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लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में…

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नीरज सिसौदिया
हिंदी सिनेमा को सदाबहार नगमों की सौगात देने वाले मशहूर शायर और गीतकार गोपालदास नीरज अब इस दुनिया में नहीं है| आज शाम दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में उन्होंने आखिरी सांस ली लेकिन हिंदी सिनेमा और साहित्य जगत को उन्होंने जो सौगात दी वो बेमिसाल है.
93 साल के नीरज का पूरा नाम गोपालदास सक्सेना नीरज है| उनकी जिंदगी का सफर बहुत ही संघर्ष करा रहा| हिंदी और उर्दू को बेहद करीने से समझने वाले नीरज का सफर बताैर टाइपिस्ट शुरू हुआ था| उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरा वली गांव में चार जनवरी 1925 को जन्मी गोपालदास नीरज ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे|
सिर्फ 6 साल की उम्र में उनके पिता बृजकिशोर का निधन हो गया और बड़ा बेटा होने की वजह से पूरी जिम्मेदारी उनके सिर आ गई| फिर नौकरी में भाग्य आजमाने लगे लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया| पढ़ाई और काम साथ-साथ चलाने वाले नीरज ने इटावा न्यायालय में टाइपिस्ट की नौकरी कर ली| 1942 में दिल्ली आ गए और रोजगार तलाशने लगे| काफी मशक्कत के बाद उन्हें 67 रुपये मासिक वेतन पर टाइपिस्ट की नौकरी सप्लाई विभाग में मिल गई| अपनी वेतन में से ₹40 वह घर भेज देते थे और ₹27 में अपना मासिक खर्च चलाते थे|

आर्थिक तंगी के चलते वह दिन में एक टाइम ही खाना खाते थे| दिल्ली के बाद वह कानपुर में क्लर्क बन गए| 1949 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की और फिर 1953 में हिंदी साहित्य में एमए किया| 1955 में वह मेरठ में प्राध्यापक बन गए लेकिन सहयोगियों के झूठे आरोपों के कारण उनकी यह नौकरी भी हाथ से निकल गई| नीरज को एक लड़की से प्यार भी हुआ लेकिन उन्हें प्यार नसीब नहीं हुआ| प्रेमिका के ठुकराने पर उन्होंने पहली पंक्ति लिखी कितना एकाकी मम जीवन|


गोपालदास हरिवंश राय बच्चन को अपना आदर्श मानते थे| एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि बच्चन जी से ही मुझे लिखने की प्रेरणा मिली है| इसके बाद वह कविताएं लिखने लगे और लोकप्रिय होते चले गए| कवि बनने के बाद उन्हें मुंबई जाने का मौका मिला| हिंदी फिल्मों में उनका पहला गीत कारवां गुजर गया… था जो सुपर हिट हुआ| इसके बाद कहता है जोकर सारा ज़माना…, दिल आज शायर है, गम आज नगमा है…, बस यही अपराध में हर बार करता हूं आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं…, मेरा मन तेरा प्यासा…, अपने होठों की बंसी बना ले मुझे… जैसे कई उम्दा नगमे उनकी कलम से निकले| उनके गीतों में खुशमिजाजी भी थी तो गमगीन कर देने वाले अल्फाज भी थे| उनके नगमों में प्यार का एहसास था तो जुदाई का दर्द भी था| कभी उनकी कलम रिश्तों के एहसास को जगाती तो कभी समाज को इंसानियत की राह दिखाती थी| उनकी कलम आम आदमी के जज्बातों को बयां करती थी| कॉलेज का फंक्शन हो या उदासी का माहौल, उनके तरानों में हर रंग नजर आता था|
अपने उम्दा नगमों की लिए उन्हें तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से भी नवाजा गया था| उन्हें पहला फिल्म फेयर अवार्ड सन 1970 में आई फिल्म चंदा और बिजली के गीत काल का पहिया घूमे रे भैया… के लिए दिया गया था| इसके बाद वर्ष 1971 में आई फिल्म पहचान के बस यही अपराध में हर बार करता हूं आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं… के लिए उन्हें लगातार दूसरी बार फिल्मफेयर अवार्ड से नवाजा गया| नीरज का सफर यहीं नहीं थमा| 1972 में आई फिल्म मेरा नाम जोकर के गीत ए भाई! जरा देख के चलो… के लिए नीरज को लगातार तीसरी बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया| वर्ष 1991 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया| सन् 1994 में यश भारती पुरस्कार उनकी झोली में आया| इसके बाद वर्ष 2007 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया| भारतीय साहित्य और सिली जगत में गोपालदास नीरज के योगदान को सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता| एक टाइपिस्ट से नगमों कि आसमान तक का जो फासला नीरज ने तय किया वह दुनिया के लिए एक मिसाल बन गया|
कवि सम्मेलनों और काव्य गोष्ठियों में अक्सर नीरज चंद पंक्तियां कहा करते थे…
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में
लगेंगी आपको सदियां हमें भुलाने में…
निश्चित तौर पर कलम के जादूगर को भुलाने में सदियां नहीं कई युग बीत जाएंगे और उनके नगमे हम युगों- युगों तक यूं ही गुनगुनाएंगे|

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