बोकारो थर्मल। रामचंद्र कुमार अंजाना
झारखंड राज्य अलग होने के बाद पहली बार बोकारो जिले के नावाडीह प्रखंड स्थित भूषण उवि में प्रथम मुख्यंमत्री बाबूलाल मरांडी, ऊर्जा मंत्री लालचंद महतो व डीजीपी आरआर प्रसाद के समक्ष 7 नवंबर 2002 को ऊपरघाट क्षेत्र के 14 हार्डकोर नक्सली सहित गिरिडीह जिले के निमियाघाट, डुमरी व बगोदर के कुल 37 नक्सली सामूहिक रूप से आत्म समर्पण करते हुए सरेंडर नीति के तहत समाज की मुख्य धारा से जुड़ने को लेकर सामने आए थे। इनमें अधिकांश नक्सलियों पर बोकारो, गिरिडीह व हजारीबाग जिले के थानों में भी कई मामले दर्ज थे।
बोकारो-गिरिडीह के इन नक्सलियों ने किया था सरेंडर: नावाडीह प्रखंड के ऊपरघाट क्षेत्र से सरेंडर करनेवाले 14 हार्डकोर नक्सलियों में एरिया कमांडर, प्लाटून कमांडर और दस्ता के सदस्य शामिल थे। बरई पंचायत के लरैया व महबिछुवा गांव के हीरामन गंझू , केवल गंझू, जामुन गंझू व हेमलाल गंझू, पोखरिया पंचायत के डेगागढ़ा गांव के जगरनाथ गंझू, अघनु उर्फ लंबू मांझी, बंधू मांझी, सीताराम मांझी, तालो मांझी, सोमर मांझी व मोचरो गांव के रामेश्वर गंझू, मुंगो-रंगामाटी पंचायत के गम्हरियाटांड़ गांव के कमल महतो, लालचंद उर्फ ठेंगा महतो व डालचंद महतो शामिल थे। इसके अलावा गिरिडीह जिले के निमियाघाट थाना क्षेत्र के मकान गांव के कार्तिक महतो, बगोदर थाना क्षेत्र के मडमो के कुंज बिहारी महतो व डुमरी थाना क्षेत्र के मगलूहारा गांव के चोलाराम महतो सहित 37 नक्सलियों ने सरेंडर किया था।
बाद में फिर एक महिला सहित तीन ने किया था सरेंडर: बोकारो जिले के ही गोमिया प्रखंड अंतर्गत महुआटांड़ थाना क्षेत्र के सिमराबेड़ा निवासी इनामी नक्सली वरुण उर्फ उत्तम मांझी शामिल ने भी 12 जुलाई 2010 को तत्कालीन एसपी साकेत सिंह के सामने वरुण ने सरेंडर किया था। इसके खिलाफ सरकार ने 2 लाख की इनाम राशि घोषित की हुई थी। सरेंडर करने के बाद इसे तमाम सुविधाएं मुहैया कराई जा चुकी है। इसके बाद तत्कालीन एसपी साकेत सिंह के सामने ही दूसरे सरेंडर करने वाले इनामी नक्सली का नाम रविन्द्र सिंह उर्फ पंकज जी है जिसने 23 अगस्त 2010 को सरेंडर किया, जो मूल रूप से बिहार के कैमूर जिले का रहने वाला है। इसके पूर्व गोमिया प्रखंड के ही पूजा हेम्ब्रम ने भी आईईएल थाना में सरेंडर किया था। उसे नौकरी भी मिली, लेकिन बाद में नक्सलियों उसकी हत्या कर दी।
इतनी बड़ी संख्या में सरेंडर से संगठन पूरा हिल गया था: इतनी बड़ी संख्या में नक्सलियों के सरेंडर करने से इनका संगठन भी ऊपर से नीचे हिल गया था। इसके बाद नक्सलियों ने एक अभियान चलाकर सरेंडर करने नक्सलियों के खिलाफ जन-अदालत लगाकर कार्रवाई शुरू की। इस कार्रवाई से कई नक्सली अपने पूरे परिवार के साथ गांव-घर छोड़कर अन्य प्रदेश पलायन कर गए। तो शेष नक्सलियों ने जन-अदालत में शरीक होकर संगठन से माफी मांग ली। और सरेंडर कराने में मुख्य भूमिका निभाने वाले नक्सली कमल महतो को जेल से निकलने के मात्र आठ दिन बाद नक्सलियों ने हत्या कर दी। 11 जून 2003 को उसका शव कंजकिरो मोड़ में फेंक दिया गया था।
