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विरासत में मिला सेवा का जज्बा, भाई थे कर्नल, सेवा में बिता दी जिंदगी, जन्म दिन पर जानिये विद्या भारती के क्षेत्रीय संगठन मंत्री विजय नड्डा से जुड़ी अनकही बातें

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
किसी को हो न सका उसके कद का अंदाजा
वो आसमां है मगर सिर झुका के चलता है….
कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री विजय नड्डा. विजय नड्डा आज अपना 56 वां जन्मदिन मना रहे हैं. शांत और सरल स्वभाव के विजय नड्डा विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं. ओजस्वी वक्ता, लेखक, चिंतक, समाजसेवक होने के साथ ही कुशल नेतृत्वकर्ता और मार्गदर्शक भी हैं. मिलनसार व्यक्तित्व और हंसमुख स्वभाव के विजय नड्डा मूलरूप से हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के झंडूटा विधानसभा हलके के तहत पड़ते एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता स्वयंसेवक थे और भाई भारतीय सेना में कर्नल के पद पर रहकर देशसेवा कर चुके हैं. विजय नड्डा का बचपन बिलासपुर की वादियों में ही बीता. कॉलेज की पढ़ाई के लिए वे कुल्लू कॉलेज आ गए. फिर शिमला से परास्नातक भी किया. जिस दौर में गिनेेचुने लोग ही ग्रेजुएट होते थे उस दौर मेंं नड्डा नेे एमकॉम पास किया. पिता के संघ से जुड़े होने के कारण विजय नड्डा को सेवा का जज्बा विरासत में मिला था. कुशाग्र बुद्धि के विजय नड्डा चाहते तो उस दौर में कोई अच्छी नौकरी या व्यापार करके आराम की जिंदगी बसर कर सकते थे लेकिन उनका मकसद तो संसाधन विहीन लोगों को एक अहम मुकाम दिलाना था. हिमाचल से ताल्लुक़ होने की वजह से वो पहाड़ी जिंदगी की दुश्वारियों से भी भली भांति वाकिफ थे. यही वजह थी कि पिता की तरह उन्होंने भी सेवा को अपना उद्देश्य बनाया और संघ से जुड़ गए. उन्होंने बतौर स्वयंसेवक संघ में जगह बनाई. फिर हमीरपुर में विभाग प्रचारक रहने के दौरान दुर्गम पहाड़ियों का फासला तय किया और संघ की विचारधारा को घर-घर तक पहुंचाने का कार्य भी किया. कुल्लू कॉलेज में पढ़ाई के साथ साथ ही वह समाजसेवा से भी जुड़े रहे. बर्फीले पहाड़ों पर प्रचार प्रसार से कोसों दूर रहते हुए विजय नड्डा ने सिर्फ गरीबों और जरूरतमंदों को उम्मीदों की राह दिखाई. वक्त गुजरता गया और विजय नड्डा का कद संघ में बढ़ता गया. कल का स्वयंसेवक अब विभाग प्रचारक बन चुका था. सामाजिक जीवन ने उन्हें इतना व्यस्त कर दिया था कि निजी जीवन के लिए उनके पास वक्त ही नहीं रहा. सेवा के जज्बे ने न सिर्फ उन्हें परिवार से दूर कर दिया बल्कि उन्होंने विवाह तक नहीं किया. अब वो एक ऐसे संन्यासी की जिंदगी जी रहे थे जिसका जीवन दूसरों को समर्पित हो चुका था. व्यसन तो उनके पास तक नहीं फटकते थे. सादा जीवन और उच्च विचार वाली परंपरा का निर्वहन वह बाखूबी कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें संघ के अनुषांगिक संगठन विद्या भारती में अहम जिम्मेदारी सौंपी गई. बतौर प्रांत बौद्धिक प्रमुख वह पंजाब में संघ का हिस्सा बन चुके थे. वक्त गुजरता गया और विजय नड्डा अब पंजाब के हो चुके थे. पंजाब की दुश्वारियों से रूबरू हुए तो गरीबों के लिए अच्छी शिक्षा का अभाव नजर आया. पंजाब में अमीरी और गरीबी की खाई बहुत बड़ी थी. जो अमीर था वह बहुत अमीर था और जो गरीब था उसका जीवन दुश्वारियों से भरा था. पिता की तरह गरीबों के बच्चों का भविष्य दुश्वारियों भरा न हो, यह बात विजय