मनाली से लौटकर नीरज सिसौदिया की रिपोर्ट
बर्फीली वादियां, सेब के बागान, सड़कों के किनारे बहता दरिया और पर्यटकों का हुजूम| कुछ ऐसी ही तस्वीर थी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित मनाली की| खूबसूरती ऐसी कि एक बार यहां आए तो फिर जाने का जी ना करे। मनाली के पहाड़ी गांव में कुछ दुश्वारियां जरूर हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश सरकार के विकास की गवाही यह बर्फीली वादियों और यहां तक पहुंचने वाले रास्ते खुद ब खुद दे रहे हैं| यहां पहाड़ की जिंदगी के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां कम हैं। कुदरत ने इन वादियों को हसीन तोहफा से नवाजा है| यही वजह है कि यहां के बाशिंदे एक खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे हैं| बात सिर्फ मनाली शहर की नहीं है| आसपास के कई गांव भी बागवानी से न सिर्फ अपना गुजर-बसर कर रहे हैं बल्कि रोजगार की तलाश में आए हजारों बाहरी परिवारों का भी पेट भर रहे हैं।
मनाली के रहने वाले धर्म सिंह बताते हैं कि पर्यटन उद्योग तो यहां के लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है मगर सबसे ज्यादा खुशहाली की वजह सेब की लाली है। यहां का से विदेशों तक निर्यात किया जाता है| फसल बेहद अच्छी होती है और किसान भी बागवानी पर पूरी तरह से निर्भर हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से मंडियों का उचित प्रबंध किया गया है जहां किसान अपनी फसल आसानी से बेच सकता है।

अनिला महाजन सर्वहितकारी विद्या मंदिर मनाली के अध्यापक बताते हैं कि यहां के ग्रामीण इलाकों में सेब की पैदावार बहुतायत होती है| इसलिए मां बाप भी बच्चों की पढ़ाई लिखाई के प्रति इतने जागरूक नहीं है जितना होना चाहिए|वह बच्चों पर पढ़ाई का कोई प्रेशर नहीं डालते| बच्चों को बाहर नौकरी के लिए भेजना कम पसंद करते हैं और यही वजह है कि यहां बच्चे भी अपनी मनमर्जी के मुताबिक ही पढ़ाई करते हैं| वह बताते हैं कि शहरों की तरह यहां मजदूरी की कोई किल्लत नहीं है| लगभग आधे मजदूर तो नेपाली हैं| बेहतर मजदूरी मिलने के चलते उनकी भी यह पहली पसंद है| लोक संपन्न है और पढ़े-लिखे भी हैं| सेब की पैदावार जितनी अच्छी होती है मनाली के किसान उतने ही संपन्न होते हैं|
पर्यटन उद्योग यहां शहरों तक ही सीमित है| कुछ चुनिंदा लोग इस पर हावी हैं और कुछ बाहरी कारोबारी भी| गर्मी हो या सर्दी मनाली में कभी पर्यटकों की कोई कमी नहीं रहती| देश विदेश के पर्यटक यहां आते हैं| जिनमें से कुछ तो यहीं के होकर रह गए हैं| यहां की लगभग 75 फ़ीसदी अर्थव्यवस्था खेतीकिसानी और बागवानी पर निर्भर है| बाकी 25 फ़ीसदी अन्य कारोबार पर।

विद्या भारती की ओर से यहां पर 12 वीं कक्षा तक एक स्कूल खोला गया है| इसमें दुर्गम पहाड़ी इलाकों से बच्चे पढ़ने आते हैं| विद्यार्थियों की जरूरत के अनुसार अब एक हॉस्टल भी तैयार किया जा रहा है| दुर्गम इलाकों में रहने के कारण बच्चों को यहां आने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है| एक लंबा सफर तय करके उन्हें रोजाना यहां आना पड़ता है| इसी को देखते हुए विद्यालय प्रबंधन की ओर से यहां हॉस्टल बनाया जा रहा है| वक्त के साथ विद्यार्थियों का रुझान भी शिक्षा की ओर बढ़ा है| कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर| माता पिता की जागरूक ना होने के चलते बच्चे पढ़ना लिखना तो सीख रहे हैं लेकिन करियर बनाने के लिए सही दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रहे| यही वजह है कि विद्या भारती की ओर से न सिर्फ बच्चों को स्कूल तक लाया जा रहा है बल्कि उनके माता-पिता को भी पढ़ाई लिखाई के प्रति जागरूक किया जा रहा है|
विद्या भारती के हिमाचल प्रदेश के प्रांत संगठन मंत्री तिलकराज शर्मा कहते हैं कि कुल्लू व मनाली में हम कई स्कूलों के साथ ही दुर्गम इलाकों में बाल संस्कार केंद्र भी चला रहे हैं. इनमें हजारों बच्चों को शिक्षा दी जा रही है.
सेब की लाली में खुशहाल जिंदगी बिता रहे इन गांव के लोगों को किसी और करियर से कोई मतलब नहीं| वह चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ाई इतनी भर कर लें कि वह हिसाब किताब करना सीख सकें| माता पिता की इस सोच को बदलने का काम विद्या भारती कर रही है| विद्या भारती की ओर से समय-समय पर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में अभियान चलाकर उन माता-पिता को भी पढ़ाई के महत्व और उसकी उपयोगिता के बारे में जागरूक किया जाता है| विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख राजेंद्र जी बताते हैं कि यहां सबसे बड़ी जरूरत माता पिता की सोच बदलने की है| यही वजह है कि विद्या भारती यहां के ग्रामीण इलाकों में संस्कार केंद्र भी चला रही है| वह कहते हैं कि बच्चे होनहार हैं और पढ़ाई के प्रति उनका रुझान भी बढ़ रहा है| सबसे अच्छी बात तो यह है कि यहां बच्चे सिर्फ नौकरी के लिए पढ़ाई नहीं करते| ऐसे में यह बच्चे ऐसे में यह बच्चे समाज के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं| बस जरूरत है इन्हें सही दिशा देने की और विद्या भारती उन्हें इसी दिशा का बोध करा रही है।