नीरज सिसौदिया, जालंधर
सादगी और समर्पण तो संघ का आधार हैं लेकिन इस आधार को विरले ही अपने जीवन में आत्मसात कर पाते हैं. ऐसी ही शख्सियत हैं विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के पहले क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख राजेन्द्र जी जिन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से जनसेवा को समर्पित कर दिया है. हाल ही में राजेंद्र जी ने अपने जीवन के 55 वसंत पूरे किए हैं.
राजेंद्र जी से मेरी मुलाकात लगभग दो साल पहले जालंधर के विद्या धाम में हुई थी. उस दौरान मैं काफी मुश्किल दौर से गुजर रहा था. मेरे एक मित्र के माध्यम से विद्या धाम जाना हुआ था. उन दिनों विद्या धाम में विद्या भारती पंजाब द्वारा शिक्षा जगत के पहले न्यूज बुलेटिन की योजना पर मंथन चल रहा था. राजेंद्र जी के नेतृत्व में विद्या भारती पंजाब के प्रांत प्रचार प्रमुख ने इसकी रूपरेखा तैयार की और मुझे इस बुलेटिन को बनाने का सौभाग्य मिला. इस दौरान राजेंद्र जी से अक्सर मुलाकात होने लगी. मुलाकातों का सिलसिला जितना बढ़ता गया मेरी नजरों में राजेंद्र जी का कद भी उतना ही बड़ा होता जा रहा था. सार्थक विचारों और ऊर्जा से भरपूर राजेंद्र जी ने बातों-बातों में अपने जीवन के बारे में बताया. हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले राजेंद्र जी छात्र जीवन से ही संघ के माध्यम से जनसेवा से जुड़ गए थे. कुल्लू कालेज में पढ़ाई के दौरान वह मनाली के पहाड़ी गांवों में संघ की विचारधारा को पहुचाने का काम कर रहे थे. वक्त गुजरता गया और राजेंद्र जी संघ के प्रति समर्पित होते गए. घर दूर जा रहा था और राजेंद्र जी संघ के करीब आ रहे थे. सात्विक भोजन, उच्च विचार और हिन्दुत्व के संरक्षण की अलख जगाने का उनका जज्बा मानो उनकी जिंदगी का मकसद बनना चाहता था. जिस उम्र में लोग प्रेमिका को पाने और दौलत कमाने के ख्वाब देखते हैं उस उम्र में राजेंद्र जी हिमाचल के पहाड़ी गांवों की पगडंडियां सिर्फ इसलिए नाप रहे थे कि कुछ बेबस और जरूरतमंदों का जीवन संवर सके. कड़े संघर्ष और दिन-रात की मेहनत के चलते राजेंद्र जी का कद संघ में दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था. खाली जेबों के साथ दुनिया बदलने के सफर पर निकले राजेंद्र जी के पास जुनून और जज्बे की कोई कमी नहीं थी. उनके परिवार में माता-पिता, भाई रिश्तेदार सब थे मगर राजेंद्र जी ने तो मानो समूचे संसार को ही अपना परिवार बना लिया था. मोह माया से कोसों दूर राजेंद्र जी के समर्पण और सेवा के जज्बे को देखते हुए संघ ने उन्हें जिला प्रचारक की जिम्मेदारी सौंपी. बतौर जिला प्रचारक राजेंद्र जी ने अपने खाते में कई उपलब्धियां दर्ज कीं. इसके बाद वो शिमला आ गए और यहां भी संघ के प्रचार प्रसार व जनसेवा के क्षेत्र में अहम योगदान देने लगे. कहते हैं पानी की धारा को मोड़ा जा सकता है मगर रोका नहीं जा सकता. राजेंद्र जी भी पानी की उसी धारा की तरह निर्मल और अविरल बहते रहे. बच्चे देश का भविष्य होते हैं और देश को सुधारना है तो बच्चों कोे संस्कारवान बनाना बेहद जरूरी है. राजेंद्र जी भी इसी अवधारणा के समर्थक थे. यही वजह थी कि उन्होंने संघ की अनुषांगिक ईकाई विद्या भारती