विचार

प्रेम रंग खेलो रेे…

Share now

मन की गंगा में प्रेम रंग घोलो रे।
गलबहियां डाल के मीत संग खेलो रे।
धूल ब्रजभूमि की अब मलो भाल पर,
अवध-अबीर मे अँग-अँग मेलो रै।। गलबहियां….
जीवन के रंग मे नया रंग घोलो रे।
उदासी भूलकर बजा चंग ख़ेलो रे।।
गलबहियां…
मन पर जो रंग हो तन पर वही मलो।
एकता और प्रेम से आज संग खेलो रे।।
गलबहियाँ…
सबसै गले मिलो त्याग कर बैर को।
दुश्मनी दहन कर आज रंग खेलो रै।।
मन की गंगा मे प्रेम रंग घोलो रे
गलबहियाँ डालकर आज रंग खेलों रे।।
कवयित्री -प्रमोद पारवाला बरेली (उत्तर प्रदेश)

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *