माल भेजा गया था किसी के लिए, हाय कुछ लोग मिल बाँट कर खा गए पात्रता को न कोई यहाँ पूछता, तिकड़मों से वही आज फिर छा गए। योजनाएँ बहुत भ्रष्ट होती रहीं, और जल की तरह खूब पैसा बहा निर्बलों का न इससे भला कुछ हुआ, जानकर भी किसी ने नहीं कुछ कहा दिख […]
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प्यार के दीप जलकर भला क्या करें…
कब कहाँ कौन है अब सुरक्षित यहाँ, लोग घर से निकलते हुए भी डरें हाय नफरत उगलती रही आग जब, प्यार के दीप जलकर भला क्या करें। बढ़ गयी है बहुत लालसा की तपन, और इंसानियत हो गयी अब दफन कूटनीतिक व्यवस्था हुई बेरहम, जो मरा आज उसका चुरा है कफन लोग संवेदना बेचकर खा […]
कितनी पीड़ा अब देखो, तीमारदार सहते हैं…
कितनी पीड़ा अब देखो, तीमारदार सहते हैं दुत्कारा जाता जिनको, आँसू पीकर रहते हैं । बेबस मरीज की आहें, बेरहम नहीं हैं सुनते दौलत का खेल चल रहा, ताने-बाने वे बुनते बीमार भले मर जाए, वे अपना मतलब चुनते उनके कारण कितने ही, देखे अपना सिर धुनते घर में मर जाना अच्छा, कुछ लोग यही […]
साहित्य की बात : राजस्थान तक के स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं बरेली के इस साहित्यकार की रचनाएं, आर्थिक संकट के चलते प्रकाशित नहीं हो सका कहानी संग्रह
बहुआयामी प्रतिभा के धनी ‘कुमुद’ जी हिंदी साहित्य के सच्चे साधक थे जिन्होंने हिंदी जगत को पद्य एवं गद्य के क्षेत्र में अनुपम सौगात दी। किसी साहित्यकार का व्यक्तित्व उसकी साहित्यिक रचनाओं में ही विद्यमान रहता है। ‘कुमुद’ जी ने भारतीय जीवन के विविध पक्षों को लेकर साहित्य रचना की है। वह अपनी रचनाओं के […]