से जुड़ने का मन बनाया. राजेंद्र जी की कार्य कुशलता को देखते हुए संघ ने उन्हें विद्या भारती हिमाचल प्रदेश के संगठन मंत्री का दायित्व सौंपा. अब राजेंद्र जी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी दुर्गम पहाड़ी गांवों में शिक्षा का अलख जगाने की. लेकिन कहते हैं इरादा पक्का हो और कुछ कर गुजरने का हौसला हो तो भगवान भी आपके रास्ते नहीं रोक पाते. ऐसा ही कुछ राजेंद्र जी के साथ भी था. अपने मजबूत इरादों के दम पर राजेंद्र जी ने हिमाचल प्रदेश के उन दुर्गम पहाड़ी इलाकों में भी विद्या भारती के स्कूलों को पहुंचाया जहां अच्छे स्कूल किसी नामुमकिन सपने जैसे लगते थे. राजेंद्र जी का सफर यहीं नहीं थमा बल्कि उनके कार्यों से प्रभावित होकर संघ ने उन्हें पांच राज्यों की जिम्मेदारी से नवाजा.
लगभग ढाई साल पहले विद्या भारती ने प्रचार विभाग का गठन किया और राजेंद्र जी को क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी. अब राजेंद्र जी के पास विद्या भारती के अच्छे कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने की चुनौती थी, वो भी एक राज्य में नहीं बल्कि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और जम्मू कश्मीर में भी प्रचार का जिम्मा उन्हीं का था. राजेंद्र जी ने इसे भी बाखूबी निभाया और क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख बनते ही शिक्षा जगत का पहला न्यूज बुलेटिन उन्हीं के कार्यकाल में तैयार किया गया था जिसका शुभारंभ खुद सर संघ चालक मोहन भागवत ने जालंधर के विद्या धाम आकर किया. इसके बाद राजेंद्र जी ने विद्या भारती उत्तर क्षेत्र की एक डॉक्यूमेन्टरी तैयार कराई. इस डॉक्यूमेन्टरी को शूट करने का सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ. इस दौरान उनके साथ मनाली, कुल्लू, कश्मीर, पाकिस्तान बॉर्डर समेत कई बाल संस्कार केंद्रों में भी जाना हुआ. इन दिनों मेरा ज्यादातर वक्त राजेंद्र जी के साथ ही गुजरा और उन्हें करीब से जानने का मौका मिला. उनका शांत और सरल स्वभाव उनके व्यक्तित्व को एक अलग ही चमक प्रदान करता था. वह एसी लग्जरी गाड़ियों में भी सहज थे और रोडवेज की खटारा बस में भी वैसे ही सहज थे. इतनी बड़ी जिम्मेदारी के वाहक होने के बाद भी घमंड से कोसों दूर राजेंद्र जी अपने साथ जुड़े हर व्यक्ति को सरल जीवन की सीख जरूर देते थे लेकिन उपदेश कभी नहीं देते. अपनी उपलब्धियों का प्रचार करना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं. यही वजह है कि ज्यादातर लोग उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते. अगर मुझे उनके साथ रहने का मौका नहीं मिला होता तो शायद उनके त्याग और समर्पण के बारे में शायद इतना नहीं जान पाता. हिमाचल प्रदेश में मिले उनके पुराने साथियों ने राजेंद्र जी के त्याग और समर्पण के बारे में जितना बताया यहां उसका दस फीसदी भी मैं शब्दों में नहीं पिरो पाया. ओजस्वी वक्ता और व्यक्तित्व के धनी राजेंद्र जी आज भी अपने कर्तव्य का पालन नि:स्वार्थ भाव से कर रहे हैं. विद्या भारती के प्रचार प्रसार में उन्होंने नई बुलंदियां हासिल कर ली हैं. सफर जारी है और मंजिल करीब है.
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