लखनऊ/गोरखपुर
शिक्षा माफियाओं और निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सख्ती असर दिखाने लगी है। सरकार पर दबाव बनाने के लिए अब यह शिक्षा माफिया तरह-तरह के हथकंडे अपनाने लगे हैं। इसका ताजा उदाहरण सरमाउंट इंटरनेशनल स्कूल गोरखपुर के रूप में देखा जा सकता है।
सर माउंट इंटरनेशनल स्कूल के प्रिंसिपल की ओर से अभिभावकों को एक मैसेज भेजा गया है। इसमें 7 अप्रैल को प्ले ग्रुप से लेकर 12वीं तक की कक्षाएं नहीं चलाने की बात कही गई है। दिलचस्प बात यह है कि स्कूल बंद क्यों किया जा रहा है इसका कोई कारण इस मैसेज में नहीं बताया गया है।
बता दें कि सर माउंट इंटरनेशनल स्कूल भी उन निजी स्कूलों में से एक है जो हर साल मनमानी फीस वृद्धि कर अभिभावकों की जेबें काटता है। प्रदेश भर में ऐसे हजारों स्कूल चल रहे हैं जो हर साल मनमानी फीस वृद्धि कर अभिभावकों को लूट रहे हैं।
हाल ही में हुई कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसे ही स्कूलों पर लगाम लगाने के लिए स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय(शुल्क निर्धारण) अध्यादेश 2018 के प्रारूप को मंजूरी दी थी. साथ ही इस अध्यादेश को चालू सत्र से ही लागू करने के निर्देश भी दिए हैं।
बता दें कि उत्तर प्रदेश के हजारों स्कूलों में हर साल मनमानी फीस वृद्धि की जाती है। इसके अलावा स्कूल ड्रेस में भी करोड़ों रुपए का खेल यह स्कूल करते हैं। कुछ स्कूल तो ऐसे हैं जो हर साल स्कूल ड्रेस बदलते हैं और अभिभावकों को यह स्कूल ड्रेसेस भी उसी स्कूल से खरीदनी पड़ती है। स्कूल ड्रेस तैयार करने से लेकर कॉपी पेंसिल बेचने तक का सारा गोरखधंधा स्कूल प्रबंधन के सानिध्य में चलता है। कुछ स्कूल तो ऐसे हैं चिंकी खुद कपड़ों की फैक्ट्रियां या दुकानें हैं और वही स्कूल ड्रेस तैयार की जाती है। दो-चार सौ रुपये की स्कूल ड्रेस के लिए हजारों रुपए वसूले जाते हैं। हर साल स्कूल ड्रेस इसीलिए बदली जाती है ताकि नई ड्रेस और महंगे दामों में बेची जा सके।
अगला खेल कॉपी किताबों की बिक्री को लेकर होता है। जो किताबें चंद रुपयों में बाजार में आसानी से उपलब्ध हो सकती हैं उन किताबों की जगह ऐसी किताबें स्कूल प्रबंधन की ओर से बेची जाती हैं जिनसे प्रबंधन को लाखों रुपए की आमदनी हो। बात सिर्फ किताबों की ही नहीं है अब तो कॉपियां भी स्कूल प्रबंधन की ओर से ही बेची जा रही है और उन्हीं कॉपियों को इस्तेमाल करना अनिवार्य भी बनाया गया है।
अगला खेल स्कूलों में समय-समय पर होने वाले इवेंट्स के नाम पर किया जाता है। कभी प्रोजेक्ट के नाम पर तो कभी फंक्शन के नाम पर बच्चों से मोटा शुल्क वसूला जाता है। इस तरह एक प्रतिष्ठित स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए एक मां-बाप को कम से कम सालाना एक लाख रुपये से भी अधिक की कीमत चुकानी पड़ती है। कुछ स्कूल तो ऐसे हैं जहां डोनेशन ही लाखों रुपए में देनी पड़ती है।
शिक्षा माफिया के इस मकड़जाल से अभिभावक वर्षों से परेशान चले आ रहे हैं। अभिभावकों की इसी परेशानी को भागते हुए अब योगी आदित्यनाथ सरकार ने फीस वृद्धि का फार्मूला तय कर दिया। इस पर शिक्षा माफियाओं में हड़कंप मच गया। नए फार्मूले के मुताबिक कोई भी स्कूल 5% से अधिक फीस नहीं बढ़ा सकता। 5 साल से पहले कोई भी स्कूल अपनी यूनिफार्म नहीं बदल सकता। एडमिशन शुल्क सिर्फ एक बार स्कूल में प्रवेश के दौरान ही लिया जा सकता है हर साल एडमिशन फीस के नाम पर फीस नहीं वसूली जा सकती। साथ ही एडमिशन फीस स्कूल की निर्धारित कुल फीस के 50 फ़ीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। स्कूलों को 7 दिन पहले ही प्रस्तावित इस वेबसाइट या नोटिस बोर्ड पर तो डालनी ही होगी साथ ही प्रवेश फार्म में भी कक्षा एक से कक्षा 12 तक फीस का विवरण देना अनिवार्य होगा। जो स्कूल ऐसा नहीं करेंगे उन पर पहली बार एक लाख रूपये, दूसरी बार पांच लाख रुपये जुर्माना किया जाएगा। इसके बावजूद स्कूल नहीं मानते तो तीसरी बार स्कूल की मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
राहत देने वाली बात यह है कि यह फार्मूला अल्पसंख्यक स्कूलों पर भी लागू होगा। बता दें कि अल्पसंख्यक स्कूल हमेशा विशेष दर्जे के चलते अपनी मनमानी करते रहते थे और उन पर सरकारी नियम इस तरह से लागू नहीं हुआ करते थे।
योगी सरकार के इस कदम की अभिभावकों ने सराहना की है। उन्होंने सरकार से किसी भी दबाव में ना आने की अपील करते हुए पूरा सहयोग देने का ऐलान भी किया है। अब देखना यह है कि शिक्षा माफियाओं का यह गठजोड़ क्या सरकार को झुका पाता है या फिर योगी सरकार की सख्ती सेे शिक्षा माफियाओं का राज खत्म होता है।
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