उत्तराखंड

खटोली में भागवत कथा सुनने उमड़े भक्त 

Share now

दीपक शर्मा, लोहाघाट 

चम्पावत के ग्राम पंचायत खटोली मै पांचवे दिन की कथा मे कथावाचक श्रीमान टीका राम भट्ट जी महाराज ने भगवान श्रीराम और शबरी कथा प्रसंग पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शबरी सा त्याग आज के समय में कम ही मिलता है। शबरी जाति की भीलनी का नाम था श्रमणा।

बाल्यकाल से ही वह भगवान श्रीराम की अनन्य भक्त थी। उसे जब भी समय मिलता वह भगवान की सेवा पुजा करती। घर वालों को उसका व्यवहार अच्छा नहीं लगता। बड़ी होने पर श्रमणा का विवाह हो गया। उसका पति भी उसके मन के अनुसार नहीं था और वहां के लोग अत्यंत अनाचारी, दुराचारी थे। श्रमणा का उनसे अकसर झगड़ा होता रहता था। गन्दे माहौल में श्रमणा जैसी सात्विक स्त्री का रहना बड़ा कष्टकर हो गया था। वह इससे निकल कर भागना चाहती थी। सोच विचार के बाद उसने मतंग ऋषि के आश्रम में रहने का निश्चय किया। अछूत होने के कारण वह आश्रम के अंदर प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा सकी और वहीं दरवाजे के पास गठरी सी बनी बैठ गई। जब काफी देर के बाद मतंग ऋषि आए तो श्रमणा को देखकर चौंक पड़े। श्रमणा से आने का कारण पूछा, तो उसने बहुत ही नम्र स्वर में अपने आने का कारण बताया। उन्होंने श्रमणा को अपने आश्रम में रहने की अनुमति दे दी। श्रमणा अपने व्यवहार और कार्यकुशलता से शीघ्र ही आश्रम वासियों की प्रिय बन गई। इस बीच जब उसके पति को पता चला कि वह मतंग ऋषि के आश्रम में रह रही है, तो वह आग बबूला हो गया। श्रमणा को आश्रम से उठा लाने के लिए वह अपने साथियों को लेकर चल पड़ा। मतंग ऋषि को इस बारे में पता चल गया कि श्रमणा दोबारा उस वातावरण में नहीं जाना चाहती थी।

ऋषि ने तुरन्त चारों ओर अग्नि पैदा कर दी जैसे ही उसका पति आगे बढ़ा उस आग को देखकर डर गया और वहां से भाग खड़ा हुआ। दिन गुजरते रहें भागवान श्रीराम सीता की खोज में मतंग ऋषि के आश्रम में जा पहुंचे। मतंग ऋषि ने उन्हें पहचानकर दोनों भाईयों का यथायोग्य सत्कार किया। श्रमणा को बुलाकर कहा कि श्रमणा जिस राम की तुम बचपन से पुजा करती आ रही थी, वही राम आज साक्षात तुम्हारे सामने खड़े है। मन भरकर इनकी सेवा कर लो। श्रमणा भागकर कन्दमुल लेने गई। कंद-मूलों के साथ वह कुछ जंगली बेर भी लाई थी। कंद-मूलों को उसने भगवान के अर्पण कर दिया। पर बेरों को देने का साहस नहीं कर पा रही थी। कहीं बेर खराब और खट्टे न निकलें, इस बात का उसे भय था। उसने बेरों को चखना आरंभ कर दिया। अच्छे और मीठे बेर वह बिना किसी संकोच के श्रीराम को देने लगी। श्रीराम उसकी सरलता पर मुग्ध थे। उन्होंने बड़े प्रेम से जूठे बेर खाए। श्रीराम की कृपा से श्रमणा का उद्धार हो गया। वह स्वर्ग गई। लक्ष्मण ने शबरी के जूठे बेर नहीं खाए और ये ही बेर लक्ष्मण मूर्छा के समय उनके प्राणों को बचाने के लिए संजीवनी बूटी बने।

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *