कुरुक्षेत्र, ओहरी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत पालि प्राकृत विभाग एवं संस्कृत प्राच्य विद्या संस्थान द्वारा हरियाणा संस्कृत अकादमी एवं हरियाणा ग्रंथ अकादमी के सहयोग से दो दिवसीय संगोष्ठी एवं भट्टाचार्य स्मृति व्याख्यान माला का आयोजन किया गया जिसका उद्घाटन सत्र मंगलवार को सम्पन्न हुआ। संगोष्ठी का विषय श्री अरविन्द तस्य सावित्री च:पाठ प्रसंगश्च पृथिव्यां जीवनस्य दिव्यस्य अभीप्सा। वट सावित्री अमावस्या के दिन इस कार्यक्रम में महर्षि अरविन्द द्वारा रचित सावित्री के विषय में व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रो. सुधीर कुमार ने इसे मांत्रिक काव्य बताते हुए जीव का सच्चिदानन्द परमतत्व से एक्य एवं पूर्ण योग का वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि भारतीय विद्या एवं ज्ञान में भी आज समन्वय दृष्टि की आवश्यकता है। समता, शान्ति एवं सुख क्रमश: प्राप्त किए जाते हैं और समत्व के लिए श्रद्धा एवं शक्ति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक बुद्धि एवं योगियों की मेधा को पृथक मानना अनुचित है। परा और अपरा विद्या दोनों परम प्रज्ञा के ही अंग हैं। ज्ञान, कर्म व भक्ति तीनों मार्ग परस्पर संयुक्त हैं जिनसे परमातमा को प्राप्त किया जा सकता है। चैतन्य अथवा आत्मा का कोई लिंग नहीं होता। महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, स्वामी विवेकानन्द, वीर सावरकर एवं अरविन्द के दर्शन आज बहुत प्रासंगिक हैं। इस अवसर पर मुख्यातिथि डॉ. कृष्ण कुमार शर्मा, विशिष्ट अतिथि लाडवा के विधायक डॉ. पवन सैनी, डॉ. हिम्मत सिंह सिन्हा, डॉ. राजेन्द्रा, डॉ. सोमेश्वर दत्त, प्रो. आरपी मिश्र, डॉ. विभा अग्रवाल एवं अध्यक्ष के रूप में पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ संस्कृत विभाग के पूर्वाचार्य डॉ. रमाकान्त आंगिरस उपस्थित थे।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने सभी अभ्यागर्तो का परिचय कराया। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र सिंह राणा, डॉ. सीडीएस कौशल, डॉ. रामचन्द्र, डॉ. विनय, प्रो. डी मुखर्जी, प्रो. आईसी मित्तल, डॉ. शशी मित्तल, प्रो. एलके गौड, डॉ. विशम्भर, डॉ. तेलूराम, डॉ. शिवानी, रविदत्त शर्मा, मुकेश कौशिक, डॉ. संतोष, अंग्रेज शास्त्री, मुकेश कौशिकाचार्य, रोहित कौशिक, रामफल, शरण, मीना, दीपक, डॉ. राकेश, मीरा, स्वर्णप्रभा तथा अनेक शोध छात्र उपस्थित थे।