विचार

सियासत का महासंग्राम : इधर प्रियंका का कद बढ़ा, उधर वाड्रा पर ईडी का शिकंजा कसा, “बीजेपी या कांग्रेस” फायदा किसका? 

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली 

वर्ष 2019 का चुनावी महासंग्राम बेहद दिलचस्प मोड़ पर आ खड़ा हुआ है| सत्ता की जंग में महारथी पूरा जोर लगा रहे हैं| खेल सारा चेहरे और मोहरेे का है| 5 साल पहले नरेंद्र मोदी के चेहरे ने भाजपा को सत्ता के शीर्ष पर बैठाया था तो वहीं 5 साल बाद प्रियंका गांधी के चेहरे के दम पर कांग्रेस हिंदुस्तान का सिंहासन हासिल करने का सपना देख रही है| भाजपा के पास इस बार कोई नया चेहरा नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री पद की दावेदार नहीं होने के बावजूद प्रियंका गांधी का चेहरा कांग्रेस के लिए किसी संजीवनी की जैसा नजर आ रहा है| यही वजह है कि कांग्रेस ने जैसे ही प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति की कमान सौंपी वैसे ही केंद्र सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय को रॉबर्ट वाड्रा की जांच सौंप दी|
अब सवाल यह उठता है कि चुनावी साल में ही केंद्र सरकार को रॉबर्ट वाड्रा के काले कारनामों की याद क्यों आई? अब तक क्यों रॉबर्ट वाड्रा पर शिकंजा नहीं कसा गया? प्रियंका को कांग्रेस के महासचिव का पद मिलते ही अचानक से रॉबर्ट वाड्रा की जांच में तेजी आ गई| चुनावी साल शुरू हो चुका है इसलिए आरोप-प्रत्यारोप और जुमलों की जंग भी तेज हो गई है| ऐसे में रॉबर्ट वाड्रा पर शिकंजा कस कर निश्चित तौर पर केंद्र सरकार और भाजपा के पहरेदार जनता का समर्थन हासिल करना चाहते हैं|
भाजपा की इस कारगुजारी ने यह तो साबित कर दिया है कि प्रियंका गांधी का कद बेहद ऊंचा है जो उनके लिए मुसीबत का सबब बन सकता है| कांग्रेस ने निश्चित तौर पर प्रियंका गांधी के रूप में तुरुप का इक्का फेंक दिया है| वहींं, दूसरी ओर दिलचस्प बात यह भी है कि अब तक जो वरिष्ठ कांग्रेसी दरकिनार किए जा रहे थे और राहुल ब्रिगेड युवा राग अलापती रहती थी, अब उस युवा राग का भी संतुलित इस्तेमाल किया जा रहा है| पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अहम जिम्मेदारियां फिर से सौंपी जा रही हैं। हाल ही में कांग्रेस ने पंजाब समेत विभिन्न राज्यों कि प्रदेश प्रचार कमेटियों का ऐलान किया है| इन कमेटियों में सिर्फ युवा नेताओं को ही नहीं बल्कि कुछ ऐसे पुराने कांग्रेसियों को भी अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है जो पिछले कुछ समय से कांग्रेस की सियासी तस्वीर से बाहर नजर आ रहे थे लेकिन एक जमाने में इन कांग्रेस नेताओं की तूती बोला करती थी। निश्चित तौर पर कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है |

रॉबर्ट वाड्रा को ईडी के शिकंजे में फांसी से पहले भाजपा यह भूल गई कि ऐसा करके वह जनता का समर्थन भले ही हासिल कर सके या ना कर सके लेकिन प्रियंका गांधी जनता की सहानुभूति जरूर हासिल कर लेंगी| अगर इस जांच में रॉबर्ट वाड्रा को जेल भी हो जाती है तो भी कांग्रेस इस मुद्दे को बदले की राजनीति के रूप में प्रचारित कर वोटों में बदल सकती है| आम जनता भी अब इतनी नासमझ नहीं रही कि उसे सही और गलत का फर्क समझ न आए| जनता यह जानती है कि अगर वाकई नरेंद्र मोदी सरकार रॉबर्ट वाड्रा को सलाखों के पीछे भेजना चाहती थी तो फिर इस काम में 5 साल क्यों लगा दिए? मोदी सरकार खुद की चाहे लाख उपलब्धियां गिनाए लेकिन जमीनी मुद्दों पर उपलब्धियों के नाम पर उसके हाथ खाली ही नजर आते हैं| सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी से जनता खुशहाल नहीं होने वाली, यह बात मोदी सरकार और उसके नुमाइंदों को भी समझ लेनी चाहिए| आंकड़ों के खेल में कांग्रेस मोदी सरकार से कहीं आगे निकल चुकी थी| इसके बावजूद वर्ष 2014 में उसे मुंह की खानी पड़ी और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बना ली| इस बार कांग्रेस के पास प्रियंका गांधी के रूप में एक नया चेहरा है जो निश्चित तौर पर कांग्रेस की छवि सुधारने में अहम भूमिका निभाएगा| जनता ने अब तक गांधी परिवार के समर्थित प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल देखा| इस बार राजीव गांधी की मौत के वर्षों बाद एक बार फिर गांधी खानदान का कोई चिराग इस पद का दावेदार है और संभावित प्रधानमंत्री के रूप में जनता उसे देख रही है। भाजपा नेताओं ने भले ही राहुल गांधी को ‘पप्पू’ साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन राहुल गांधी का चार्म अभी भी कम नहीं हुआ है| वहीं, प्रियंका गांधी का क्रेज तो देखते ही बनता है| बात अगर मौका देने की ही है तो फिर सिर्फ नरेंद्र मोदी को ही मौका क्यों दिया जाए? प्रियंका और राहुल गांधी को क्यों नहीं? इस देश का आधे से अधिक वोटर युवा है और वह युवा को प्रधानमंत्री देखना चाहता है| जनता ने भाजपा को पूर्ण बहुमत देकर देख लिया है| ऐसे में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी पर दांव खेलने में जनता कोई गुरेज नहीं करने वाली| इतिहास गवाह है कि हिंदुस्तान में वोटिंग नेताओं या सरकारों के वर्तमान कार्यों को देख कर नहीं बल्कि भविष्य की उम्मीदों को देख कर की जाती रही है| इसका जीता जागता उदाहरण दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार है, जिसका जन्म अन्ना के आंदोलन के बाद एक उम्मीद के तौर पर हुआ था| वह उम्मीद अब भी बरकरार है इसीलिए केजरीवाल दिल्ली में बरकरार हैं| मोदी सरकार की पैदाइश भी जनता की उम्मीदों का ही नतीजा थी लेकिन वह उम्मीदें भी परवान नहीं चढ़ सकी| अब एक और उम्मीद प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के रूप में सामने है| यह भी सच है कि राजीव गांधी की मौत के बाद गांधी परिवार का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर आसीन नहीं हो सका| सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन सकती थीं लेकिन भगवा ब्रिगेड ने उन्हें विदेशी कहकर अपमानित किया और देश की कमान नहीं संभालने दी| अगर उस वक्त सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने दिया होता तो गांधी परिवार से जनता को आज इतनी उम्मीद शायद न होती लेकिन उस वक्त का भगवा ब्रिगेड का विरोध आज कांग्रेस के लिए वरदान साबित हो सकता है|

भारत की सियासत में गांधी परिवार की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता| यही वजह है कि राजीव गांधी के निधन के बाद मृत प्राय हुई कांग्रेस एक बार फिर ना सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हुई बल्कि 10 वर्षों तक राज भी किया| यह सब कुछ भी सोनिया गांधी की बदौलत ही संभव हो पाया था| यही वजह है कि कांग्रेस आज भी गांधी परिवार की बुनियाद पर खड़ी है| जिस दिन गांधी परिवार का नाम कांग्रेस से अलग हो जाएगा उस दिन कांग्रेस का अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा| भारतीय जनता पार्टी को फिलहाल यह बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए कि इस बार उनका मुकाबला मनमोहन सिंह और चिदंबरम जैसे नेताओं से नहीं बल्कि सीधे गांधी परिवार के चश्मो चिरागों से है। अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो निश्चित तौर पर इस बार जवाबदेही राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की होगी| इस बार अगर जनता से कोई धोखा हुआ तो उसके जिम्मेदार सीधे तौर पर गांधी परिवार के ये चिराग होंगे| यही वजह है कि जनता भी इस बार गांधी परिवार के इन चिरागों पर दांव खेलने की तैयारी कर रही है| अगर राहुल और प्रियंका जनता की उम्मीदों पर खरे उतरे तो कांग्रेस का सियासी भविष्य भाजपा के लिए खतरे का सबब बन सकता है लेकिन अगर यह दोनों जनता की उम्मीदों को पूरा नहीं कर सके तो कांग्रेस का सियासी भविष्य गर्त में जाने से कोई नहीं रोक सकता| फिलहाल, प्रियंका गांधी ने विरोधी खेमे में खलबली मचा दी है| अब अगर भाजपा कोई उल्टी-सीधी चाल चलेगी तो उसका लाभ सीधे सीधे कांग्रेस के खाते में जाएगा|

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