नई दिल्ली : स्वतंत्रता दिवस की पूर्व रात्रि यानि 14 अगस्त की मध्य रात्रि को पूर्णिया शहर के झंडा चौक पर आजादी के जश्न में तिरंगा फहराया जाता है। यह वर्ष 1947 से ही चली आ रही है। 14 अगस्त की मध्य रात्रि को जब आजादी का एलान किया गया था तब उसी रात यहां पहली बार तिरंगा फहराया गया था और 70 सालों से उस का पालन आज भी यहां किया जा रहा है।
देश में बाघा बार्डर पर भी 14 अगस्त की मध्य रात्रि को तिरंगा झंडा फहराया जाता है। मध्य रात्रि को झंडा चौक पर तिरंगा फहराने की प्रथा अंग्रेजों के बंधन से मुक्त होने की घोषणा के खुशी में शुरु हुई थी। स्वतंत्रता सेनानियों के परिजनों के अनुसार 14 अगस्त को भारत को आजाद करने के लिए वार्ता अंतिम दौर में थी।
उस वक्त स्थानीय स्वतंत्रता सेनानी शमसूल हक, डा. लक्ष्मी नारायण सुधांशु, नरेंद्र प्रसाद स्नेही सहित दर्जन से अधिक राष्ट्रभक्त स्वतंत्र झंडा चौक पर दोपहर से ही जमा थे तथा ट्रांसमीशन के जरिए पल-पल की खबर सुन रहे थे। उसी दौरान रात्रि में 12 बजकर एक मिनट पर स्वतंत्र भारत की घोषणा हुई जिसे रेडियो पर प्रसारित किया गया। भारत के आजाद होने का संदेश सुनते ही सभी सेनानी खुशी से झूम उठे तथा भारत माता की जयघोष करने लगे।
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उसी वक्त सभी स्वतंत्रता सेनानियों ने झंडा चौक पर तिरंगा फहराकर आजादी का जश्न मनाया। उसके बाद से हर 14 अगस्त की रात्रि को वहां तिरंगा फहराने की का निर्वहन होता आ रहा है। स्वतंत्रता सेनानी नरेंद्र स्नेही के पुत्र दिनकर स्नेही बताते हैं कि 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को जब पहली बार झंडा चौक पर तिरंगा फहराया गया था।
उस वक्त स्वतंत्रता सेनानी शमसुल हक ने अहम योगदान दिया था। वक्त के सेनानियों में सबसे अधिक दिन तक शमसुल हक जीवित रहे। तक वे जीवित रहे हर 14 अगस्त की रात्रि को झंडा चौक पर तिरंगा लहराने की अगुवाई वे स्वयं करते रहे। 15 वर्ष पूर्व उनकी मौत हो गई लेकिन आज भी वह कायम है। बताते चले कि इस बार भी इस नियम का पालन लोगों द्वारा किया जाएगा।