामों में प्राइवेट स्कूलों के बच्चों को पीछे छोड़ दिया| लेकिन आम जनता के लिए सिर्फ इतना ही काफी नहीं था| मुद्दा था बेरोजगारी और गरीबी| सो केजरीवाल ने इस दिशा में भी काम करना शुरू किया| मंजिल तक पहुंचते पहुंचते देर जरूर लगी लेकिन केजरीवाल ने सपनों का सफर शुरू कर लिया था| सबसे पहले बिजली हाफ और पानी माफ की स्कीम चलाई गई| इस स्कीम के जरिए केजरीवाल सीधे मध्यमवर्गीय, निम्न मध्यमवर्गीय और गरीब परिवारों के दिलों में बसने लगे| 200 यूनिट बिजली और 20000 लीटर पानी लोगों को मुफ्त मिलने लगा| गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों की जेब का बोझ थोड़ा हल्का हुआ था लेकिन यह भी अपर्याप्त था| इसके बाद केजरीवाल ने डोर स्टेप डिलीवरी सिस्टम शुरू किया| पहले 70 सेवाएं घर बैठे लोगों को दी जाने लगीं और अब यह संख्या बढ़ाकर 100 कर दी गई| यानी अब आपको जरूरी सुविधाओं के लिए न तो सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने में अपना वक्त बर्बाद करना पड़ रहा है और न ही पैसे की बर्बादी हुई| साथ ही दलालों और भ्रष्टाचारियों से छुटकारा भी मिला| केजरीवाल जनता की नब्ज पकड़ चुके थे| उन्हें समझ आ गया था कि पब्लिक क्या चाहती है| यही वजह थी कि केजरीवाल अब जनता पर पड़ रहे आर्थिक बोझ को कम करने में जुट गए| दिल्ली में सबसे बड़ी परेशानी थी इलाज और परिवहन की| यह दोनों ऐसी चीजें थीं जिससे आम जनता की सारी जमा पूंजी खर्च होती जा रही थी| तो केजरीवाल ने दिल्ली में जगह-जगह मोहल्ला क्लीनिक खोल डाले और उनकी सुविधाएं सुधारने में जुट गए| इतना ही नहीं सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं में भी लापरवाही को दूर करने का सार्थक प्रयास केजरीवाल ने किया| इस दौरान कपिल मिश्रा जैसे कुछ और साथी केजरीवाल से अलग हो गए| लेकिन केजरीवाल का कारवां आगे बढ़ता ही गया|

केजरीवाल के विधायकों पर भ्रष्टाचार समेत कई तरह के आरोप लगे| विधायकों के साथ-साथ केजरीवाल के घर और दफ्तर पर भी ईडी इनकम टैक्स और सीबीआई के छापे डाले गए| लेकिन केजरीवाल और उनके विधायक सभी जातियों को खेलते हुए पाक साफ साबित हुए| इसके बाद केजरीवाल ने एक और स्कीम चलाई जो चुनाव के ठीक पहले मैदान में उतरी थी| यह स्कीम लाजवाब थी| जिस तरह नीतीश कुमार ने बिहार में बेटियों को साइकिल देकर और शराबबंदी करके वहां की महिलाओं का दिल जीत लिया था और दोबारा सत्ता पर काबिज हो गए थे| ठीक उसी तरह अरविंद केजरीवाल ने भी महिलाओं को अपना निशाना बनाया और दिल्ली की बसों में हर महिला की यात्रा को फ्री कर दिया| केजरीवाल के काम करने का अंदाज सबसे जुदा था| वे इस बात से भली-भांति परिचित थे कि सरकारें स्कीम तो बनाती है लेकिन उनका लाभ सीधे आम जनता तक नहीं पहुंच पाता| यही वजह थी कि केजरीवाल ने अपनी स्कीमें भी इस तरह से बनाईं कि उनका लाभ सीधे जनता तक पहुंचे| उनकी योजनाओं का लाभ सिर्फ सरकारी अधिकारी न उठाएं| यह पहला मौका था जब सरकार ऐसी योजनाएं बना रही थी जिनका लाभ सीधे जनता को मिल रहा था और अफसरशाही का उसमें भ्रष्टाचार करने का कोई जरिया बाकी नहीं था| दिल्ली की तस्वीर वाकई बदलने लगी है| हालांकि कुछ विभागों में भ्रष्टाचार अब भी हावी है| दिल्ली में जब पहली बार केजरीवाल की सरकार 49 दिनों के लिए बनी थी तो उस वक्त अरविंद केजरीवाल ने एक स्कीम चलाई थी जो इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में काफी कारगर साबित हो रही थी लेकिन उस योजना को केंद्र सरकार ने ग्रहण लगा दिया| अपने 49 दिन के कार्यकाल में अरविंद केजरीवाल ने यह स्कीम चलाई थी कि अगर कोई अफसर आपसे रिश्वत मांगता है तो आप उसका वीडियो बनाएं, रिकॉर्डिंग करें और हमें दें, हम उन अधिकारियों को सीधे सलाखों के पीछे भेजेंगे| उस समय एंटी करप्शन ब्रांच केजरीवाल के कहने पर काम कर रही थी और 49 दिन की सरकार में 32 सरकारी अधिकारियों पर केस भी दर्ज कराये गए| यह स्कीम वाकई कारगर साबित हो रही थी और केजरीवाल नायक फिल्म के हीरो के तौर पर स्थापित हो रहे थे लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर ग्रहण लगा दिया और एंटी करप्शन ब्रांच दिल्ली सरकार के हाथों से निकल गई|

इसके अलावा केजरीवाल ने दिल्ली को 24 घंटे बिजली देने का वादा किया था| हालांकि यह वादा पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हो पाया है लेकिन बिजली व्यवस्था में सुधार जरूर हुआ है| केजरीवाल ने पानी तो मुहैया करा दिया है लेकिन अभी भी दिल्ली के कई इलाके ऐसे हैं जहां साफ सुथरा पीने लायक पानी सप्लाई नहीं हो रहा है| हालांकि हालात पहले से बेहतर हुए हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता| चुनावी मौसम में दिल्ली सरकार की ओर से सड़कें भी बनाई जाने लगी हैं और सीवरेज का काम भी चल रहा है| हालांकि ये और बात है कि कई इलाकों में सड़कें तोड़ दी गई हैं लेकिन उन्हें अभी पूरा नहीं किया गया है लेकिन उम्मीद अभी बाकी है| दिल्ली सरकार की एक और स्कीम जिसका जिक्र किए बिना केजरीवाल की बात पूरी नहीं हो सकती वह है फरिश्ते स्कीम| केजरीवाल सरकार ने दुर्घटना के शिकार हुए लोगों के लिए फरिश्ते स्कीम चलाई| जिसके तहत घायलों के इलाज का पूरा खर्च दिल्ली सरकार ने उठाने का फैसला लिया| इसके तहत दर्जनों लोगों की जान बचाई जा चुकी है|

इतने सारे काम केजरीवाल सरकार ने अपने 5 साल के कार्यकाल में कर दिए हैं जो विपक्षी पार्टियों के लिए चिंता और मुसीबत का सबब बने हुए हैं| रही सही कसर सीएजी की रिपोर्ट ने पूरी कर दी है| सीएजी ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी कर कहा है कि देश भर में दिल्ली एक अकेला ऐसा राज्य है जो प्रॉफिट में रहा है| वाकई हैरान करने वाली बात है कि दिल्ली सरकार के ऊपर ₹1 का भी कर्ज नहीं है और इतनी सारी योजनाएं फ्री देने के बावजूद दिल्ली सरकार फायदे में है| जल्द ही दिल्ली सरकार पूरे दिल्ली में वाई फाई फ्री देने वाली है| दिल्ली के हालात निश्चित तौर पर सुधर रहे हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता| लेकिन केजरीवाल ने अभी पहला पड़ाव पार किया है| उम्मीदों का सफर बहुत लंबा है| दिल्ली की जनता निश्चित तौर पर केजरीवाल को पसंद करने लगी है लेकिन भाजपा और कांग्रेस का सियासी तिलिस्म तोड़ना उसके लिए इतना आसान नहीं होगा| बहरहाल आंकड़ों के इस खेल में जीत किसकी होती है यह तो विधानसभा चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे|

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