नीरज सिसौदिया, जालंधर
मौत के कुएं में खामोश हुई राहुल की जिंदगी चीख-चीखकर अपनी हत्या की दास्तां बयां कर रही थी। नगर निगम ने लापरवाही की सारी हदें पार कर दी हैं। 20 साल से इस मौत के कुंए को ढंकने की मांग को दरकिनार किया जा रहा है। पुलिस दो एंगल पर जांच कर रही है कि राहुल की हत्या कर उसके शव को कुएं में फेंका किया है या फिर वह गलती से कुंए में जा गिरा। राहुल खुद कुएं में जा गिरा हो या फिर उसे किसी ने मारने के बाद कुएं में फेंका हो, दोनों ही सूरत में राहुल की मौत को हादसा नहीं कहा जा सकता। राहुल की मौत के लिए नगर निगम भी जिम्मेदार है। सरकार से प्रतिमाह हजारों रुपए वेतन लेने वाले नगर निगम के अधिकारियों ने आखिर क्यों मौत के कुएं को ढंकना मुनासिब नहीं समझा? एक साल बाद भी विधायक बाबा हेनरी को इसकी सुध क्यों नहीं आई? 10 साल विधायक और संसदीय सचिव रहने के बावजूद केडी भंडारी ने इस मौत के कुएं को ढंकने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया? 5 साल क्या करते रहे मेयर सुनील ज्योति और मेयर बनने के बाद आखिर जगदीश राज राजा इतने हम मसले पर कोई कदम क्यों नहीं उठाया?
जब शहर के 2 दर्जन से भी अधिक डिस्पोजल खुले हुए हैं तो फिर नगर निगम कमिश्नर बसंत गर्ग ने अब तक इस दिशा में पहल क्यों नहीं की? निश्चित तौर पर इनमें से किसी की भी मंशा मासूम को मौत के घाट उतारने की नहीं रही है लेकिन जाने अनजाने राहुल की मौत के जिम्मेदार ये लोग भी हैं?
यह कैसे जनप्रतिनिधि हैं जो 20 साल में भी जनता की एक छोटी सी मांग पूरी नहीं कर सके। अब जबकि एक मासूम अपनी जिंदगी गंवा चुका है तो एक अदना से कर्मचारी पर सारा दोष मढ़कर यह लोग अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने में लगे हुए हैं। ओएंडएम विभाग के एक्सईएन सतिंदर सिंह का यह बयान कि डिस्पोजल का मुंह इसलिए बंद नहीं किया गया कि हमें गादनिकालनी होती है, बेहद हास्यास्पद है। क्या ढक्कन लगाकर डिस्पोजल का मुंह बंद नहीं किया जा सकता था? क्या गाद निकालने के वक्त उस ढक्कन को नहीं खोला जा सकता था?
दरअसल, दोष नगर निगम की व्यवस्था का है। विपक्ष में रहकर जो लोग जनहित की बात करते रहते हैं, सत्ता में आते ही वह लोग स्वहित में जुट जाते हैं। मेयर जगदीश राज राजा के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। विपक्ष में रहते हुए सत्ता में आने पर 2 दिन में नगर निगम की व्यवस्था सुधारने का दावा करने वाले राजा मेयर बनते ही सत्ता के नशे में चूर हो गए हैं। आम जनता तो दूर राजा अब अपने पुराने साथियों की भी नहीं सुनते। उपलब्धियों के नाम पर राजा का खाता फिलहाल खाली है। बात अगर विधायक बाबा हेनरी की करें तो पुरानी सड़कों के दोबारा शिलान्यास को छोड़कर बाबा हेनरी भी अपने खाते में कोई उपलब्धि दर्ज नहीं करा सके। हालांकि, नगर निगम के कमिश्नर के साथ बैठक करने में बाबा हेनरी अव्वल रहे हैं लेकिन उनकी ये बैठकें जनता के किसी काम ना आ सकीं। सूत्रों की माने तो नगर निगम कमिश्नर पर सियासी दबाव इस कदर हावी है कि वह शहर के भले की बात सोच तक नहीं पाते। उनका पूरा दिन कांग्रेस किस सियासतदानों की संतुष्टि में भी ही बीत जाता है। ऐसे में निश्चित तौर पर राहुल की मौत के लिए जिम्मेदार नगर निगम कमिश्नर बसंत गर्ग, मेयर जगदीश राज राजा और विधायक बाबा हेनरी भी हैं। भगत सिंह कॉलोनी अक्सर सियासतदानों की उपेक्षा का शिकार रही है और सत्ता बदलने के बाद भी उपेक्षा का दंश झेल रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि राहुल की मौत के लिए विधायक, मेयर और कमिश्नर को सजा नहीं मिलनी चाहिए? हत्या ना सही गैर इरादतन हत्या के लिए तो निश्चित तौर पर यह तीनों शख्सियत ही जिम्मेदार हैं।