नड्डा को कचोटती रहती थी लेकिन उस वक्त उन बच्चों के लिए बहुत कुछ करना विजय नड्डा के बस में नहीं था. वक्त बीता और विजय नड्डा को वह जिम्मेदारी और अधिकार भी मिल गया जिसके वह हकदार थे. उन्हें विद्या भारती पंजाब के संगठन मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई. विजय नड्डा को भी शायद इसी दिन का इंतजार था. संगठन मंत्री बनते ही विजय नड्डा ने देश के भविष्य को संवारने का बीड़ा उठाया. उन्होंने विद्या भारती के स्कूलों का विस्तारीकरण शुरू किया. साथ ही संस्कार केंद्रों के विस्तारीकरण के जरिए गरीब बच्चों के भविष्य संवारने की कवायद तेज करती. इस दौरान कई तरह की मुश्किलें भी आईं लेकिन विजय नड्डा की राह नहीं रोक सकीं. अमृतसर से लेकर फिरोजपुर के हुसैनीवाला बॉर्डर तक संस्कार केंद्र खोलने का श्रेय विजय नड्डा को ही जाचा है. इन संस्कार केंद्रों के माध्यम से विजय नड्डा न सिर्फ गरीब बच्चों की तकदीर संवार रहे थे बल्कि ग्रामीण इलाकों की पढ़ी लिखी बेटियों को उनके घर पर ही रोजगार भी दिला रहे थे.
विजय नड्डा के कार्यों को संघ का भी पूरा साथ मिला और उन्हें विद्या भारती पंजाब के संगठन मंत्री के साथ ही विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री की भी जिम्मेदारी सौंप दी गई. अब विजय नड्डा के समक्ष चुनौतियों के पहाड़ खड़े थे. अब उनके पास सिर्फ पंजाब ही नहीं बल्कि हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर की भी जिम्मेदारी थी. जम्मू कश्मीर के आतंकी अंधेरों में शिक्षा का दीप जलाए रखना आसान नहीं था. लेकिन चुनौतियों को अवसर के रूप में लेना विजय नड्डा की फितरत में शुमार था. इन चुनौतियों को भी उन्होंने अवसर के तौर पर लिया और खुद को साबित किया. यही वजह रही कि संघ ने विजय नड्डा का कद बढ़ाते हुए उन्हें विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पद की जिम्मेदारी भी सौंप दी. इसके बाद विजय नड्डा ने नए सफर की शुरूआत की. जिस वक्त जम्मू कश्मीर में आतंकी हमला हो रहा था उस वक्त विजय नड्डा वहां की अवाम के लिए शिक्षा का दीप लेकर पहुंचे. उनका स्पष्ट रूप से मानना है कि आतंक के अंधेरे को सिर्फ शिक्षा की रोशनी से ही खत्म किया जा सकता है.

जम्मू कश्मीर के रामबन के स्कूल में वंदना करते विजय नड्डा, राजेंद्र जी एवं अन्य. फाइल फोटो

अब उनकी योजना आतंक प्रभावित कश्मीर के दुर्गम पहाड़ों में आधुनिक शिक्षा को पहुंचाने की है. विजय नड्डा का सफर आज भी बदस्तूर जारी है. जीवन के 55 बसंत देख चुके विजय नड्डा हजारों स्वयंसेवकों के प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं.
उनके जन्म दिन पर विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख राजेन्द्र जी ने उन्हें बधाई दी है. वहीं विद्या भारती पंजाब के प्रान्त प्रचार प्रमुख सुखदेव वशिष्ठ ने कहा कि राष्ट्र देवता के चरणों में अपनी जवानी, अपना जीवन सर्वस्व समर्पित करने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रचारक परम्परा के पुष्प, विद्या भारती उत्तर क्षेत्र के संगठन मंत्री और हम सब के मार्गदर्शक विजय नड्डा जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई. इसके अलावा विद्या भारती परिवार ने भी उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दी हैं. इंडिया टाइम 24 की ओर से भी विजय नड्डा को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.

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