राजस्थान

जैतारण विधानसभा सीट : जाटों और राजपूतों के इर्द-गिर्द घूम रही कांग्रेस, भाजपा की नजर कांग्रेस के चेहरे पर

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नीरज सिसौदिया, जैतारण (राजस्थान)
सर्दियां करीब आ रही हैं और राजस्थान का सियासी पारा गर्माने लगा है| 2019 की चुनावी रिहर्सल के तौर पर विधानसभा चुनाव का सियासी गणित बिठाया जा रहा है| राजस्थान की लगभग 90% सीटों पर विधानसभा की चुनावी जंग विकास के मुद्दे पर नहीं बल्कि जात पात की जोड़-तोड़ पर लड़ने की तैयारी की जा रही है| मुकाबले में फिर वही दोनों सियासी दल भाजपा और कांग्रेस ही आमने-सामने हैं मगर इस बार कई चेहरे बदले जाने हैं| सियासी उठापटक तेज हो गई है और जातिगत समीकरण जीत के आंकड़े तैयार करने में जुटे हैं| इसका ताजा उदाहरण जैतारण सीट पर देखने को मिल रहा है|
राजस्थान के पाली जिले में पड़ती है जैतारण विधानसभा सीट| यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों के दावेदार अपना अपना जातीय समीकरण बिठाने में लगे हुए हैं| टिकट का बंटवारा भी इसी आधार पर होना तय है क्योंकि इलाके में विकास ना तो कांग्रेस ने कराया था और ना ही भाजपा ने कराया है| जातिगत समीकरण को देखें तो यहां सबसे अधिक आबादी कुमावत बिरादरी की है| यहां लगभग दो लाख 77000 वोटर हैं जिनमें से अकेले 38000 कुमावत बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। यहां के वर्तमान विधायक सुरेंद्र गोयल भी कुमावत बिरादरी से ही ताल्लुक रखते हैं| पिछली बार कुमावत बिरादरी के दावेदार को दरकिनार करना कांग्रेस को महंगा पड़ गया था और यह सीट भाजपा के कुमावत बिरादरी के उम्मीदवार सुरेंद्र गोयल के खाते में आ गई थी| जातिगत समीकरण भारतीय जनता पार्टी के खाते में इसलिए भी चला गया था क्योंकि यहां पर लगभग 35000 वोट रावत समाज का है जो भारतीय जनता पार्टी का पक्का वोट बैंक है| भाजपा ने पिछली बार कुमावत समाज को अपने पाले में करने के लिए यह दांव खेला और उसकी झोली में रावत समाज के वोट तो पहले से ही थे साथ ही कुमावत समाज के वोट भी आ गए और जीत का गणित भाजपा बिठाने में सफल हो गई|

दिलचस्प बात तो यह है कि कांग्रेस की सियासत यहां पर जाटों और राजपूतों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है जबकि वर्ष 1985 के बाद से लेकर अब तक यहां कोई भी राजपूत विधायक नहीं बन सका| 1985 में यहां कर्नल प्रताप सिंह विधायक बने थे और वह 1990 में कुमावत समाज के सुरेंद्र गोयल से हार गए| ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास यहां कुमावत समाज का कोई भी बड़ा नेता नहीं है लेकिन उसे पिछले तीन चुनाव में दरकिनार कर दिया गया | वैसे अगर यहां पर कांग्रेस के टिकट के दावेदारों की बात करें तो कई नाम सामने आ रहे हैं| इनमें गोपाल सिंह शेखावत, दिलीप चौधरी राजेश कुमावत और मोहब्बत सिंह निंबोल प्रमुख रूप से शामिल हैं। इनमें गोपाल सिंह दूसरे जिले के रहने वाले हैं और उनकी उम्र भी लगभग 70 साल के आसपास है| बाहरी होने के कारण गोपाल सिंह यहां से विधानसभा सीट जीतने में सक्षम नजर नहीं आते। बात अगर दिलीप चौधरी की करें तो पूर्व में विधायक रहते हुए चौधरी अपने नाम कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं करा पाए थे और यही वजह थी कि पिछले चुनाव में उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था| इसके अलावा एक युवा चेहरा कांग्रेस के पास नजर आता है जिसे मोहब्बत सिंह निंबोल के रूप में जाना जाता है| मोहब्बत सिंह युवा हैं एनर्जेटिक हैं लेकिन अभी उनका सियासी कद इतना ऊंचा नहीं हुआ कि वह विधानसभा चुनाव में भगवा ब्रिगेड को चारों खाने चित कर सकें| चौथा नाम राजेश कुमावत का है| राजेश पिछले 3 बार से लगातार टिकट की दौड़ में तो रहते हैं लेकिन इस दौड़ में वह कभी बाजी नहीं मार सके| कारण यह भी था कि भाजपा ने कुमावत समाज के ही सुरेंद्र गोयल को मैदान में उतारा और कांग्रेस के आला नेताओं को यह लगता था कि अगर कुमावत समाज के दावेदार को उम्मीदवार बनाया गया तो समाज की वोट कट जाएगी और कांग्रेस के खाते में कुछ नहीं आएगा| जाति समीकरण में कांग्रेस फेल साबित हुई और कुमावत समाज के सुरेंद्र गोयल ने बाजी मार ली| एक बार फिर चुनावी मैदान में सियासी दिग्गज अपनी-अपनी दावेदारी लेकर खड़े हैं| भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का माहौल तो चल ही रहा है साथ ही स्थानीय विधायक सुरेंद्र गोयल के खिलाफ भी जनता में रोष व्याप्त है| ऐसे में अगर कॉन्ग्रेस कुमावत समाज के किसी नेता को मैदान में उतारती है तो भाजपा सुरेंद्र गोयल का टिकट काट सकती है| यही वजह है कि भाजपा अपना उम्मीदवार तभी घोषित करेगी जबकि कांग्रेस का चेहरा साफ हो जाएगा| सूत्र यह भी बताते हैं कि अगर कांग्रेस कुमावत समाज के एक बड़े नेता को मैदान में उतारती है तो भाजपा के लगभग आधे पदाधिकारी भी कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं| बहरहाल टिकट किसको मिलता है यह देखना दिलचस्प होगा और टिकट की टिक टिक ही चुनावी हार जीत का फैसला करेगी|

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