पंजाब

भ्रष्ट नहीं थे नगर निगम के अफसर, नेताओं ने किया मजबूर, फिर कार्रवाई सिर्फ अफसरों पर ही क्यों? नेताओं पर क्यों नहीं?

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के जालंधर दौरे के बाद नगर निगम के अफसर दहशत में हैं| एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई, जिस तरफ भी जाएं मौत निश्चित है| नगर निगम जालंधर के अधिकारी इस कदर करप्ट कभी नहीं थे| परिस्थितियों और राजनेताओं के दबाव ने उन्हें करप्ट बनने पर मजबूर कर दिया|


पर्दे के पीछे की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है| पिछले 10 सालों में नगर निगम में भ्रष्टाचार का जो आलम रहा उसके जिम्मेदार राजनेता हैं| नगर निगम के अफसर जहां भी कार्रवाई करने जाते वहां अवैध बिल्डिंगों और अवैध कॉलोनियों के ठेकेदार के रूप में नेता सामने आ जाते थे| कई पार्षद इन 10 सालों में कॉलोनाइजर बन गए और कुछ कांग्रेसी पहले से ही यह धंधा चला रहे थे| नगर निगम में जिसकी सरकार होती इन अफसरों को उसी का हुक्म बजाना पड़ता|| जो हुक्म नहीं बजा पाते उन्हें तरह-तरह से परेशान किया जाता था| कभी तबादले के रूप में तो कभी किसी और तरीके से| कमलजीत गांधी, बलजीत सिंह नीला महल, परमजीत सिंह रेरू, गुरदीप सिंह नागरा, मेजर सिंह, अरुण वालिया, गुरचरण सिंह चन्नी, सुखदेव सिंह बाठ, कुलवंत सिंह मन्नन, पार्षद राजा, अमरजीत सिंह मिट्ठा, तेजिंदर सिंह बिट्टू, गुरप्रीत सिंह मोहली, शनि टक्कर जैसे जाने कितने राजनेता प्रॉपर्टी के कारोबार में अपने पैर जमा चुके हैं| इनमें कुछ को पूर्व विधायकों का संरक्षण था तो कुछ को वर्तमान विधायकों का संरक्षण है| आज सुशील रिंकू जैसे विधायक ने खुलेआम सिद्धू के फरमान का विरोध कर यह साबित कर दिया है कि नगर निगम के अधिकारी कितने राजनीतिक दबाव में काम कर रहे हैं.

