मुकेश मेहरोत्रा बरेली की सियासत का जाना पहचाना चेहरा हैं. सियासत उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली थी. मुस्लिम बाहुल्य बिहारीपुर वार्ड में लगभग 15 साल के वनवास के बाद भगवा फहराने वाले मुकेश इकलौते पार्षद हैं. हाल ही में वह नगर निगम की कार्यकारिणी में निर्वाचित हुए हैं. वह भाजपा से उपसभापति पद के प्रबल दावेदारों में शामिल हैं. कैसा रहा मुकेश का सियासी सफर? एक दौर था जब मुकेश ने भुखमरी को बेहद करीब से देखा था, ऐसा क्यों हुआ? मुकेश के पिता को सात महीने जेल में रहना पड़ा था, इसकी क्या वजह रही? उपसभापति बनने पर मुकेश की प्राथमिकताएं क्या होंगी? शहर की सबसे बड़ी समस्या वह किसे मानते हैं? शहर के विकास के लिए उनका क्या विजन है? सियासत के सफर और निजी जिंदगी को लेकर मुकेश मेहरोत्रा ने नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आपका बचपन कहां बीता, पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : मैं बरेली शहर के बिहारीपुर खत्रियान में जन्मा और वहीं पला बढ़ा.मेरे पिता स्व. राधे कृष्ण मेहरोत्रा 12 साल की उम्र से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिस्सा बन गए थे. वर्ष 1949 में मेरे पिता ने ग्रेजुएशन कंप्लीट कर ली थी. उनकी नायब तहसीलदार की नौकरी लग गई थी लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं की. मेरे दादा जी तब आलमगिरि गंज में जूते की दुकान चलाते थे. मेरे नाना बैंक मैनेजर थे तो उन्होंने पिता जी की नौकरी बैंक में लगवा दी लेकिन 95 रुपये की नौकरी करने घर से दूर जाना था इसलिए पिता जी वो नौकरी भी नहीं कर सके. बाद में दादा जी ने अपनी जूतों की दुकान पिता जी को दे दी. जिस जगह पर आज प्रकाश स्वीट्स है वहां कभी हमारी जूतों की दुकान हुआ करती थी. कारोबार के साथ ही पिता संघ के कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे.
सवाल : आपके पिता को जेल भी जाना पड़ा था?
जवाब : जी हां. वो इमरजेंसी का दौर था और स्वयंसेवक होने के नाते मेरे पिता भी तत्कालीन आंदोलन का हिस्सा बने थे. इसी के चलते लोगों को जेल में डाला गया था. मेरे पिता को भी जेल में बंद कर दिया गया. उन्हें सात माह तक जेल में रहना पड़ा था. अटल जी के साथ भी तिहाड़ में रहे. कई आंदोलनों में जेल गए थे. मैं उस वक्त दसवीं में पढ़ता था. इमरजेंसी के दौरान मेरे पिता के नाम कपड़े के कंट्रोल की एक दुकान थी. उस वक्त मेरी उम्र तकरीबन 15 साल की रही होगी. हम पांच भाई-बहन हैं. हमारी दुकान का लाइसेंस रद कर दिया गया. घर में भुखमरी जैसे हालात पैदा हो गए थे. फिर इमरजेंसी हटी और पिता जेल से बाहर आए.जेल से लौटने के बाद उन्होंने एलआईसी की एजेंसी ली और तब से लेकर आज तक एलआईसी ही मुकेश मेहरोत्रा और उनके परिवार की आजीविका का साधन बनी हुई है. फिर जनता पार्टी की सरकार बनी और हमारे पिता के मित्र स्व. सत्यप्रकाश अग्रवाल जी मंत्री बने. पिता जी उनका पूूूरा साथ देते रहे.
सवाल : सक्रिय राजनीति में कब और कैसे आना हुआ?
जवाब : पिता जी संघ से जुड़े थे और राजनीति में सक्रिय भी थे इसलिए जुड़ाव तो बचपन से ही हो गया था. पोलिंग एजेंट बनता रहता था. जब मैं 18 साल का था तो वर्ष 1978 में विद्यार्थी परिषद का अधिवेशन हुआ था जिसमें मैं नेतृत्व कर्ताओं में शामिल था. इसे मेरे सक्रिय राजनीतिक सफर की शुरुआत कहा जा सकता है. 1978 से अब तक एक ही पार्टी का हिस्सा हूं और आखिरी सांस तक रहूंगा.
सवाल : आपके पिता ताउम्र भाजपा का हिस्सा रहे. आपने अपनी जिंदगी के 42 कीमती साल पार्टी की सेवा में समर्पित कर दिए. चुनाव लड़ने का विचार कब आया?
