बिहार

नन्हें तस्करों की फौज तैयार कर रही बिहार की शराबबंदी

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नीरज सिसौदिया
बिहार में शराबबंदी का वादा कर सत्ता में आई नीतीश कुमार सरकार अपनी कुर्सी संभालते ही अपने वादे पर अमल कर दिया था| राजस्व के घाटे की चिंता ना करते हुए नीतीश कुमार ने सख्ती से शराब की बिक्री पर रोक लगाने की पहल की थी| उस वक्त बिहार की शराबबंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सुर्खियां मिली थीं| शुरुआत में सब कुछ ठीक-ठाक रहा लेकिन वक्त के साथ शराबबंदी ने शराब तस्करी का दायरा बढ़ा दिया| कुछ घर तो बचे लेकिन कुछ घरों में तस्कर पैदा होने लगे| बचपन की ख्वाहिशों को तस्करों ने अपना हथियार बनाया और मासूम बच्चे स्कूल बैग में किताबों की जगह शराब की बोतलें भरकर लाने ले जाने लगे|
सीमावर्ती इलाकों से शराब की बोतलें बिहार में आ रही हैं| नेपाल से मोतिहारी के रास्ते पश्चिम बंगाल से कटिहार के रास्ते यूपी से गोपालगंज के रास्ते और झारखंड से गया के रास्ते शराब की तस्करी की जा रही है| इस तस्करी को रोकना पुलिस के लिए आसान नहीं है| कारण कि शराब माफिया बहुत ही सोच समझकर तस्करों को चुन रहा है| शराब माफिया के निशाने पर मासूम बच्चे और गरीबी झेल रहे बुजुर्ग हैं| सबसे अधिक इस्तेमाल शराब माफिया उन किशोरों का कर रहा है जो दिलों में सपनों का समंदर लिए और आंखों में ख्वाहिशों का अंबार लिए घर से निकलते तो है लेकिन उनकी जेब में इन सपनों को पूरा करने के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं होती| हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में एक एक्साइज के अफसर ने बताया था कि सीमावर्ती इलाकों से स्कूल के बैग में बोतल भर कर लाने वाले जो किशोर पकड़े गए थे वह शराब की तस्करी सिर्फ इसलिए करते थे ताकि एक स्मार्टफोन खरीद सकें| परिवार की गरीबी के चलते उनकी जो ख्वाहिशें अधूरी रह जाती हैं उन्हें शराब माफिया पूरी करते हैं| इस संबंध में मोतिहारी के एक पुलिस अधिकारी कहते हैं कि आप शराब की बड़ी खेप तो पकड़ सकते हैं लेकिन स्कूल बैग में जो बच्चे शराब की बोतलें भरकर ला रहे हैं उन्हें पकड़ना मुश्किल है| वह कहते हैं कि हर बच्चे का स्कूल बैग चेक नहीं किया जा सकता| अगर इन बच्चों को पकड़ भी लिया जाए तो सलाखों के पीछे भेजने से इनका पूरा भविष्य बर्बाद हो जायेगा| इसलिए कई बार शराब की बोतलें बरामद होने के बावजूद इन मासूम बच्चों को छोड़ दिया जाता है|
नतीजतन उनका डर खत्म हो जाता है और उनके साथी भी इस धंधे में कूद पड़ते हैं| यही वजह है कि अब शराब तस्करी के लिये नाबालिग तस्करों की बड़ी फौज तैयार हो रही है| एक बैग बोतल पहुंचाने के एवज में उन्हें 300 से ₹500 तक दिए जा रहे हैं| ऐसे में बिहार की शराबबंदी कितना सार्थक हो रही है इसका अंदाजा खुद-ब-खुद लगाया जा सकता है|
नीतीश कुमार सरकार की यह पहल निश्चित तौर पर सराहनीय है लेकिन जब तक पड़ोसी राज्यों का साथ उसे नहीं मिलता तब तक इस पहल का असली मकसद हल नहीं होगा| बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार है और झारखंड एवं उत्तर प्रदेश में भी NDA सत्ता में है| इतना ही नहीं केंद्र में भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार है| इसके बावजूद बिहार को छोड़कर किसी और राज्य में शराबबंदी नहीं की गई| खासकर यूपी और झारखंड में शराबबंदी की जानी चाहिए थी क्योंकि यहां यहां के सीमावर्ती इलाकों में शराब की बिक्री बिहार की शराबबंदी को प्रभावित कर रही है| साथ ही पश्चिम बंगाल में भी शराबबंदी होनी चाहिए और इस संबंध में नेपाल सरकार से भी बात की जानी चाहिए कि वह भी भारत से जुड़े सीमावर्ती इलाकों में शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाए| अगर इस दिशा में सामूहिक प्रयास किए जाते और राजस्व की चिंता छोड़ दी जाती तो निश्चित तौर पर न सिर्फ बिहार बल्कि झारखंड, यूपी और पश्चिम बंगाल की दशा में भी क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलता और बिहार में नन्हे शराब तस्करों की फौज यूं तैयार नहीं होती|

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