नीरज सिसौदिया
सियासत और प्रॉपर्टी के कारोबार का रिश्ता बहुत गहरा है| कहीं सियासतदान खुद इस कारोबार में डूबे हुए हैं तो कहीं उनके सिपहसालार जोर आजमाइश करने में जुटे हुए हैं| यही वजह है कि पंजाब के स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने जब अवैध कॉलोनियों और अवैध इमारतों के खिलाफ अभियान छेड़ा तो जालंधर के विधायक सुशील कुमार रिंकू भड़क उठे| सिद्धू का यह कदम जालंधर की दो अन्य विधायकों राजेंद्र पीढ़ी और बावा हेनरी को भी नागवार गुजरा लेकिन विरोध का जो तरीका सुशील कुमार रिंकू ने अख्तियार किया वह वाकई चौंकाने वाला था| विधायक खुलेआम मंत्री के फैसले को चुनौती पर चुनौती दिए जा रहे हैं, मंत्री खुलेआम विधायकों को नसीहतें देने में लगे हैं लेकिन सूबे के सरदार कैप्टन अमरिंदर सिंह की जुबां खामोश है| इतने गंभीर मसले पर आखिर कैप्टन खामोश क्यों हैं? यह सवाल पंजाब की जनता को अंदर ही अंदर कचोटने में लगा हुआ है| क्या कैप्टन की खामोशी का मतलब विरोध कर रहे विधायकों को मौन समर्थन देना है या फिर नवजोत सिंह सिद्धू की कार्रवाई को वह उचित मानते हैं? पंजाब की जनता इसका जवाब चाहती है लेकिन कैप्टन खामोश है| इस सियासी ड्रामे पर कैप्टन की खामोशी क्या साबित करना चाहती है यह कहना फिलहाल मुश्किल है लेकिन कहीं ना कहीं कैप्टन लाचार नजर आते हैं|
दरअसल, कैप्टन और नवजोत सिंह सिद्धू का शीत युद्ध विधानसभा चुनाव के दौरान से ही चल रहा है| भारतीय जनता पार्टी छोड़कर जब नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस का हाथ थामा था तो ना चाहते हुए भी कैप्टन सिद्धू को स्वीकार करने पर मजबूर हो गए| कांग्रेस में सिद्धू की एंट्री राहुल गांधी के मार्फत हुई| इतना ही नहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बराड़ को जालंधर कैंट विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिलाने का वादा किया था लेकिन वहां भी कैप्टन अपना वादा पूरा नहीं कर पाए और इसकी एकमात्र वजह नवजोत सिंह सिद्धू ही थे| सिद्धू और परगट सिंह की यारी कैप्टन पर भारी पड़ गई| नतीजा यह हुआ कि राहुल गांधी के मार्फत सिद्धू परगट सिंह को जालंधर कैंट विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाने में सफल साबित हुए और बराल को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा|
बात सिर्फ यही पर खत्म नहीं हुई| विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर कैप्टन की आंखों की किरकिरी बन गये| इस बार मुद्दा मुख्यमंत्री के बाद नंबर 2 की कुर्सी का था| सिद्धू इसमें भी कामयाब हुए और स्थानीय निकाय मंत्रालय सिद्धू की झोली में आ गिरा| वहीं सुशील कुमार रिंकू को विधानसभा चुनाव का टिकट दिलाने में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अहम भूमिका रही| सुशील रिंकू कांग्रेस के मंत्री राणा गुरजीत सिंह के खासमखास में से एक थे| राणा और कैप्टन की नजदीकियां जगजाहिर हैं| सुशील कुमार रिंकू को विधानसभा चुनाव में जिन लोगों ने हर तरीके से मदद की थी उनमें वह कॉलोनाइजर शामिल हैं जिनकी अवैध कॉलोनियों पर डिच चलाने का फरमान नवजोत सिंह सिद्धू ने सुनाया है| ऐसे में सिद्धू का विरोध करना रिंकू की मजबूरी बन गया| अगर वह ऐसा नहीं करते तो उनकी सियासी जमीन पूरी तरह खिसक जाती| इसलिए सब कुछ जानते हुए भी रिंकू ने यह फैसला लिया और खुलेआम अवैध कॉलोनी काटने वाले अपने समर्थकों के लिए सरकार से बगावत पर उतारू हो गए|