जवाब : पार्टी से मैं किसी पदलाभ या अन्य किसी लालसा के लिए नहीं जुड़ा था. मेरे पिता ने भी अपने पद का कभी व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाया. वर्ष 1998 में मेरे पिता को पार्षद नॉमिनेट किया गया. दस साल पहले मैं पहली बार बिहारीपुर वार्ड से चुनाव लड़ा जो उस वक्त 39 नंबर वार्ड था और आज 41 नंबर वार्ड है. मैं खत्री समाज से जुड़ा हुआ हूं और हमारे समाज के तत्कालीन अध्यक्ष रविशंकर मेहरोत्रा मेरे खिलाफ खड़े हो जिस वजह से हमारे समाज के वोटों का बंटवारा हो गया और मैं लगभग सौ वोटों से पराजित हो गया. मुस्लिम बाहुल्य इस वार्ड में करीब साठ फीसद वोटर मुस्लिम हैं. यहां से लगातार मुस्लिम प्रत्याशी ही जीतता आ रहा था. वर्ष 2017 में मैं दोबारा चुनाव लड़ा और मुस्लिम प्रत्याशी को कड़ी टक्कर देते हुए 72 वोटों से चुनाव जीत गया.
सवाल : हाल ही में आपको नगर निगम की कार्यकारिणी में चुना गया है. अब उपसभापति के भाजपा के चार दावेदारों में आपका नाम भी सामने आ रहा है. इस बारे में क्या कहेंगे?
जवाब : देखिये टिकट मांगना हर कार्यकर्ता का अधिकार है और किसे टिकट देना है, इसका अधिकार सिर्फ पार्टी को है. पार्टी हमें टिकट देगी तो हम लड़ेंगे. किसी और को देगी तो उसे लड़वाएंगे लेकिन उपसभापति भाजपा का ही होगा.
सवाल : शहर की सबसे बड़ी समस्या आप किसे मानते हैं? अगर आप उपसभापति बनेंगे तो आपकी विकास की प्राथमिकताएं क्या होंगी?
जवाब : मेरे हिसाब से शहर की सबसे बड़ी समस्या इनफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपोर्ट की है. इस दिशा में हमारे मेयर साहब डा. उमेश गौतम तेजी से काम करवा रहे हैं. अगर मुझे उपसभापति बनने का मौका मिलता है तो मैं माननीय उमेश गौतम जी के विकास कार्यों को उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ाने का प्रयास करूंगा. किसी भी शहर का विकास उसके इनफ्रास्ट्रक्चर और परिवहन पर निर्भर करता है. अगर इनफ्रास्ट्रक्चर नहीं होगा तो परिवहन व्यवस्था नहीं सुधर सकती. इनफ्रास्ट्रक्चर के बिना यहां उद्योग नहीं आएंगे और उद्योग नहीं आएंगे तो विकास कैसे होगा.
सवाल : परिवहन व्यवस्था में सुधार के लिए क्या सोचा है?
जवाब : देखिये वक्त के साथ ही शहर की आबादी में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. आबादी बढ़ने के साथ ही मकानों की जरूरत भी बढ़ी और मकानों की जरूरत ने शहर का दायरा भी बढ़ा दिया है. आज शहर को मेट्रो जैसे संसाधन की जरूरत है लेकिन हम मेट्रो नहीं ला सकते तो कम से कम सिटी ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था तो कर ही सकते हैं. मुझे आज भी याद है कि जब हम छोटे थे तो कुतुबखाना से जंक्शन के लिए लाल रंग की सिटी बस चला करती थी. हम 25 पैसे का टिकट लेकर जंक्शन जाते थे लेकिन बाद में उसे बंद कर दिया गया. हम दोबारा सिटी बस चलवाने के समर्थक हैं. इससे जहां लोगों को सस्ता सफर उपलब्ध होगा वहीं, नगर निगम की आय भी बढ़ेगी.
सवाल : नगर निगम की आमदनी बढ़ाने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
जवाब : निगम की आय बढ़ाने के लिए हमारी वेंडिंग कमेटी बनी हुई है जिसमें मैं माननीय छंगामल मौर्य और सपा पार्षद भी शामिल हैं. जब निगम ने फड़ लगाने के लिए दी तो लोगों ने वहां बिल्डिंगें बना लीं. कई जगह ऐसी हैं जो हमे साल का सौ-दो सौ रुपये दे रही हैं, वे हजारों रुपए भी दे सकती हैं. हमने खोखे लगाने के लिए जगह दी लोगों ने वहां भी मकान बना डाले. ऐसी अरबों रुपए की संपत्ति है नगर निगम की जो लोगों के कब्जे में है. हम उस पर काम कर रहे हैं. हमने अभी जो दुकान सील की है उसे नीलाम करें तो आज उसकी कीमत 30 से 40 लाख रुपये मिलेगी. इसी तरह पैसा आएगा.
इसके अलावा भाजपा के नगर निगम की सत्ता में आने से पहले 75 से 80 हजार संपत्तियों पर प्रॉपर्टी टैक्स लग रहा था. अब हमने सर्वे के लिए टीम बनाई. तीन साल के अंदर एक लाख से भी अधिक प्रॉपर्टीज हो गई जिनसे हमें टैक्स मिल रहा है. अगले दो साल में यह आंकड़ा डेढ़ लाख से भी ऊपर पहुंच जाएगा. उससे जो टैक्स आएगा उसी से निगम की आमदनी बढ़ेगी. निगम की लगभग 260 संपत्तियां ऐसी थीं जिनका कोई पता ही नहीं था. वहां से हमें टैक्स भी नहीं आ रहा है. अब हमने उनकी तलाश शुरू की है. उन संपत्तियों को वापस लिया जाएगा और उससे निगम की आय बढ़ाई जाएगी. जब निगम की आय बढ़ेगी तो विकास भी होगा.