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महाराष्ट्र की जंग : Bjp का मास्टर स्ट्रोक, नरम पड़ने लगी shivsena? 

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मुंबई| महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के लगभग 5 दिन बाद shivsena के तेवर कुछ नरम पड़ने लगे हैं| हालांकि वह समझौता करने को अभी भी तैयार नहीं है| shivsena अपनी ही शर्तों पर समझौता करना चाहती है लेकिन भाजपा ने उसकी मांग को खारिज कर दिया है| साथ ही ऐसा दांव खेला है कि शिवसेना चारों खाने चित नजर आ रही है. फिलहाल दबाव की राजनीति चल रही है| इस सियासी खेल में कांग्रेस और एनसीपी भी कूद पड़े हैं| मामला दिलचस्प मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है| वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक चौहान के बाद अब एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे नेता भी शिव सेना को खुला ऑफर देने में लगे हैं|

वहीं, भारतीय जनता पार्टी और सख्त रुख अख्तियार कर लिया है| वह अल्पमत सरकार भी बना सकती है. 15 निर्दलीय विधायकों के समर्थन का दावा भाजपा कर चुकी है. साथ ही 45 shivsena विधायक भी संपर्क में होने की बात कर रही है. वर्ष 2014 में भी शिवसेना को साइड कर भाजपा ने सरकार बना ली थी और बाद में शिवसेना साथ आ गई थी. इस बार भी शिवसेना कुछ ऐसी ही फजीहत कराने की ओर बढ़ती नजर आ रही है.

अब तक शिवसेना को मनाती नजर आ रही भाजपा अब सीधे तौर पर कह रही है कि विधानसभा चुनाव से पहले 50-50 वाली कोई भी बात उन्होंने shivsena से नहीं कही थी| उन्होंने ऐसा कोई समझौता शिवसेना के साथ नहीं किया था कि ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री होगा और अगले ढाई साल भाजपा का| उल्टा शिवसेना को धमकी भरे लहजे में इतना जरूर कह दिया है कि शिवसेना के 45 विधायक भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में हैं कुछ निर्दलीय विधायक भी भाजपा को अपना समर्थन दे चुके हैं| शायद यही वजह है कि शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय रावत की जुबान अब लड़खड़ाने लगी है| 2 दिन पहले तक विकल्प होने की धमकी दे रहे संजय रावत के अचानक से बदले बदले से नजर आ रहे हैं| संजय रावत अब यह कहते नजर आ रहे हैं कि भाजपा के साथ shivsena का गठबंधन राज्य हित में जरूरी है लेकिन शिवसेना अपने सम्मान से समझौता नहीं करेगी| रावत ने यह भी कहा कि वह महाराष्ट्र में स्थाई सरकार चाहती है|

हालांकि वे यह बात नहीं समझ पाए किस समझौते की वैशाखी ऊपर स्थाई सरकारें नहीं बना करती| दबाव की राजनीति करके वह स्थाई सरकार महाराष्ट्र को दे पाएंगे| चर्चा यह भी रही है कि shivsena अब 18 मंत्रियों पर लड़ाई हुई है और मुख्यमंत्री पद की लालसा छोड़ चुकी है| वहीं भाजपा उसे सिर्फ 14 मंत्री पद दे रही है जिस कारण से सरकार बनाने में देरी हो रही है| बरहाल किस तरह से शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाया हुआ था उस दबाव के बीच शिवसेना सरकार बनाने में कामयाब हो सकती थी लेकिन शिवसेना नेताओं के बदलते बोल यह इशारा करते हैं कि शिवसेना फिलहाल कांग्रेस एनसीपी से गठबंधन करने के मूड में नहीं है| साथ ही शिवसेना के 45 विधायक भले ही भाजपा के संपर्क में ना हो लेकिन निश्चित तौर पर कुछ विधायकों का समर्थन भाजपा जुटाने में लगी हुई है जिसके चलते वह शिवसेना की धमकी को गीदड़ भभकी मान रही है और उसकी मांगों को नकारने में लगी हुई है| शिवसेना के बड़बोले पन्ने उसे एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से उसका वापस लौटना आसान नहीं होगा| अगर शिवसेना भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाती है और उसे मुख्यमंत्री का पद नसीब नहीं होता तो इसे शिवसेना की करारी शिकस्त के रूप में देखा जाएगा| भाजपा के साथ शिवसेना की थोड़ी सी भी नरमी शिवसेना की फजीहत का सबब बन सकती है| अगर वह कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाती है तो यह तिकड़ी कितनी कारगर साबित होगी इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं| पैर हाल अब हालात शिवसेना की पकड़ से बाहर निकलते नजर आ रहे हैं|

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