कोई भी अवैध कॉलोनी कटती और नगर निगम के अधिकारी उस पर कार्यवाही करने के लिए जाते तो पहले ही उनके पास आला नेताओं की फोन आ जाते और उन्हें कार्रवाई से रोक दिया जाता था| किसी बिल्डिंग या किसी दुकान के खिलाफ कार्रवाई करने अगर कोई जाता तो वहां भी अवैध बिल्डिंगों के ठेकेदार नगर निगम के अधिकारियों को धौंस देने से पीछे नहीं हटते| ऐसे में इन अधिकारियों के पास एकमात्र रास्ता सेटिंग करने के अलावा कुछ भी नहीं रह जाता था| अधिकारी मजबूर होते गए और किसी झंझट में पड़ने की बजाय उन्होंने रिश्वतखोरी का रास्ता अपना लिया|
अब नजर डालते हैं कुछ ऐसे उदाहरणों पर जहां अफसर कार्रवाई न करने को मजबूर कर दिए गए या कार्रवाई करने पर सजा भुगतनेे को मजबूूर हो गए | पहला मामला एटीपी लखबीर सिंह का है| कुछ साल पहले लखबीर सिंह के पास आर्डिनेंस डिपो के आसपास का एरिया हुआ करता था| वहां अवैध निर्माण की सूचना पर लखबीर सिंह उसे डिमॉलिश करने के लिए पहुंचे लेकिन लखबीर सिंह कोई कार्रवाई करते इससे पहले ही उन्हें राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा और वह बिना कार्रवाई के ही वापस आने को मजबूर हो गए| दूसरा उदाहरण सुषमा दुग्गल का है| बिल्डिंग इंस्पेक्टर सुषमा दुग्गल लगभग 1 साल पहले मकसूदां इलाके में एक हलवाई के अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने गई थी| नेताओं ने उन पर दबाव डाला था कि वह कार्रवाई न करें| इसके बावजूद सुषमा दुग्गल नहीं मानी और उन्होंने एक्शन ले लिया| इस एक्शन का रिएक्शन यह हुआ कि सुषमा दुग्गल को फिल्ड से हटाकर टेबल पर बैठा दिया गया|
तीसरा उदाहरण बिल्डिंग इंस्पेक्टर जीतपाल जोशी का है| सूत्र बताते हैं कि जीतपाल जोशी एक अवैध बिल्डिंग के खिलाफ कार्रवाई करने गए थे| यह बिल्डिंग एक कांग्रेस विधायक के जानकार की थी| जोशी जब नहीं माने तो उनको पठानकोट के लिए स्थानांतरित कर दिया गया| जोशी ने जब इस विधायक से हाथ जोड़कर माफी मांगी उसके बाद जोशी का तबादला रुका| अगला उदाहरण बिल्डिंग इंस्पेक्टर दिनेश जोशी का है| दिनेश जोशी को भी एक अवैध बिल्डिंग के खिलाफ कार्रवाई करने का खामियाजा सस्पेंशन के रूप में भुगतना पड़ा| जिस बिल्डिंग के लिए दिनेश जोशी को सस्पेंड किया गया था वह बिल्डिंग उनके सस्पेंशन के बाद अच्छे से बनकर तैयार हो गई और अब वहां कारोबार भी शुरू हो चुका है|
एक और उदाहरण राजेंद्र शर्मा का है. राजेंद्र शर्मा ने कई अवैैध बिल्डिंगों और कॉलोनियों पर कार्रवाई की और कई बार उन्हें भी राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ा.
ऐसे ही न जाने कितने उदाहरण हैं लेकिन स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू अफसरों की इस मजबूरी को नहीं समझ पाए और उन्हें सस्पेंड कर दिया| नवजोत सिंह सिद्धू आखिर यह क्यों नहीं समझ पाए कि जिस राजेंद्र शर्मा ने एटीपी रहते हुए हाईकोर्ट के आदेशों पर पूरे नया बाजार में डिच चलवा दी थी, वह राजेंद्र शर्मा अवैध बिल्डिंगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर पाए?
नगर निगम के सभी अधिकारी कार्रवाई करने में पूरी तरह सक्षम हैं और कर भी सकते हैं लेकिन इससे पहले नवजोत सिंह सिद्धू को उन्हें यह अभय दान देना होगा कि किसी राजनेता की शिकायत पर उनका तबादला नहीं किया जाएगा| सिद्धू को यह अभयदान देना होगा कि किसी राजनेता की शिकायत पर उन्हें नहीं हटाया जाएगा| सिद्धू को यह भी अभयदान देना होगा कि किसी राजनेता की शिकायत पर इन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी| अगर इतना अभय दान देने के बावजूद इन अधिकारियों में से किसी की भी शिकायत आती है तो उस अधिकारी को सस्पेंड नहीं किया जाना चाहिए बल्कि तत्काल प्रभाव से नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए| लेकिन अफसरों पर एकतरफा कार्रवाई करने से पहले नवजोत सिंह सिद्धू को मामले का दूसरा पक्ष भी जान लेना चाहिए| अफसरों पर लगाम लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है, लगाम लगाने की आवश्यकता है राजनेताओं पर| अफसरों की कारगुजारी पर तो शहरभर की जनता पहरा दे रही है लेकिन राजनेताओं की शिकायत के लिए कोई मंच नहीं| नवजोत सिंह सिद्धू ने जो तेवर दिखाए हैं वह सराहनीय हैं लेकिन सिद्धू का यह कदम तभी सार्थक होगा जब नगर निगम के अधिकारियों के सिर से राजनीतिक दबाव पूरी तरह से खत्म हो जाए| अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर सिद्धू चाहे कितनी भी भर्तियां कर लें मगर सिस्टम नहीं बदल पायेंगे| सिद्धू को यह समझना होगा कि आखिर क्यों सरकार बदलते ही नगर निगम के यह अफसर अकाली भाजपा नेताओं की अवैध बिल्डिंगों और अवैध कॉलोनियों पर कार्रवाई करने लगे और सत्ता बदलने से पहले कांग्रेस नेताओं की अवैध इमारतों पर क्यों कार्रवाई करते थे? अगर नवजोत सिंह सिद्धू वास्तव में नगर निगम के सिस्टम को सुधारना चाहते हैं तो सबसे पहले उन्हें ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि नगर निगम के अधिकारी सियासी हाथों की कठपुतली न बनें| जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन नगर निगम का भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा और व्यवस्था खुद ब खुद सुधर जाएगी| अफसरों की कमान सिद्धू अपने हाथों में सीधे लें तो इस व्यवस्था में निश्चित तौर पर सुधार आएगा वरना चंद रोज के लिए अखबारों की सुर्खियां बन के सिद्धू का मिशन कागजों में ही सिमट कर रह जाएगा|

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