कॉलोनाइजर और अवैध बिल्डिंग बनाने वालों से सिर्फ सुशील रिंकू के ही रिश्ते नहीं हैं बल्कि जालंधर नार्थ के विधायक बावा हेनरी और जालंधर सेंट्रल के विधायक राजेंद्र पीढ़ी के समर्थकों में भी कुछ ऐसे लोग शामिल हैं जो अवैध कॉलोनियों का कारोबार करते हैं| दिलचस्प बात यह है कि एक तरफ पूर्व मंत्री अवतार हेनरी रिंकू के विरोध को गलत बता रहे हैं तो दूसरी ओर उनके बेटे व विधायक बावा हेनरी सिद्धू की कार्रवाई से सुखी नहीं हैं|
रिंकू के इस विरोध ने कांग्रेस की गुटबाजी को एक बार फिर सड़कों पर ला दिया है| कैप्टन अब उम्र दराज हो चुके हैं और पंजाब कांग्रेस मैं फिलहाल ऐसा कोई कद्दावर नेता नजर नहीं आता जो कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह ले सके| ऐसे में हरफनमौला सिद्धू का रास्ता पूरी तरह साफ है| अमरिंदर सिंह की कुर्सी सिद्धू के खाते में आ सकती है| सिद्धू काबिल भी है और उनके सिर पर राहुल गांधी का हाथ भी है| संभव है कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह के नाम पर ना लड़े| ऐसे में पंजाब कांग्रेस का चेहरा नवजोत सिंह सिद्धू बन सकते हैं|
पंजाब में सियासी ड्रामा, कांग्रेस विधायक रिंकू समर्थकों ने लगाए मंत्री “सिद्धू कुत्ता है” के नारे
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सियासी जानकारों का मानना है कि सिद्धू अगर अपने स्टैंड पर इसी तरह कायम रहे तो निश्चित तौर पर पंजाब में कांग्रेस का किला उठाना आसान नहीं होगा| कांग्रेस में सिद्धू दिनोंदिन मजबूत होते जा रहे हैं| कैप्टन भी इस बात को अच्छी तरह समझ चुके हैं| विरोधी दलों के भी कुछ आला नेताओं से सिद्धू के संबंध बेहद अच्छे हैं| अगर स्थानीय निकाय मंत्री रहते हुए सिद्धू कोई उपलब्धि हासिल कर लेते हैं और पंजाब के नगर निगमों की दशा सुधार लेते हैं तो निश्चित तौर पर उनकी मंजिल ज्यादा दूर नहीं होगी| कैप्टन की खामोशी ने यह साबित कर दिया है कि 2-4 विधायकों के विरोध से पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला| अगर कैप्टन खुले तौर पर विधायकों का पक्ष लेते हैं तो इसका खामियाजा कैप्टन अमरिंदर सिंह को ही भुगतना पड़ेगा| अगर यह मामले दबा दिए जाते हैं तो भी सबसे ज्यादा दागदार कैप्टन अमरिंदर सिंह का ही दामन होगा| इसलिए कैप्टन साहब कुछ तो बोलिए, अपनी चुप्पी तोड़ी है क्योंकि जनता इंतजार कर रही है आपके जवाब का| कैप्टन साहब यह साफ कीजिए कि कानून हाथ में लेने वाले और कानून की धज्जियां उड़ाने वाले विधायक के खिलाफ आप कोई कार्रवाई करेंगे या नहीं| कैप्टन साहब कम से कम इतना तो बता दीजिए कि क्या 70 साल देश पर राज करने वाली कांग्रेस में कानून की धज्जियां उड़ाने वाले विधायकों की कोई जगह होनी चाहिए| कैप्टन साहब यह तो बता दीजिए कि क्या पंजाब में ऐसे ही सियासी ड्रामे चलते रहेंगे? जब सरकार के टैक्स को चूना लगाने वाले कॉलोनाइजरों और बिल्डरों के संरक्षण में विधायक खुद पर आएंगे तो पंजाब सरकार का खाली खजाना कैसे भरेगा? अगर सरकार इन कॉलोनाइजरों और बिल्डरों से नहीं ले सकती तो क्या टैक्स देने वाले आम आदमी बेवकूफ हैं? कैप्टन साहब अगर आज आपने कानून की धज्जियां उड़ाने वालों को बख्श दिया तो जनता की अदालत आपको नहीं बख्शेगी| इसलिए अब जरूरत है कि आप चुप्पी तोड़ें और सही गलत का फैसला खुद करें|