दीपक शर्मा, भिंगराड़ा
भिंगराड़ा मे हो रही रामलीला में पाचवे दिन की लीला मे गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से मना कर देता है। इस पर लक्ष्मण क्रोधित होते हैं। परंतु बाद में प्रभु राम लक्ष्मण व सीता का पांव पखारने के बाद ही उन्हें नाव से गंगा पार पहुंचाता है। पाचवे दिन की लीला मे चित्रकूट निवास, सुमंत का अयोध्यागमन लीला का मंचन किया गया। राजा दशरथ के महाप्रयाण प्रसंग की भी प्रस्तुति की गई। प्रसंगानुसार वन में वटवृछ के दूध से जटा बनाते श्रीराम को देख मंत्री सुमंत रो पडे। श्रीराम ने उन्हें सभी धर्मों का ज्ञाता बताते हुए संकट की इस घड़ी में महाराज दशरथ को ढांढस बंधाने का अनुरोध किया। लक्ष्मण द्वारा महाराज दशरथ के प्रतिक्रोध प्रकट करने पर श्रीराम उन्हें समझाते हैं। साथ ही सुमंत को भी लक्ष्मण की बातें राजा दशरथ से न कहने के लिए वचनबद्ध करते हैं। सीता अयोध्या वापस जाने की बात को अपने तर्कों से काट मंत्री को निरूत्तर कर देती हैं।
गंगा तट पहुंचने पर केवट श्रीराम को पैर पखारे बिना गंगा पार कराने से मना कर देता है। इस पर लक्ष्मण क्रोधित हो उठते हैं। केवट विनम्रता से कहता है लक्ष्मण उन्हें तीर भले ही मार दें लेकिन बिना पाव पखारे तीनों को अपनी नौका पर नही बैठाएगा। केवट की प्रेम वाणी सुन श्रीराम लक्ष्मण व सीता की ओर देख हंस पड़ते हैं। केवट भी आज्ञा पाकर कठौते में गंगाजल ले आया। केवट द्वारा प्रभुराम सीता व लक्ष्मण का पाव पखारते देख देवगण उसके भाग्य को सराहते हैं। देवी गंगा भी श्रीराम का चरण स्पर्श कर प्रसन्न हैं। एक ही पेशे से जुडे़ लोग एक दूसरे से पारिश्रमिक नही लेते हैं। नदी पार उतारने पर केवट राम से उतराई लेने से इंकार कर देता है। कहता है कि हे प्रभु एक ही पेशे से जुडे़ लोग एक दूसरे से पारिश्रमिक नहीं लेते हैं। मैने आपको गंगा पार कराया, आप अपनी कृपा से मुझे इस संसाररूपी भवसागर से पार उतार दीजिएगा। केवट की ऐसी भक्ति देख लीलाप्रेमी भावविभोर हो गए।