देश

आसान हुई संतोख चौधरी की राह, केपी की नाराजगी खत्म, मक्कड़-रायपुर की खींचतान ले डूबेगी अकाली दल के अटवाल को

Share now

नीरज सिसौदिया, जालंधर
नामांकन के दौरान कैप्टन की मौजूदगी और मंच पर मोहिंदर सिंह केपी का साथ जालंधर संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी चौधरी संतोख सिंह के लिये किसी संजीवनी से कम नहीं. इस पर दो सीनियर अकाली नेता सरबजीत मक्कड़ और परमजीत सिंह रायपुर की आपसी लड़ाई चौधरी की चौधराहट में चार चांद लगा रही है. इतना ही नहीं आप आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलशन शर्मा का कांग्रेस में शामिल होना भी चौधरी के लिए वरदान साबित हो सकता है.
दरअसल, चौधरी संतोख सिंह के लिए चुनावी राह उस वक्त कुछ मुश्किल नजर आ रही थी जब जालंधर वेस्ट के विधायक सुशील कुमार रिंकू और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहिंदर सिंह केपी उनकी राह में रोड़ा बनकर खड़े हो गए थे. लेकिन सियासत के माहिर चौधरी ने तुरूप का इक्का फेंका और रिंकू व केपी की नाराजगी दूर हो गई. रिंकू के विधानसभा क्षेत्र में वोटों का गणित साधने के लिए चौधरी ने रिंकू के ही धुर विरोधी बलदेव सिंह देव की बतौर जिला प्रधान ताजपोशी करा दी. इससे न सिर्फ रिंकू समर्थकों की बोलती बंद हो गई बल्कि चौधरी ने अपनी ताकत का एहसास भी करा दिया. चौधरी यहीं नहीं रुके. अब बारी थी मोहिंदर सिंह केपी को मनाने की. चौधरी ने पहले विधायकों के जरिये और फिर आला नेताओं के जरिए ऐसा दांव खेला कि मोहिंदर केपी न सिर्फ कोप भवन से सीधा चौधरी के साथ मंच साझा करते नजर आए बल्कि उन्होंने मंच से चौधरी के समर्थन का ऐलान भी कर डाला. शायद केपी यह समझ चुके हैं कि निजी स्वार्थ से पार्टी का हित ज्यादा जरूरी है, इसलिए वह गिले शिकवे भूल कर चेहरे पर मुस्कान लिये चौधरी के समर्थन में आ खड़े हुए.

चौधरी संतोख सिंह के साथ मंच साझा करते केपी.

रिंकू समर्थक चौधरी का कुछ नुकसान अभी भी कर सकते हैं लेकिन बलदेव सिंह देव और प्रदीप राय के आने से इसकी भरपाई चौधरी ने पहले ही कर ली है. देव कभी अकाली दल में थे. आज भी कुछ स्थानीय अकाली उन्हें अंदरखाते सपोर्ट करते हैं. इन्हें कांग्रेस में शामिल कराने पर विचार भी चल रहा है. रिंकू समर्थकों की जो वोटें चौधरी के खाते से कट सकती हैं उनकी भरपाई ये अकाली कर देंगे.

वेस्ट विधायक सुशील रिंकू के धुर विरोधी बलदेव सिंह देव के साथ चौधरी संतोख सिंह.

चौधरी का जो सबसे मजबूत पक्ष है वह है वर्ष 2014 में मिली जीत. चौधरी ने उस वक्त कांग्रेस का झंडा जालंधर संसदीय सीट पर बुलंद किया था जब पूरे देश में कांग्रेस के दिग्गज मोदी लहर में बह गए थे. जब मोदी लहर चौधरी को हिला भी नहीं सकी तो अब तो लहर दूर दूर तक नजर नहीं आती. ऐसे में चौधरी के लिए अकाली भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार को पटखनी देना मुश्किल नहीं होगा. खासकर ऐसे वक्त जब अकाली दल के अपने ही दो वरिष्ठ नेता सरेआम लड़ रहे हैं. भाजपा के कुछ नेता वैसे ही अकाली दल से तालमेल बैठाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते. बहरहाल, चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा मगर हालात इसी तरह चौधरी के पाले में रहे तो उन्हें इतिहास दोहराने से कोई नहीं रोक सकता.

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *