नीरज कुमार, नई दिल्ली
अपने जीवन के लगभग तीन दशक से भी अधिक पत्रकारिता जगत को समर्पित करने वाले वरिष्ठ पत्रकार अकु श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक ‘उत्तर उदारीकरण के आंदोलन’ के दूसरे संस्करण के आवरण का लोकार्पण दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में सूफी गायक और उत्तर पश्चिम दिल्ली से भाजपा सांसद हंसराज हंस ने किया। यह पुस्तक 90 के दशक में उदारीकरण के बाद भारत में हुए आंदोलनों का एक विस्तृत लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है जिसके माध्यम से देश की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। इस पुस्तक में अन्ना आंदोलन, सीएए-एनआरसी आंदोलन और किसान आंदोलन जैसे कई आंदोलनों को सहेजा गया है। इसमें आंदोलनों के भौगोलिक, सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को भी बेहद खूबसूरती के साथ दर्शाया गया है।
पुस्तक के आवरण के लोकार्पण के मौके पर मुख्य अतिथि और सांसद हंसराज हंस ने पुराने दिनों को याद करते हुए अकु श्रीवास्तव को एक महान पत्रकार बताया। हंसराज हंस ने कहा कि मैं जिस पंजाब से आता हूं वह पंजाब तो अपने आप में आंदोलनों की धरती है। अकु श्रीवास्तव के साथ मेरा नाता कई दशक पुराना है जब वह जालंधर में पत्रकारिता कर रहे थे। मैं तब से देख रहा हूं कि आप जनजागरण के काम में लगे हुए हैं। आप लोग जो खुद जागे हुए हैं और लोगों को जगाते हैं, इसका बहुत खूबसूरत जरिया हैं किताबें। किताबों के जरिये आप लोग लोगों को जगाने का काम करते हैं। वैसे तो पूरी दुनिया ही मेला है, पूरी दुनिया के मेले में कई मेले लगते हैं। व्यक्तिगत तौर पर जब पुस्तक मेले में मुझे आने का मौका मिलता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। पुस्तक मेले में आने के बाद ही मैं किताबों से जुड़ गया।
पुस्तक के लेखक अकु श्रीवास्तव ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आंदोलनों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस युग में लड़ाई लड़ना बहुत जरूरी है। जब तक हम लड़ाई नहीं लड़ेंगे तब तक हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे। आंदोलनों का सफल होना या असफल होना कोई बड़ी बात नहीं है, आंदोलन का होना बहुत बड़ी बात है। आंदोलनों की ज्वाला जलती रहनी चाहिए।
पुस्तक परिचर्चा के दौरान दिनेश श्रीनेत द्वारा पुस्तक के लेखन में आने वाली चुनौतियों के सवाल पर अकु श्रीवास्तव ने कहा कि चुनौतियां ही चुनौतियां थीं। उन्होंने हालिया आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि जैसे अभी किसान आंदोलन हुआ, उसके साथ-साथ सीएए का आंदोलन हुआ। शाहीन बाग का आंदोलन हुआ। वहां अचानक कुछ महिलाओं का एक समूह आया और आगे बढ़कर काम करने लगा। उस समय कुछ को अच्छा लगा और कुछ को बुरा लगा और कुछ ने अलग दृष्टि से देखा। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि शाहीन बाग के आंदोलन ने एक बड़ा सबक दिया और महिलाओं के एक बड़े वर्ग को सामर्थता दी। वही वर्ग जो पहले अपने पति से अपने घरवालों से बच्चियों के लिए बात नहीं कर पाता था आज वो उनके लिए लड़ती हुई नजर आ रही हैं।उस समय इनका इस्तेमाल किया गया इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन उसी संघर्ष की पृवृत्ति ने उनको बहुत आगे बढ़ाया। इस तरीके से बहुत सारे आंदोलन और बहुत सारे उदाहरण इस पुस्तक में आपके सामने होंगे जिनसे आप हालातों को समझ सकेंगे।
अकु श्रीवास्तव की पुस्तक ‘उत्तर उदारीकरण के आंदोलन’ दे लॉ दुनिया के आंदोलनों के ऐतिहासिक परिवेश और उनके सामाजिक प्रतिफल को दर्शाती है। इस पुस्तक में जिन आंदोलनों का उल्लेख किया गया है वह वैश्विक और स्थानीय दोनों महत्व के हैं। इसमें भारत के शाहीन बाग आंदोलन से लेकर हांगकांग में चीन के वर्चस्व के खिलाफ लड़ाई तक बहुत कुछ शामिल किया गया है। इस दौरान अकु श्रीवास्तव ने पुस्तक के प्रकाशन के लिए वाणी प्रकाशन की डायरेक्टर अदिति माहेश्वरी और अन्य सहयोगियों का आभार जताया। बड़ी संख्या में लेखक और पत्रकार भी उपस्थित थे।