विचार

प्रमोद पारवाला की कविताएं- ‘अनुभूति’

कब दिन निकला कब रात हुई, हम समझ भी नहीं पाते हैं। बच्चों का कलरव सुनने को, यह कान तरस से जाते हैं। हर ओर कराहट जीवन की, एक स्वर हमारा शामिल है। मृत्यु से जंग भी जारी है, फिर भी न हमें कुछ हासिल है। कोरोना तू तो अकेला है पर उनके तो घरवाले […]

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9 मई मदर्स डे पर विशेष “मां”

मां के आंचल की छाया में, चैन की नींद सो जाते थे। मां कब जागी मां कब सोई, हम यह भी जान न पाते थे। दूध लिये बस आगे पीछे, सौ नखरे भी उठाती थी। “चूहा खाना खा जायेगा,’ यह कहकर रोज खिलाती थी। किसी बात से डर लगता था, झट माँ की गोद में […]

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प्रेम रंग खेलो रेे…

मन की गंगा में प्रेम रंग घोलो रे। गलबहियां डाल के मीत संग खेलो रे। धूल ब्रजभूमि की अब मलो भाल पर, अवध-अबीर मे अँग-अँग मेलो रै।। गलबहियां…. जीवन के रंग मे नया रंग घोलो रे। उदासी भूलकर बजा चंग ख़ेलो रे।। गलबहियां… मन पर जो रंग हो तन पर वही मलो। एकता और प्रेम […]