सरेंडर के बाद नहीं मिली किसी तरह सरकारी सुविधा: बातचीत में सरेंडर करने वाले हीरामन गंझू व केवल गंझू ने बताया कि आज तक सरेंडर नीति का लाभ नहीं मिला है। उस समय सरकार की घोषणा थी कि सरेंडर करने वाले नक्सली को एक एकड़ जमीन, एक इंदिरा आवास और 10 हजार रुपए मिलेगा। लेकिन सरेंडर करने के बाद हम सभी तेनुघाट जेल चले गए। जेल से निकलने के बाद कई बार विभागीय अधिकारियों को पत्र भी लिखा, लेकिन 18 साल गुजर जाने के बाद हमें कुछ नहीं मिला। इसके विपरीत सरेंडर करने के बाद दो बार पुलिस ने झूठे केस में जेल भेज दिया गया। हर दरवाजा खटखटाया, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। थक-हारकर हीरामन गंझू रांची में मजदूरी कर रहा है और केवल गंझू गोला में मजदूरी कर अपने और परिवार का भरण पोषण कर रहा था। हीरामन गंझू के परिवार में पत्नी पुरनी देवी, दो पुत्री किरण देवी, मीना देवी और एक पुत्र नीलकंठ जो कि हैदराबाद में काम कर रहा है। वहीं 75 वर्षीय मां छबिया देवी है जिसे वृद्धा पेंशन भी नहीं मिलता है। जबकि केवल गंझू के परिवार में पत्नी करमी देवी, चार पुत्र नीलकंठ, कुलदीप, राजू व मुकेश और दो पुत्री असरिया देवी व सुनीता देवी एवं पुत्रवधू सुकरमनी देवी है। रामेश्वर गंझू के परिवार में पत्नी बिगनी देवी, पुत्र मनोज गंझू व पुत्रवधू बसंती देवी के अलावा 6 पुत्री भोली देवी, झोली देवी, सरिता देवी, कविता देवी, रिंकी कुमारी व नगीना कुमारी शामिल हैं। पुत्र मनोज कर्नाटक में मजदूरी कर रहा है। रामेश्वर गंझू की मौत 6 माह पहले इलाज के अभाव में हो गयी। कई दिनों तक पैसे के अभाव में बीमार होकर घर पर ही था व अंत में मौत हो गयी। वर्ष 2007 में सीसीएल खासमहल परियोजना में पुलिस मुठभेड़ में रामेश्वर गंझू का बेटा पुनीत भी मारा गया था।
कमल महतो के परिजन दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर: 37 नक्सलियों को सरेंडर कराने में मूख्य भुमिका निभाने नक्सली कमल महतो के परिजन सरकार के रवैये के कारण दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं। नक्सलियों द्वारा 11 जून 2003 को कमल महतो की हत्या के बाद पत्नी जमनी देवी, पुत्री सुनीता, रूबी व मुन्नी और एक पुत्र विमल कुमार महतो मानो एकदम असहाय हो गए। वह तो रिश्तेदारों के सहयोग से तीनों पुत्रियों का किसी तरह हाथ पीला हो पाया। पत्नी जमनी देवी और पुत्र विमल कुमार महतो ने बताया कि सरकारी मुआवजा को लेकर सरकार को कई बार पत्राचार किया व तीन माह पूर्व भी पत्राचार किया है। जमनी देवी ने कहा कि दिहाड़ी मजदूरी कर घर चला रही हूं। छोटा से खेत में सब्जी लगायी हूं, उससे भी कुछ दो-चार पैसा हो जाता है। जिससे नमक-रोटी की व्यवस्था हो जाती है। पति के सरेंडर करने का कोई फायदा आज तक नहीं मिला। इसके विपरीत सुहाग को खोना पड़ा। आज भी सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं।