पंजाब

देहात में अटवाल भारी, शहर में चौधरी खेमे में मारामारी, कांटे का होगा मुकाबला, वोटकटवा ही लिखेंगे हार-जीत की इबारत, जानिये कैसे?

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
लोकसभा चुनाव का सियासी घमासान भले ही देशभर में मोदी लहर का संकेत देता नजर आ रहा है लेकिन जालंधर संसदीय सीट पर मुकाबला कांटे का होगा. यहां निवर्तमान कांग्रेस सांसद चौधरी संतोख सिंह और पूर्व विधानसभा स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल के बीच मुख्य मुकाबला है. हालांकि, इस बार इस महायुद्ध के निर्णायक वोटकटवा उम्मीदवार ही होंगे. दरअसल, यह सीट दलित प्रत्याशी के लिए आरक्षित सीट है इसलिये जातिवाद इस सीट पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डालने वाला. अब बारी आती है उम्मीदवारों के चेहरे की तो इस सीट पर दोनों में कोई भी चेहरा जनता के दिलों में राज करने वाला नहीं रहा है और न ही कोई इतना बड़ा सेलिब्रिटी है कि उनके नाम पर ही वोटों की बारिश हो जाये. तीसरा मुद्दा विकास का आता है तो पिछले लगभग दो वर्षों के कार्यकाल में न तो कांग्रेस विकास की ऐसी कोई मिसाल जालंधर के लिये पेश कर सकी है और न ही दस वर्षों के कार्यकाल में अकाली भाजपा गठबंधन ने ही जालंधर के लोगों के लिए कोई विकास की इबारत लिखी. ऐसे में यह तो तय है कि इस बार जो भी जीतेगा वह मजबूरी में ही जरूरी होगा.

चरणजीत सिंह अटवाल

अब नजर डालते हैं पार्टी कैडर वोटों पर. जालंधर संसदीय क्षेत्र वैसे तो कांग्रेस का गढ़ रही है लोकिन बात जब ग्रामीण इलाकों की आती है तो अकाली दल का पलड़ा भारी नजर आता है. इस बार भी हालात कुछ ऐसे ही नजर आ रहे हैं. जालंधर के आसपास के इलाकों में कुछ मोदी के दीवाने हैं तो कुछ कट्टर अकाली समर्थक. इसलिये सियासी जानकारों की मानें तो ग्रामीण इलाकों में अटवाल को एकतरफा वोट पड़ सकती हैं. असल मुकाबला शहर में होगा. यहां जो प्रत्याशी जितना वोट हासिल कर लेगा वही उसकी जीत का आंकड़ा बढ़ा सकते हैं. शहर में यूं तो चौधरी संतोख सिंह का असर है लेकिन पिछले कुछ दिनों में उनके कैंपेन के दौरान जिस तरह से पब्लिक ने उन्हें धोया है उससे उनका ग्राफ नीचे आने लगा है. पहले वेस्ट विधायक सुशील कुमार रिंकू के समर्थकों का विरोध, फिर बिना सेना का अकेला सेनापति जिला प्रधान बलदेव सिंह देव की ताजपोशी और उसके बाद पार्टी में उपजी अंदरूनी कलह. इन सब फैक्टर्स के अलावा सबसे बड़ा फैक्टर है सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी और वोटकटवा उम्मीदवार. सबसे बड़ी वोटकटवा इस बार बहुजन समाज पार्टी साबित होगा. यह बसपा उम्मीदवार के नामांकन के दौरान ही स्पष्ट हो गया था. इसके अलावा वाल्मीकि समाज के स्वामी नित्यानंद के भी बतौर आजाद उम्मीदवार मैदान में उतरने से वाल्मीकि वोट कटने की संभावना जताई जा रही है.

स्वामी नित्यानंद

आम आदमी पार्टी प्रत्याशी रिटायर्ड जस्टिस जोरा सिंह की साफ सुथरी छवि भी कांग्रेस के वोट काटने में कुछ हद तक सफल हो सकती है. इसके अलावा भी कुछ आजाद और कुछ छोटे छोटे सियासी दलों के प्रत्याशी मैदान में हैं जो चौधरी की राह में रोड़ा अटकाते नजर आ रहे हैं.
ऐसे में अगर शहर में कांग्रेस थोड़ी सी भी कमजोर हुई तो अकाली भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी अटवाल बाजी मार ले जायेंगे. इसलिये संतोख चौधरी को कार्यकर्ताओं की नाराजगी को समय रहते ही दूर कर लेना चाहिए. खासकर उनके सुपुत्र बिक्रम चौधरी के रवैये और बातचीत के लहजे को लेकर कार्यकर्ताओं को अक्सर शिकायत रहती है. बहरहाल, चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा.

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